कोरबा/बालकोनगर (पब्लिक फोरम)। वेदांता समूह के बालको संयंत्र में एक बार फिर सुरक्षा मानकों की गंभीर अनदेखी का मामला सामने आया है, जहाँ 540 मेगावाट पावर प्लांट की यूनिट क्रमांक-4 का इलेक्ट्रोस्टैटिक प्रेसिपिटेटर (ESP) आज सुबह लगभग 6 बजे भरभराकर ढह गया। इस भयावह हादसे में गनीमत यह रही कि किसी भी प्रकार की जनहानि नहीं हुई, लेकिन इसने संयंत्र में काम करने वाले सैकड़ों श्रमिकों की सुरक्षा पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न लगा दिया है।
यह घटना 2009 के उस काले दिन की दर्दनाक यादें ताजा कर गई, जब इसी संयंत्र में एक निर्माणाधीन चिमनी गिरने से 56 से अधिक मजदूरों की मौत हो गई थी। उस भयावह हादसे के बावजूद, ऐसा प्रतीत होता है कि प्रबंधन ने कोई ठोस सबक नहीं सीखा है और आज भी सुरक्षा को ताक पर रखकर उत्पादन को प्राथमिकता दी जा रही है।

रखरखाव के अभाव और चेतावनियों की अनदेखी बनी हादसे की वजह
प्रारंभिक जानकारी के अनुसार, हादसे का मुख्य कारण हॉपर का ओवरलोड होना बताया जा रहा है। लंबे समय से उचित रखरखाव और देखरेख के अभाव में ईएसपी के हॉपर में क्षमता से अधिक राख जमा हो गई थी, जिसके अत्यधिक दबाव के कारण यह पूरा ढांचा ध्वस्त हो गया। सूत्रों का कहना है कि श्रमिकों ने इस समस्या के बारे में प्रबंधन को बार-बार सूचित किया था, लेकिन उनकी चेतावनियों को नजरअंदाज कर दिया गया। यदि समय पर इस पर ध्यान दिया जाता तो यह बड़ा हादसा टाला जा सकता था।
हादसे के बाद पावर प्लांट की यूनिट क्रमांक-4 को तत्काल बंद करना पड़ा है। इस यूनिट के ईएसपी का निर्माण वर्ष 2004-05 के दौरान सेपको नामक कंपनी द्वारा कराया गया था। घटना के संबंध में जब बालको के जिम्मेदार अधिकारियों से संपर्क करने की कोशिश की गई, तो उन्होंने मीडिया के फोन कॉल का जवाब देना भी उचित नहीं समझा, जो प्रबंधन के गैर-जिम्मेदाराना रवैये को दर्शाता है।

ठेका प्रथा और श्रम विभाग की लापरवाही: हादसों को खुला निमंत्रण
बालको प्रबंधन ने पॉवर प्लांट के परिचालन और रखरखाव जैसे महत्वपूर्ण कार्यों का जिम्मा M/S एनजीसीएल, शिव शक्ति और श्री साइन सर्विसेज जैसी ठेका कंपनियों को सौंप रखा है। आरोप है कि प्रबंधन अपनी जिम्मेदारियों से बचने के लिए ऐसा करता है। इस घटना ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि ठेका प्रथा के तहत काम करने वाली कंपनियां अक्सर सुरक्षा मानकों की अनदेखी करती हैं और श्रमिकों का शोषण करती हैं।
जिले का औद्योगिक स्वास्थ्य एवं सुरक्षा विभाग तथा श्रम विभाग भी इस मामले में अपनी जिम्मेदारियों से बच नहीं सकता। स्थानीय कर्मचारियों का आरोप है कि कंपनी के दबाव में श्रम विभाग केवल कागजी कार्रवाई कर अपनी ड्यूटी पूरी कर लेता है, जबकि जमीनी हकीकत कुछ और ही है। संयंत्रों में सुरक्षा नियमों की लगातार हो रही अनदेखी श्रमिकों की जिंदगी को खतरे में डाल रही है। कुछ ही दिन पहले रायपुर स्थित गोदावरी पावर प्लांट में हुए हादसे में छह श्रमिकों की मौत हो गई थी, जो प्रदेश में औद्योगिक सुरक्षा की चिंताजनक स्थिति को उजागर करता है।
2009 चिमनी हादसे का जख्म आज भी हरा
यह पहली बार नहीं है जब बालको संयंत्र में इस तरह की बड़ी लापरवाही सामने आई है। 23 सितंबर 2009 को हुए चिमनी हादसे में 56 से अधिक मजदूरों की जान चली गई थी, जिसका मामला आज भी अदालत में लंबित है। उस हादसे ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था। ऐसा लगता है कि उन मौतों से प्रबंधन ने कोई सबक नहीं लिया और मुनाफा कमाने की होड़ में श्रमिकों की जान की कीमत को भुला दिया गया है।
आज हुए ईएसपी हादसे में किसी की जान न जाना महज एक संयोग है। लेकिन सवाल यह है कि प्रबंधन और संबंधित सरकारी विभाग कब तक ऐसी लापरवाहियों को नजरअंदाज करते रहेंगे? क्या किसी बड़े हादसे के बाद ही उनकी नींद टूटेगी? यह घटना एक चेतावनी है कि अगर समय रहते सुरक्षा मानकों को गंभीरता से नहीं लिया गया, तो भविष्य में इससे भी बड़ी और भयावह दुर्घटना हो सकती है, जिसकी पूरी जिम्मेदारी बालको प्रबंधन और संबंधित सरकारी विभागों की होगी।
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