कोरबा (पब्लिक फोरम)। छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में सहीस समाज सेवा समिति के 7 साल के अथक संघर्ष को आखिरकार सफलता मिली है। 16 जनवरी 2025 को राज्य सरकार ने एक महत्वपूर्ण परिपत्र जारी करते हुए सहीस, सारथी, सईस, सूत-सारथी और थनवार जाति के लोगों को अनुसूचित जाति (SC) का प्रमाणपत्र जारी करने का रास्ता साफ कर दिया है। यह फैसला सैकड़ों परिवारों के लिए न्याय और सम्मान की लड़ाई में मील का पत्थर साबित होगा।
क्यों जरूरी था यह संघर्ष?
2016 में केंद्र सरकार ने संविधान संशोधन के तहत छत्तीसगढ़ की घासी/घसिया समेत कुछ जातियों को अनुसूचित जाति सूची में शामिल किया था। लेकिन, इन समुदायों के लोगों को जाति प्रमाणपत्र बनवाने में एक बड़ी समस्या आई: राजस्व रिकॉर्ड (मिसल दस्तावेज) में इन जातियों का नाम दर्ज ही नहीं था। नतीजतन, लोगों को शिक्षा, नौकरी और योजनाओं के लाभ से वंचित रहना पड़ा।
7 साल की मुहिम ने बदली तस्वीर
सहीस समाज सेवा समिति के अध्यक्ष लखन लाल सहीस बताते हैं, “हमने 2012-13 के उस शासनादेश को आधार बनाया, जिसमें अनुसूचित जातियों के लिए अपमानजनक शब्दों के इस्तेमाल पर रोक लगाई गई थी। इसके तहत, पूर्वजों के राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज जाति के आधार पर प्रमाणपत्र जारी करने की मांग की।” समिति ने लगातार प्रशासनिक अधिकारियों, कलेक्टरों और राज्य सरकार से संवाद किया, जिसके बाद 2025 का यह ऐतिहासिक परिपत्र आया।
क्या कहता है नया परिपत्र?
– अब सहीस, सारथी, सईस, सूत-सारथी और थनवार जाति के लोग पुरखों के राजस्व रिकॉर्ड (सरल कमांक 25) में “घासी/घसिया” जाति दर्ज होने के आधार पर SC प्रमाणपत्र प्राप्त कर सकेंगे।
– यह व्यवस्था उनके संवैधानिक अधिकारों को मजबूती देगी और भविष्य में होने वाली तकनीकी अड़चनों को दूर करेगी।
आगे की राह: आरक्षण में आरक्षण की मांग
समिति अब सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले को लागू कराने की तैयारी में है, जिसमें अनुसूचित जातियों के भीतर पिछड़े और उपेक्षित समूहों को “आरक्षण में आरक्षण” देने का प्रावधान है। लखन लाल सहीस कहते हैं,
“सहीस/सारथी समाज आज भी आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़ा है। हमें विशेष कोटा चाहिए ताकि हमारे युवाओं को न्याय मिल सके।”
जनता की आवाज बनी समिति
इस पत्रकार वार्ता में समाज के गंगाराम सागर, विजय प्रकाश सहीस, कैलाश मोंगरे और शिव कुमार सहीस जैसे नेताओं ने बताया कि यह जीत केवल कागजी नहीं, बल्कि समाज के गरीब तबके की आशाओं को नई उड़ान देगी। उन्होंने प्रशासन से अपील की कि इस परिपत्र को तुरंत और पारदर्शी तरीके से लागू किया जाए।
सहीस समाज की यह जीत साबित करती है कि सामूहिक प्रयास और धैर्य से कानूनी व्यवस्था को जनहित में बदला जा सकता है। अब देखना है कि यह फैसला जमीन पर कितना उतरता है और इन समुदायों के लोगों के चेहरों पर मुस्कान लाता है।
Recent Comments