back to top
होमदेशबक्सर जेल का 'श्रीदेवी स्टाइल' टॉर्चर: कैदी ने खोली क्रूरता और भ्रष्टाचार...

बक्सर जेल का ‘श्रीदेवी स्टाइल’ टॉर्चर: कैदी ने खोली क्रूरता और भ्रष्टाचार की पोल, जेलर की जुबान पर दिवंगत अभिनेत्री का नाम!

बक्सर जेल की दहला देने वाली दास्तान: कैदियों को ‘श्रीदेवी स्टाइल’ में पीटा जाता है, और जेलर कहता है- “यह समझो, कि तुम सेक्स कर रहे हो!”

पटना/बक्सर (पब्लिक फोरम)। एक तरफ जहां दुनिया यातना विरोधी सप्ताह मना रही है, वहीं बिहार की जेलों से क्रूरता और अमानवीयता की ऐसी कहानियाँ सामने आ रही हैं, जो किसी भी संवेदनशील इंसान की रूह कंपा दें। बक्सर केंद्रीय कारा के अंडा सेल में बंद एक 64 वर्षीय विचाराधीन बंदी विजय कुमार आर्य ने एक विस्तृत लेख के माध्यम से जेल के भीतर चल रहे भ्रष्टाचार, बर्बर पिटाई और एक विकृत व्यवस्था का पर्दाफाश किया है, जिसमें अधिकारियों द्वारा पिटाई को ‘श्रीदेवी स्टाइल’ जैसा घिनौना नाम दिया गया है।

अधिकारों की माँग से शुरू हुई प्रताड़ना की कहानी

विजय कुमार आर्य, जो पटना के एक एनआईए मामले में आरोपित हैं, ने अपने लेख में बताया कि यह सब तब शुरू हुआ जब वे पटना की बेऊर जेल में बंद थे। उनके अनुसार, जून 2024 में नए जेल अधीक्षक विधु कुमार के आने के बाद कैदियों के भोजन में भारी कटौती की गई, कैंटीन में दोगुनी कीमतों पर सामान बेचा जाने लगा और जेल के वार्डों को लाखों रुपये लेकर दबंग कैदियों को “बेच” दिया गया। इन समस्याओं के खिलाफ जब विजय आर्य और 13 अन्य कैदियों ने 29 अगस्त 2024 को भूख हड़ताल की घोषणा की, तो समाधान के बजाय दमन का रास्ता अपनाया गया। उसी रात विजय आर्य को प्रशासनिक दफे के तहत बक्सर जेल और उनके साथी प्रमोद मिश्रा को भागलपुर जेल भेज दिया गया।

बक्सर जेल में ‘स्वागत’ और बर्बर पिटाई

30 अगस्त की सुबह जब विजय आर्य बक्सर जेल पहुँचे, तो उनका सामना सहायक जेलर शिवसागर से हुआ। आर्य के अनुसार, जेलर ने उन्हें देखते ही माँ-बहन की गालियाँ देना शुरू कर दिया और बीएमपी के जवानों को बुलाकर बेरहमी से पीटने का आदेश दिया। आर्य लिखते हैं, “एक सिपाही ने मुझे झुकाकर पकड़ा और दूसरा मेरे कूल्हों और जाँघों पर सैकड़ों लाठियाँ बरसाने लगा। जब मैं दर्द से कराह रहा था, तो जेलर ने कहा, ‘इसको कैसे पीटे हो कि आँखों से आँसू भी नहीं निकले?’ और फिर से पिटाई का आदेश दिया।”

यह सिलसिला तब तक चला जब तक वे अधमरे नहीं हो गए। उन्हें तलवों पर भी अनगिनत लाठियाँ मारी गईं और अंत में कान पकड़कर उठक-बैठक करने पर मजबूर किया गया। 64 वर्षीय आर्य को इस बर्बरता के बाद कई दिनों तक न तो चिकित्सा सुविधा मिली और न ही गर्म पानी। उन्हें टूटी हुई प्लास्टिक की बोतल काटकर गिलास और कटोरे के रूप में इस्तेमाल करना पड़ा।

