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बिरसा मुंडा जयंती: जनजातीय गौरव दिवस का प्रेरणादायक इतिहास

15 नवंबर: आदिवासी अधिकारों और गौरव का प्रतीक
15 नवंबर का दिन भारत के पहले आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा की जयंती के रूप में मनाया जाता है। इसे जनजातीय गौरव दिवस कहा जाता है। यह दिवस न केवल बिरसा मुंडा के योगदान को याद करने का अवसर है, बल्कि आदिवासी संस्कृति, परंपराओं और उनके अधिकारों को सम्मान देने का प्रतीक भी है।

इस विशेष दिन पर पूरे देश और विशेष रूप से झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक में अनेक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इसके अलावा, नेपाल, बांग्लादेश और भूटान में भी आदिवासी समुदाय के लोग इस दिन को उत्साह से मनाते हैं।

बिरसा मुंडा: आदिवासी समुदाय के महानायक
बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को झारखंड के खूंटी जिले में हुआ था। वे मुंडा जनजाति से ताल्लुक रखते थे। उनके पिता सुगना मुंडा किसान थे और माता करमी हातू गृहिणी। बिरसा मुंडा ने अपनी शिक्षा और सामाजिक सुधार की प्रेरणा अपने परिवार से प्राप्त की।
उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आवाज उठाई और आदिवासी समुदाय के अधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष किया। बिरसा मुंडा ने उलगुलान आंदोलन का नेतृत्व किया, जो आदिवासी स्वायत्तता और उनके अधिकारों के लिए एक क्रांतिकारी कदम था।

उलगुलान आंदोलन: आदिवासी संघर्ष की गाथा
बिरसा मुंडा के नेतृत्व में उलगुलान आंदोलन ने आदिवासी समुदाय को एकजुट किया और उन्हें उनके अधिकारों के लिए लड़ने की प्रेरणा दी। उन्होंने आदिवासी संस्कृति और परंपराओं को संरक्षित रखने और शिक्षा को बढ़ावा देने का कार्य किया।

बिरसा मुंडा की मृत्यु: एक प्रेरणा जो आज भी जीवित है
ब्रिटिश सरकार ने बिरसा मुंडा को गिरफ्तार कर रांची जेल में कैद कर लिया था। वहीं 9 जून 1900 को, केवल 25 वर्ष की आयु में, हैजा के कारण उनकी मृत्यु हो गई। हालांकि, उनकी मृत्यु के बाद भी, उनका संघर्ष और आदिवासी अधिकारों के प्रति उनका समर्पण आज भी करोड़ों लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

जनजातीय गौरव दिवस का महत्व
यह दिवस आदिवासी समुदाय की संस्कृति और परंपराओं को संरक्षित करने और उनके अधिकारों की रक्षा के प्रति समाज को जागरूक करने के लिए मनाया जाता है। इस अवसर पर विभिन्न कार्यक्रम, संगोष्ठियां, सांस्कृतिक कार्यक्रम और प्रदर्शनियां आयोजित की जाती हैं।

आदिवासी संस्कृति का सम्मान
आदिवासी समुदाय बिरसा मुंडा को भगवान का स्वरूप मानते हैं। उन्होंने न केवल उनके अधिकारों और हितों के लिए लड़ाई लड़ी, बल्कि उनकी संस्कृति और परंपराओं को संरक्षित किया।
बिरसा मुंडा की विरासत
बिरसा मुंडा ने जो संघर्ष किया, वह भारत की आजादी की लड़ाई का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। उनका जीवन संदेश देता है कि संघर्ष और एकता के माध्यम से समाज में परिवर्तन लाया जा सकता है।

बिरसा मुंडा की विरासत
बिरसा मुंडा ने जो संघर्ष किया, वह भारत की आजादी की लड़ाई का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। उनका जीवन संदेश देता है कि संघर्ष और एकता के माध्यम से समाज में परिवर्तन लाया जा सकता है।

जनजातीय गौरव दिवस केवल एक दिवस नहीं, बल्कि आदिवासी समुदाय की पहचान, संस्कृति और अधिकारों के प्रति सम्मान व्यक्त करने का अवसर है। बिरसा मुंडा का जीवन और उनके विचार हमें यह सिखाते हैं कि किसी भी समाज की प्रगति तब होती है जब हम उसके प्रत्येक वर्ग का सम्मान और सहयोग करें।                     

             (आलेख : प्रदीप मिश्रा)

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