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मंगलवार, नवम्बर 18, 2025
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छत्तीसगढ़: आस्था पर हमला या धर्मांतरण का खेल? मुंगेली में प्रार्थना सभा से विश्वासी गिरफ्तार, निष्पक्ष जांच की मांग

छत्तीसगढ़/मुंगेली (पब्लिक फोरम)। प्रदेश में धार्मिक तनाव का माहौल एक बार फिर गरमा गया है। हाल ही में अल्पसंख्यक ईसाई समुदाय पर हो रहे हमलों और पुलिस की भूमिका पर उठते सवालों के बीच, मुंगेली जिले से एक और विचलित करने वाली घटना सामने आई है। यहां अपनी निजी आस्था के तहत घर में प्रार्थना सभा कर रहे एक व्यक्ति को पुलिस ने धर्मांतरण के आरोप में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है। इस कार्यवाही पर मूलनिवासी संघ ने गंभीर सवाल उठाते हुए मामले की निष्पक्ष जांच की मांग की है।

क्या है पूरा मामला?
घटना 27 जुलाई, 2025 की है। मुंगेली निवासी बदरी साहू, जो अपनी व्यक्तिगत आस्था के कारण मसीही को मानते हैं, अपने घर पर कुछ अन्य विश्वासियों के साथ प्रार्थना कर रहे थे। मूलनिवासी संघ द्वारा जारी एक प्रेस नोट के अनुसार, इसी दौरान बिजली मीटर देखने के बहाने तीन अज्ञात व्यक्ति उनके घर में घुस आए। आरोप है कि इन लोगों ने वहां मौजूद बाइबल, मोबाइल फोन और अन्य सामान जब्त कर लिया और पुलिस को बुला लिया।

मौके पर पहुंची पुलिस ने प्रार्थना में शामिल सभी लोगों को थाने ले जाकर पूछताछ की। इसके बाद, बदरी साहू के खिलाफ धर्मांतरण का कथित झूठा मामला दर्ज कर उन्हें जेल भेज दिया गया। इस घटना ने एक बार फिर प्रदेश में धार्मिक स्वतंत्रता और पुलिस की कार्यप्रणाली को लेकर एक बड़ी बहस छेड़ दी है।

मूलनिवासी संघ ने उठाए सवाल

मूलनिवासी संघ ने इस पूरी कार्यवाही को पक्षपातपूर्ण और मानवाधिकारों का उल्लंघन बताया है। संघ के कवर्धा जिलाध्यक्ष, डॉ.जे.अजीत ने एक बयान जारी कर कहा, “बदरी साहू अपनी निजी आस्था का पालन कर रहे थे और अपने ही घर में शांतिपूर्वक प्रार्थना कर रहे थे। किसी को जबरन धर्मांतरित करने का कोई सबूत नहीं है। यह सीधे तौर पर धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार पर हमला है।” संघ ने मुंगेली जिला प्रशासन से आग्रह किया है कि इस मामले की तत्काल और निष्पक्ष जांच की जाए और निर्दोषों को न्याय दिलाया जाए।

छत्तीसगढ़ में बढ़ता धार्मिक तनाव
यह घटना कोई अकेली नहीं है। पिछले कुछ समय से छत्तीसगढ़, विशेषकर आदिवासी बहुल इलाकों में, धर्मांतरण एक संवेदनशील और विस्फोटक मुद्दा बना हुआ है। हाल ही में, मानव तस्करी और जबरन धर्मांतरण के आरोप में दो कैथोलिक ननों की गिरफ्तारी ने राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बटोरीं। हालांकि, बाद में लड़कियों के परिजनों ने जबरन धर्मांतरण के आरोपों से इनकार किया, लेकिन यह मामला अभी भी कानूनी प्रक्रियाओं में उलझा हुआ है।

इन घटनाओं ने प्रदेश के सामाजिक ताने-बाने में एक गहरी दरार पैदा कर दी है। एक ओर जहां कुछ संगठन इसे “घर वापसी” और अपनी जड़ों की ओर लौटने का अभियान बताते हैं, वहीं दूसरी ओर अल्पसंख्यक समुदाय और मानवाधिकार कार्यकर्ता इसे अपनी धार्मिक स्वतंत्रता पर सीधा हमला मानते हैं। प्रदेश सरकार ने भी धर्मांतरण पर एक नया कानून लाने की बात कही है, जिससे इस मुद्दे पर राजनीतिक और सामाजिक बहस और तेज हो गई है।

इस पूरे परिदृश्य में, बदरी साहू जैसे आम नागरिकों की कहानी कहीं खो जाती है, जो अपनी आस्था और विश्वास के कारण कानूनी चक्रव्यूह में फंस जाते हैं। यह घटना एक महत्वपूर्ण सवाल खड़ा करती है – क्या आस्था का व्यक्तिगत पालन एक अपराध है? और क्या कानून का इस्तेमाल किसी विशेष समुदाय को निशाना बनाने के लिए किया जा रहा है? इन सवालों का जवाब निष्पक्ष जांच और न्यायपूर्ण कार्यवाही में ही निहित है, जिसकी उम्मीद मुंगेली के इस मामले में की जा रही है।

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