शुक्रवार, अक्टूबर 18, 2024
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वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक: धार्मिक संपत्ति प्रबंधन में आ रहा है बड़ा बदलाव

भारत में वक्फ बोर्ड एक ऐसी संस्था है, जिसके पास देश की तीसरी सबसे बड़ी भूमि संपदा है। रेलवे और सेना के बाद, वक्फ बोर्ड के पास लगभग 9 लाख 40 हजार एकड़ जमीन है – जो तीन दिल्ली जैसे शहरों को बसाने के लिए पर्याप्त है। लेकिन अब इस शक्तिशाली संस्था के संचालन में बदलाव लाने के लिए संसद में एक नया विधेयक प्रस्तुत किया गया है, जिसने सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच तीखी बहस छेड़ दी है।

वक्फ क्या है?
वक्फ एक इस्लामिक अवधारणा है, जिसका अर्थ है धार्मिक या परोपकारी उद्देश्यों के लिए संपत्ति का दान। यह परंपरा पैगंबर मुहम्मद के समय से चली आ रही है। भारत में, वक्फ की शुरुआत दिल्ली सल्तनत के दौरान हुई मानी जाती है।

वक्फ बोर्ड का इतिहास और कार्य
1954 में, भारतीय संसद ने वक्फ अधिनियम पारित किया, जिसने वक्फ संपत्तियों की देखरेख के लिए वक्फ बोर्ड की स्थापना की। 1947 के विभाजन के बाद, भारत में छोड़ी गई मुस्लिम संपत्तियों को भी वक्फ बोर्ड के अधीन कर दिया गया। वक्फ बोर्ड इन संपत्तियों की देखरेख, प्रबंधन और आय का उपयोग इस्लामिक कार्यों जैसे मस्जिदों, मदरसों, अस्पतालों और अनाथालयों के निर्माण में करता है।

मौजूदा व्यवस्था में वक्फ बोर्ड की शक्तियां
– संपत्तियों पर पूर्ण नियंत्रण
– आय का प्रबंधन और खर्च का निर्धारण
– संपत्तियों को वक्फ घोषित करने का अधिकार
– विवादों पर अंतिम निर्णय का अधिकार
– न्यायालयों के हस्तक्षेप से मुक्ति

प्रस्तावित संशोधन और उनका महत्व
1. गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति: यह बोर्ड को अधिक समावेशी बनाएगा।
2. महिला प्रतिनिधित्व: लैंगिक समानता को बढ़ावा देगा।
3. संपत्ति दावों का सत्यापन: पारदर्शिता बढ़ेगी और विवादों में कमी आएगी।
4. सीएजी ऑडिट: वित्तीय जवाबदेही सुनिश्चित होगी।
5. न्यायिक समीक्षा: निष्पक्ष न्याय की गारंटी मिलेगी।

विपक्ष के तर्क
– धार्मिक स्वायत्तता पर हमला
– मुस्लिम समुदाय के हितों की अनदेखी
– सरकारी हस्तक्षेप का खतरा

वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक एक महत्वपूर्ण कदम है जो वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में आमूल-चूल परिवर्तन ला सकता है। हालांकि इसके समर्थकों का मानना है कि यह पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाएगा, विरोधियों को धार्मिक स्वायत्तता के उल्लंघन की चिंता है। अब एक संयुक्त संसदीय समिति इस विधेयक की जांच करेगी, जिससे सभी पक्षों के विचारों को सुनने और एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाने का अवसर मिलेगा।
यह विधेयक न केवल वक्फ प्रशासन को प्रभावित करेगा, बल्कि यह धार्मिक संस्थाओं के प्रबंधन और राज्य के हस्तक्षेप के बीच संतुलन पर एक व्यापक बहस को भी जन्म देगा। आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर गहन चर्चा और विचार-विमर्श की आवश्यकता होगी ताकि सभी हितधारकों के हितों की रक्षा हो सके।

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