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86 परिवारों की पुकार: बालको कूलिंग टावर से प्रभावित शांतिनगर के लोगों को मुआवजा और रोजगार का इंतजार!

कोरबा (पब्लिक फोरम)। छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले के शांतिनगर में रहने वाले 86 परिवार पिछले 12 सालों से न्याय की आस में हैं। वेदांता अधिग्रहित BALCO (भारत एल्यूमिनियम कंपनी लिमिटेड) के कूलिंग टावर के निर्माण और संचालन से प्रभावित इन परिवारों को मुआवजा, पुनर्वास और रोजगार का वादा किया गया था, लेकिन आज भी कई परिवार अधर में लटके हैं। इस मुद्दे को लेकर पूर्व कैबिनेट मंत्री जयसिंह अग्रवाल ने केंद्रीय श्रम मंत्री मनसुख लाल मंडाविया को पत्र लिखकर तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है। यह पत्र न केवल एक प्रशासनिक मांग है, बल्कि उन परिवारों की पीड़ा और उम्मीदों की गूंज भी है, जो अपने हक के लिए सालों से संघर्ष कर रहे हैं।

(पूर्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल)

12 साल का इंतजार, अधूरी रही वादों की कहानी
शांतिनगर के इन 86 परिवारों की कहानी तब शुरू हुई, जब बालको के कूलिंग टावर के निर्माण और संचालन से उनके स्वास्थ्य और आजीविका पर असर पड़ा। स्थानीय लोगों ने इसके खिलाफ धरना-प्रदर्शन किया और अपनी आवाज बुलंद की। साल 2013 में जिला प्रशासन, जनप्रतिनिधियों और बालको प्रबंधन के बीच त्रिपक्षीय वार्ता हुई। इस वार्ता में प्रभावित परिवारों को मुआवजा, पुनर्वास और रोजगार देने का लिखित आश्वासन दिया गया। बालको के तत्कालीन परियोजना प्रमुख जे.के. मुखर्जी ने स्पष्ट किया था कि प्रभावित परिवारों को उनकी जमीन और मकान के लिए शासकीय दरों के अनुसार मुआवजा दिया जाएगा, और यह प्रक्रिया चरणबद्ध तरीके से पूरी होगी।

लेकिन 12 साल बाद भी यह वादा अधूरा है। शांतिनगर पुनर्वास समिति के अनुसार, 86 में से 67 परिवारों को मुआवजा मिल चुका है, लेकिन 19 परिवार अभी भी इंतजार में हैं। कुछ परिवारों को आंशिक भुगतान मिला, जबकि कई परिवारों को अब तक कुछ नहीं मिला। इन परिवारों का कहना है कि बालको प्रबंधन उनकी पीड़ा के प्रति पूरी तरह उदासीन है।

रोजगार का सपना: आश्वासनों का झुनझुना
मुआवजे के साथ-साथ प्रभावित परिवारों को रोजगार देने का वादा भी किया गया था। शांतिनगर के प्रतिनिधियों ने बताया कि पिछले 8-10 सालों में उन्होंने बार-बार बालको प्रबंधन से रोजगार की मांग की, लेकिन हर बार उन्हें केवल मौखिक आश्वासन मिले। करीब डेढ़ साल पहले 39 योग्य युवाओं की सूची बालको को सौंपी गई, लेकिन प्रबंधन ने इस पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया।

प्रतिनिधियों ने यह भी सुझाव दिया कि अगर बालको में सीधे रोजगार देना संभव नहीं है, तो संयंत्र में कार्यरत सहयोगी कंपनियों में इन युवाओं को नौकरी दी जाए। लेकिन प्रबंधन की ओर से कोई जवाब नहीं मिला। प्रभावित परिवारों का कहना है, “हमारी रोजी-रोटी का सवाल है, लेकिन बालको को हमारी परेशानी से कोई फर्क नहीं पड़ता।”

मानवीय संवेदना की पुकार
जयसिंह अग्रवाल ने अपने पत्र में केंद्रीय श्रम मंत्री से आग्रह किया है कि भारत सरकार, जिसकी बालको में 49 प्रतिशत हिस्सेदारी है, इस मामले में हस्तक्षेप करे। उन्होंने मांग की है कि प्रभावित परिवारों को तत्काल मुआवजा और युवाओं को योग्यता के आधार पर रोजगार दिया जाए। यह पत्र न केवल एक राजनेता की मांग है, बल्कि उन 86 परिवारों की उम्मीदों का प्रतीक है, जो अपने बच्चों के बेहतर भविष्य और सम्मानजनक जीवन की आस में हैं।

बालको की उदासीनता: सवालों के घेरे में
बालको प्रबंधन की ओर से बार-बार वादाखिलाफी ने प्रभावित परिवारों का भरोसा तोड़ा है। शांतिनगर के लोग पूछते हैं, “जब हमारी जमीन और स्वास्थ्य पर असर पड़ा, तो हमें न्याय क्यों नहीं मिल रहा?” स्थानीय लोगों का कहना है कि बालको ने न केवल उनके साथ किया वादा तोड़ा, बल्कि उनकी भावनाओं को भी ठेस पहुंचाई।

सरकार से उम्मीद, जनता की पुकार
जयसिंह अग्रवाल का यह पत्र शांतिनगर के उन परिवारों के लिए एक नई उम्मीद की किरण है। यह मुद्दा अब केंद्रीय श्रम मंत्रालय के सामने है, और प्रभावित परिवारों को उम्मीद है कि सरकार उनकी आवाज सुनेगी। यह केवल मुआवजे और रोजगार का सवाल नहीं है, बल्कि मानवीय संवेदना और सामाजिक न्याय का मामला है।

शांतिनगर के परिवार अब सरकार और बालको प्रबंधन से ठोस कार्रवाई की उम्मीद कर रहे हैं। यह मामला न केवल कोरबा, बल्कि पूरे देश में औद्योगिक परियोजनाओं से प्रभावित लोगों के अधिकारों की बात को सामने लाता है। क्या इन परिवारों को उनका हक मिलेगा? क्या उनके बच्चों को रोजगार का अवसर मिलेगा? यह सवाल अब समय और सरकार के जवाब पर निर्भर करते हैं।

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