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बुधवार, फ़रवरी 5, 2025
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निजीकरण के बाद बालको और आज का कामगार

बालको की स्थापना 27 नवंबर 1965 में हुई थी। भारत एल्युमिनियम कंपनी लिमिटेड (बालको) भारत सरकार के खान मंत्रालय के अधीन भारत सरकार के स्वामित्व वाली एल्युमीनियम उत्पादक कंपनी थी, लेकिन इस संयंत्र को सन 2001 में तत्कालीन भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने विनिवेशीकरण नीति के तहत इसके 51 प्रतिशत शेयर स्टरलाइट इंडस्ट्रीज को बेच दिए गए (जो कि बाद में बहुत ही कूटनीतिक ढंग से “वेदांता” में मर्ज हो जाता है।) उसके बाद भारत सरकार की इस एल्युमिनियम उद्योग में केवल 49 प्रतिशत हिस्सा ही बचे। शेयर हस्तांतरण नियमों के तहत जाहिर है कि अब भारत एल्युमिनियम कंपनी का 100 प्रतिशत संचालन वेदांता के हाथों में है। जब भारत एल्युमिनियम कंपनी लिमिटेड की नींव रखी गई थी, उस समय इंडिया गवर्नमेंट की सोच यही थी कि यहां जिस प्रदेश में इस संयंत्र की स्थापना की जा रही है उस प्रदेश के साथ ही साथ अन्य सभी प्रदेश के लोगों को रोजगार मिले, साथ ही उनका जीवन स्तर भी ऊंचा उठाया जा सके। साथ ही छत्तीसगढ़ में एल्युमिनियम अयस्क बॉक्साइट का विशाल भंडारण होने के कारण एक महंगे धातु एल्युमिनियम कारखाना का विकास उड़ीसा आदि की तरह छत्तीसगढ़ में भी शुरुआत की जा सके। लोगों का विकास हो सके इस संयंत्र के आसपास के क्षेत्र का विकास हो सके। मिनी इंडिया के नाम से जाना जाने वाला एल्युमिनियम नगरी के एल्यूमीनियम संयंत्र “बालको” में प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से इस संयंत्र के माध्यम से हजारों लोगों को रोजगार मिला। जिससे उनके परिवार का जीवन यापन और विकास, सामुदायिक विकास, पूरे प्रदेश के विकास के सपनों को साकार करते हुए एल्यूमीनियम कारखाना देश के नवरत्नों में शुमार हो गया।

औद्योगिक विकास के सपनों में खोया हुआ छत्तीसगढ़ धीरे-धीरे आगे बढ़ ही रहा था, लेकिन निजीकरण होने के बाद यहां कार्य कर रहे नियमित कर्मचारियों को दबाव पूर्वक, प्रताड़ित करके जबरदस्ती VRS (स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति नीति के तहत नौकरी से अलग करना) भरवाकर श्रमिकों की छटनी कर दिया गया। साथ ही इस संयंत्र में कार्य कर रहे ठेका श्रमिकों को नियमित करने के बजाय नियमित प्रवृत्ति के कार्यों को ठेका श्रमिकों के हाथों में सौंप दिया गया। वेदांता अधिग्रहित बालको में अनुकंपा नियुक्तियां जैसी अनिवार्य और कल्याणकारी सुविधाओं को बंद कर दिया गया। कुछ समय तक तो यहां के नियमित कर्मचारियों के बच्चों को एम्पलाई वार्ड की भर्ती के नाम पर रोजगार दिया गया (ज्यादातर श्रमिक नेताओं के करीबियों को ही) लेकिन बीते कई सालों से यहां लोकल स्तर पर भर्ती बंद कर दी गई। जिसका खामियाजा यहां के लोकल/मूल निवासियों को भोगना पड़ रहा है। एम्पलाई वार्ड भर्ती के नाम पर अनुकंपा नियुक्ति को भी बंद कर दिया गया जिसका खामियाजा मृतक कर्मचारियों (वह भी केवल नियमित) के परिवार को उठाना पड़ रहा है। आज अनुकंपा नियुक्ति के एवज में महज कुछ राशि देकर के प्रबंधन अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेने का प्रयास करती है। जैसे-जैसे समय बीतता गया कर्मचारियों की सुविधाओं में भी कटौती की जा रही है।
सयंत्र के हर विभाग में नियमित कर्मचारियों को हटाकर उनकी जगह अप्रशिक्षित ठेका श्रमिकों को कम तनख्वाह में नियुक्त कर जोखिम भरा काम करवाया जा रहा है। ठेका श्रमिकों के समान काम के समान वेतन वाली बात को तो भूल ही जाइए। उत्पादक मशीनों की रखरखाव में लगातार बढ़ती लापरवाही के चलते दुर्घटनाएं बढ़ीं हैं। जिसे ज्यादातर छुपाने का प्रयास किया जाता है।जिसका दुष्परिणाम दुर्घटना के रूप में सामने आ ही जाता है। प्रबंधन की ऐसी लापरवाहियों से अनेक श्रमिकों की जान चली गई है। सुरक्षा को दरकिनार कर लापरवाही पूर्वक चिमनी निर्माण दुर्घटना में 56 ठेका श्रमिकों का मौत हो जाना एक दर्दनाक दुखद और शर्मनाक ऐतिहासिक घटना है।

