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सोमवार, दिसम्बर 15, 2025
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BALCO का ‘जहरीला’ सच: फ्लोराइड और धूल का स्तर मानकों से 33 गुना ज्यादा; पूर्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल ने PM मोदी से की हस्तक्षेप की मांग

“मान्यता प्राप्त लैब की रिपोर्ट में खुलासा: कोरबा की हवा में घुल रहा धीमा जहर, बच्चों और बुजुर्गों पर मंडराया गंभीर स्वास्थ्य संकट, वेदांता विस्तार परियोजना पर उठे सवाल”

कोरबा/नई दिल्ली (पब्लिक फोरम)। छत्तीसगढ़ की ऊर्जा राजधानी कोरबा में “वेदांता” द्वारा संचालित भारत एल्यूमिनियम कंपनी लिमिटेड (BALCO) पर पर्यावरण नियमों की धज्जियां उड़ाने और जनस्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करने का गंभीर आरोप लगा है। संयंत्र से निकलने वाले खतरनाक रसायनों और धूल का गुबार अब कोरबा के नागरिकों के लिए ‘सांसों का संकट’ बन गया है। इस गंभीर मुद्दे पर पूर्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है।

मानकों से 33 गुना अधिक प्रदूषण: चौंकाने वाली रिपोर्ट
श्री अग्रवाल द्वारा प्रधानमंत्री को प्रेषित पत्र में विमटा लैब्स (Vimta Labs) की जांच रिपोर्ट का हवाला दिया गया है, जो बेहद चिंताजनक है। रिपोर्ट के मुताबिक, बालको की पॉटलाइन-1 और पॉटलाइन-2 से निकलने वाले प्रदूषण का स्तर तय सीमा से कई गुना अधिक है:-

पार्टिकुलेट मैटर (PM): जिसकी अनुमेय सीमा 50 mg/Nm³ है, वह 1400 से 1700 mg/Nm³ तक पाया गया। यह मानक से 27 से 33 गुना अधिक है।

पार्टिकुलेट फ्लोराइड: 0.65 mg/Nm³ की सीमा के मुकाबले यह 8 से 13 mg/Nm³ दर्ज किया गया (11 से 19 गुना अधिक)।

गैसीय फ्लोराइड (HF): सबसे खतरनाक हाइड्रोजन फ्लोराइड का स्तर अनुमेय सीमा (25 mg/Nm³) के मुकाबले 187 mg/Nm³ तक पहुंच गया है।

पीढ़ियों को बीमार बना रहा ‘फ्लोराइड’
विशेषज्ञों के अनुसार, हाइड्रोजन फ्लोराइड (HF) वातावरण की नमी के साथ मिलकर फ्लोराइड आयन बनाता है। यह न केवल हवा, बल्कि मिट्टी और जलस्रोतों को भी दूषित कर रहा है। इसके दुष्परिणाम बेहद भयावह हैं:-

– मानव स्वास्थ्य: दंत और अस्थि फ्लोरोसिस (हड्डियों का टेढ़ा होना), श्वसन रोग, और आंखों में जलन।
– पशुधन और खेती: पशुओं की अकाल मृत्यु, दूध उत्पादन में कमी और फसलों का झुलसना।

पत्र में आशंका जताई गई है कि यदि इसे नहीं रोका गया, तो कोरबा की आने वाली पीढ़ियां गंभीर शारीरिक अक्षमताओं का शिकार हो सकती हैं।

सरकारी हिस्सेदारी के बावजूद ‘बेलगाम’ वेदांता
पत्र में इस बात पर गहरा क्षोभ व्यक्त किया गया है कि बालको में भारत सरकार की 49% हिस्सेदारी होने के बावजूद, कंपनी प्रबंधन पर्यावरण कानूनों का खुला उल्लंघन कर रहा है। श्री अग्रवाल ने सवाल उठाया है कि जब मौजूदा संयंत्र ही प्रदूषण नियंत्रण में विफल है, तो विस्तार परियोजना (क्षमता 5.70 लाख टन से बढ़ाकर 9.40 लाख टन करना) को मंजूरी कैसे दी जा रही है? यह कोरबा को ‘प्रदूषण की प्रयोगशाला’ बनाने जैसा है।

तूतीकोरिन जैसी त्रासदी की आहट?
पूर्व मंत्री ने तमिलनाडु के तूतीकोरिन स्थित स्टरलाइट कॉपर संयंत्र का उदाहरण देते हुए चेतावनी दी है कि पर्यावरण के प्रति ऐसी ही लापरवाही बड़े सामाजिक असंतोष और जनहानि का कारण बन सकती है। उन्होंने हालिया अधिसूचना, जिसमें एल्यूमिनियम फ्लोराइड की खपत सीमा तय की गई है, को नाकाफी बताते हुए कहा कि उत्सर्जन मानकों में ढील देने का कोई कानूनी आधार नहीं है।

क्या है मांग?
कोरबा के नागरिकों और पूर्व मंत्री ने प्रधानमंत्री से संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) के तहत सुरक्षा की गुहार लगाई है। उनकी प्रमुख मांगें हैं:-
– प्रदूषण फैलाने वाली पॉट लाइनों का संचालन तत्काल रोका जाए।
– किसी स्वतंत्र केंद्रीय एजेंसी से तकनीकी और स्वास्थ्य-आधारित जांच हो।
– दोषी अधिकारियों पर दंडात्मक कार्रवाई की जाए।
– प्रभावित किसानों और नागरिकों को उचित मुआवजा मिले।

अब देखना यह होगा कि केंद्र सरकार इस पत्र पर क्या संज्ञान लेती है, क्योंकि यह मामला अब केवल एक कंपनी का नहीं, बल्कि लाखों लोगों की सांसों और भविष्य का है।

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