क्रूरता का ‘श्रीदेवी स्टाइल’ और महिला अधीक्षक की भूमिका

विजय आर्य अपने लेख में सबसे भयावह खुलासा ‘श्रीदेवी स्टाइल’ नामक पिटाई के तरीके पर करते हैं। वे लिखते हैं कि जब कैदी घटिया भोजन का विरोध करते हैं, तो उन्हें गुमटी पर ले जाकर एक खंभे से सटाकर खड़ा कर दिया जाता है। दो सिपाही हाथ पकड़ते हैं और दो अन्य दोनों तरफ से ताबड़तोड़ लाठियाँ बरसाते हैं।

इस दौरान जेल अधिकारी और सिपाही अश्लील और अपमानजनक टिप्पणियाँ करते हैं। आर्य के अनुसार, सहायक जेलर शिवसागर कहता है, “बेटा, तुझे पीटा नहीं जा रहा, समझो कि तुम श्रीदेवी के साथ किस कर रहे हो।” वहीं, जेलर राघवेंद्र कहता है, “समझो तुम श्रीदेवी के साथ लव कर रहे हो।” एक सिपाही तो यहाँ तक कहता है, “समझो कि तुम श्रीदेवी के साथ सेक्स कर रहे हो और मजे ले रहे हो!”

हैरानी की बात यह है कि बक्सर केंद्रीय कारा की अधीक्षक एक महिला, ज्ञानिता गौरव, हैं। आर्य का आरोप है कि यह सब कुछ उनकी सहमति और आदेश पर होता है। वे पिटाई का आदेश देकर वहाँ से हट जाती हैं, शायद एक महिला होने के नाते इन अश्लील संवादों को सुनने में शर्मिंदगी महसूस करती हों।

प्रशासनिक दफा: भ्रष्टाचार और बदले का हथियार

लेख में यह भी बताया गया है कि ‘प्रशासनिक दफा’ का इस्तेमाल कैदियों को सबक सिखाने, उनके केस में देरी करने और भ्रष्टाचार के लिए किया जा रहा है। एक जेल से दूसरी जेल भेजने और वापस लाने के लिए 25,000 से 5 लाख रुपये तक की रिश्वत ली जाती है। अधिकारी इतने बेखौफ हैं कि वे अदालती आदेशों को भी मानने से इनकार कर देते हैं। आर्य के मामले में भी, एनआईए कोर्ट के आदेश के बावजूद बेऊर जेल अधीक्षक ने उन्हें वापस रखने से मना कर दिया और उन्हें फिर बक्सर भेज दिया गया।

न्यायपालिका और प्रशासन की चुप्पी

इस पूरे मामले में जिला प्रशासन की भूमिका पर भी गंभीर सवाल उठाए गए हैं। आर्य बताते हैं कि जब बक्सर के डीएम और एसपी ने जेल का निरीक्षण किया, तो एक कैदी बबलू कुशवाहा ने कपड़े उतारकर अपनी चोटें दिखाईं, लेकिन अधिकारियों ने कोई कार्रवाई नहीं की। इसके बाद जेलर ने कैदियों को धमकाते हुए कहा, “डीएम क्या? हम पीटेंगे तो जज भी हमारा कुछ नहीं करेगा।”

विजय आर्य का यह लेख बिहार की जेलों को ‘यातना गृह’ के रूप में चित्रित करता है, जहाँ मानवाधिकार, संविधान और सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों की खुलेआम धज्जियाँ उड़ाई जा रही हैं। यह मामला सिर्फ एक कैदी की आपबीती नहीं, बल्कि उस सड़ी-गली व्यवस्था का प्रतीक है, जहाँ रक्षक ही भक्षक बने हुए हैं। अब सवाल यह उठता है कि क्या बिहार सरकार और मानवाधिकार संगठन इस मामले का संज्ञान लेंगे और जेलों को यातना गृह बनने से रोकने के लिए कोई ठोस कदम उठाएंगे?

RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments