आदिवासी संगठन ने बालको के ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज कराई, ज़मीन दस्तावेज़ों में गड़बड़ी का आरोप!
कोरबा (पब्लिक फोरम)। भारत एल्यूमिनियम कंपनी लिमिटेड (BALCO) पर बालकोनगर, सेक्टर-6 में शासकीय भूमि पर कथित अतिक्रमण और अवैध बहुमंजिला निर्माण का गंभीर आरोप लगा है। आदिनिवासी गण परिषद, छत्तीसगढ़ ने जिला दंडाधिकारी, कोरबा को शिकायत पत्र सौंपकर तत्काल जांच और कठोर कानूनी कार्रवाई की मांग की है। संगठन का दावा है कि यह निर्माण छत्तीसगढ़ भू-राजस्व संहिता, 1959 का खुला उल्लंघन है और राष्ट्रीय संपत्ति की सुरक्षा को खतरा है।
आरोपों का पूरा ब्यौरा
आदिनिवासी गण परिषद ने अपने शिकायत पत्र में बालको पर कई गंभीर आरोप लगाए हैं। संगठन के संयोजक बी.एल. नेताम के अनुसार, बालकोनगर, सेक्टर-6 में शासकीय भूमि पर बहुमंजिला भवन का निर्माण शुरू किया गया है, जबकि पूर्व में जिला कलेक्टर श्रीमती रानू साहू, एसडीएम श्री नायक और तहसीलदार श्री साहू ने इस पर स्पष्ट रोक लगाई थी। प्रशासनिक आदेशों की अवहेलना कर निर्माण कार्य दोबारा शुरू करना छत्तीसगढ़ भू-राजस्व संहिता की धारा 248 का उल्लंघन है।

कानूनी विसंगतियों का दावा
– शिकायत में कहा गया है कि भूमि स्वामित्व के दावे संदिग्ध हैं और आवंटन प्रक्रिया में पारदर्शिता का अभाव है।
– वर्ष 1973 में बालको को आवंटित भूमि का खसरा नंबर वर्तमान निर्माण स्थल से मेल नहीं खाता, जिससे दस्तावेजी हेराफेरी की आशंका जताई गई है।
– पूर्व पटवारी श्री राजेंद्र साहू द्वारा जारी नजरी नक्शे की वैधता भी संदेह के घेरे में है।
– इसके अलावा, बालको द्वारा थाना परिसर के सामने बनाया गया भवन, जो 12 वर्षों से अनुपयोगी पड़ा है, को भी शासकीय भूमि पर अतिक्रमण का सबूत बताया गया है।

कानूनी आधार और मांगें
आदिनिवासी गण परिषद ने छत्तीसगढ़ भू-राजस्व संहिता, 1959 की धारा 248, 250, 115 और 117 के साथ-साथ भारतीय दंड संहिता की धारा 420 (धोखाधड़ी), 468 (दस्तावेज जालसाजी) और 447 (आपराधिक अतिचार) का हवाला दिया है। संगठन ने जिला दंडाधिकारी से निम्न मांगें की हैं:
1. तत्काल जांच: भूमि स्वामित्व, खसरा और दस्तावेजों की निष्पक्ष जांच के लिए उच्चस्तरीय समिति का गठन।
2. निर्माण पर रोक: बहुमंजिला निर्माण पर तुरंत अंतरिम प्रतिबंध।
3. व्यापक जांच: बालको द्वारा शासकीय भूमि पर किए गए सभी अतिक्रमणों की जांच।
4. कानूनी कार्रवाई: अतिक्रमण हटाने और दोषियों पर कठोर कार्रवाई।
दीर्घकालिक सुझाव: संगठन ने भू-अभिलेखों के डिजिटलीकरण, औद्योगिक भूमि आवंटन में निगरानी और अतिक्रमण रोकथाम के लिए नियमित निरीक्षण की भी मांग की है।
यह मामला न केवल शासकीय भूमि की सुरक्षा और कानून के शासन से जुड़ा है, बल्कि स्थानीय समुदाय और आदिवासी हितों को भी प्रभावित कर सकता है। यदि आरोप सत्य पाए गए, तो यह औद्योगिक इकाइयों द्वारा शासकीय संसाधनों के दुरुपयोग और प्रशासनिक जवाबदेही पर सवाल उठा सकता है। दूसरी ओर, बालको की ओर से अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है, जिससे इस विवाद में और पारदर्शिता की जरूरत महसूस हो रही है।
अब आगे क्या?
आदिनिवासी गण परिषद ने जिला दंडाधिकारी से त्वरित और निष्पक्ष कार्रवाई की उम्मीद जताई है। शिकायतकर्ता बी.एल. नेताम का कहना है, “राष्ट्रीय संपत्ति की रक्षा और न्याय व्यवस्था की गरिमा के लिए यह कार्रवाई जरूरी है।” कोरबा प्रशासन अब इस मामले में क्या कदम उठाता है, इस पर सभी की निगाहें टिकी हैं।
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