रायपुर (पब्लिक फोरम)। मोदी सरकार ने अपने तीसरे कार्यकाल के दौरान लोकसभा चुनावों के जनादेश को नज़रअंदाज़ करते हुए मजदूर वर्ग के हितों को दरकिनार कर कॉरपोरेट्स के पक्ष में नीतियाँ बनाई हैं। निराशाजनक बजट 2024-25 ने कामकाजी लोगों की चिंताओं और समस्याओं को पूरी तरह अनदेखा कर दिया है।
मजदूरों की उपेक्षा और कॉरपोरेट्स का पक्षपात
इस बजट में कामकाजी लोगों के लिए कोई राहत नहीं दी गई है। यह बजट अमीरों और शक्तिशाली लोगों के हितों को ध्यान में रखकर बनाया गया है, जिससे ‘विकसित भारत’ के नाम पर कॉर्पोरेट नियंत्रण और अर्थव्यवस्था पर प्रभुत्व और अधिक बढ़ गया है। असंगठित श्रमिकों के लिए भी कोई राहत नहीं है, जबकि महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय सामाजिक कल्याण योजनाओं जैसे नरेगा, एनएचएम, मिड-डे मील, और आईसीडीएस के बजटीय आवंटन में कोई वृद्धि नहीं की गई है।
महंगाई और ठेकाकरण का मुद्दा
बढ़ती खाद्य कीमतों से कोई राहत नहीं मिलती है क्योंकि यह बजट मुद्रास्फीति के खतरनाक स्तर को मान्यता नहीं देता है। साथ ही, सरकारी विभागों में जारी अंधाधुंध ठेकाकरण को कम करने का कोई प्रयास नहीं किया गया है।
बेरोजगारी की अनदेखी
बेरोजगारी की बढ़ती समस्या को भी इस बजट में सिर्फ बयानबाजी के तौर पर शामिल किया गया है, क्योंकि नौकरियां पैदा करने के लिए कोई ठोस योजना नहीं प्रस्तुत की गई है।
AICCTU का विरोध
ऑल इंडिया सेंट्रल कौंसिल ऑफ़ ट्रेड यूनियंस (AICCTU) के राज्य महासचिव बृजेंद्र तिवारी ने इस बजट की कड़ी आलोचना करते हुए इसे कामकाजी लोगों की दुर्दशा और पीड़ा के साथ विश्वासघात और उपहास बताया है। उनके अनुसार, इस बजट का विरोध किया जाना चाहिए।
इस बजट से यह स्पष्ट होता है कि मोदी सरकार ने मजदूर वर्ग की समस्याओं को नजरअंदाज कर कॉरपोरेट्स के हितों को प्राथमिकता दी है। इसका सीधा प्रभाव कामकाजी लोगों पर पड़ेगा, जिससे उनकी स्थिति और खराब हो सकती है। आवश्यक है कि मजदूर वर्ग और संबंधित संगठनों को इस बजट के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए ताकि उनकी समस्याओं को सुना जा सके और सरकार को उनके हितों की रक्षा करने के लिए मजबूर किया जा सके।
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