अभी हाल ही में छत्तीसगढ़ प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने के उपरांत सभी राष्ट्रीय ट्रेड यूनियनों ने मिलकर छत्तीसगढ़ के उद्योग एवं श्रम मंत्री श्री लखन लाल देवांगन से औद्योगिक संबंध अधिनियम (आईआर एक्ट) को विलोपित कर औद्योगिक विवाद अधिनियम (आईडी एक्ट) लागू करने की मांग की गई, छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा पूरा भी किया गया। बालको में कार्यरत कर्मचारियों को भी पूरा भरोसा था कि औद्योगिक विवाद अधिनियम के लागू हो जाने से बालको में कुछ नया परिवर्तन देखने को मिलेगा लेकिन लेकिन स्थितियों में आज तक कोई बदलाव नहीं आया है।
ट्रेड यूनियनो की सदस्यता को लेकर के भी बहुत सारे विवाद हैं। बालको में नियमित कर्मचारियों का 11वां वेतन समझौता होना बाकी है जो की 01 अप्रैल से लागू होना है। और प्रबंधन इन विवादों का फायदा उठाकर श्रमिक संगठनों के पंजीयन को कूटनीतिक रूप से खत्म करना चाहती है। या उन्हें पूरी तरह से कमजोर कर देना चाहती है। और सारे श्रमिक संगठनों (जिसमें कथित रूप से प्रतिनिधि संघ इंटक भी शामिल है) को पहले की तरह ही दबाव डालकर, प्रबंधन के पक्ष में पुनः मजदूर विरोधी 11वां वेतन समझौता करवा लेना चाहती है। भारत एल्युमिनियम कंपनी (बालको) में कुल 09 श्रमिक संगठन कार्यरत हैं। जो की बहुत ज्यादा मायने रखता है। लेकिन बालको में दुखद स्थिति यह है कि 9 यूनियनों का शानदार नेतृत्व के बाद भी बालको का मजदूर वर्ग वेदांता से डरा सहमा और भयभीत होकर नौकरी करता है।
बालको में श्रमिक विरोधी स्टैंडिंग ऑर्डर 2013 से आज तक लगातार लागू है। इसके खिलाफ आवाज उठाने के लिए किसी भी यूनियन में हिम्मत नहीं है। बल्कि सारे लोग हाई कोर्ट में जाकर मैनेजमेंट के पक्ष में एफिडेविट कर देते हैं कि यह बढ़िया स्टैंडिंग ऑर्डर है। यानी कि श्रमिकों के लिए फायदेमंद स्टैंडिंग आर्डर है। आई यूनियनों के नजन ऐसा क्यों करते हैं अब यह तो उन्हीं से पूछा जाना चाहिए। बालकों के स्टैंडिंग आर्डर में दर्ज है कि सारे श्रमिकों का सेवा कल 60 साल है। लेकिन प्रबंधन और कुछ श्रमिक संगठन सांठ-गांठ करके ठेका श्रमिकों की सेवा कल को 02 साल कम करवरकर 58 साल करवा देते हैं।  और ठेका श्रमिकों को LTS को बढ़िया वाला अंग्रेजी में समझा दिया जाता है। और उनको भी अपने नेताओं के द्वारा पढ़ाए गए पाठ समझ में आ जाता है कि वह अब ठेका कर्मचारी नहीं है वह अब एटीएस कर्मचारी हैं। वह तो भला हो पूर्ववर्ती भूपेश सरकार का जिन्होंने बालको सहित छत्तीसगढ़ के सारे श्रमिकों का सेवाकाल 2019 (05 अगस्त) से 62 साल करवा दिया है। लेकिन बालको में भयानक विडंबना यह है कि कांग्रेस का श्रमिक संगठन इंटक ने उसे कभी भी 62 साल के सेवाकाल को बालकों में लागू नहीं करवाया। हां, जिन LTS (ठेका श्रमिक) वाले नेताओं ने ठेका श्रमिकों का सेवाकाल 58 साल करवा दिया था, भूपेश सरकार के उक्त राजपत्रीय  आदेश के आधार पर उनका सेवा काल फिर से 58 से 60 जरूर हो तो गया। लेकिन जिन कुछ एक यूनियनों ने इसके लिए जी-जान से पहल किया था उनको वेदांता प्रबंधन के द्वारा साढे तीन, चार साल उक्त यूनियन के पदाधिकारियों को निलंबन का दंश झेलना पड़ा था। लेकिन याद रहे बालकों के वेदांत प्रबंधन में बालकों में कार्यरत कर्मचारियों का 62 साल अभी भी लागू नहीं किया है, और अब इसे लागू करवाने की जिम्मेदारी बालको के सारे ट्रेड यूनियनों की है जो कि 11वां वेतन समझौता में लागू करवा पाना उनकी एकता और संघर्ष के लिए एक चुनौती सिद्ध होगा।

एक जानकारी आ रही है  कि भारतीय जनता पार्टी से समर्थित श्रमिक संगठन बालको कर्मचारी संघ (बीएमएस) के छह निलंबित कर्मियों में से चार  श्रमिकों को प्रबंधन ने नौकरी से बर्खास्त कर दिया है। वेदांता प्रबंधन ने बर्खास्तगी का यह दुस्साहसिक कार्य तब किया है जब प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है। और इस प्रदेश के उद्योग और श्रम मंत्री भारतीय जनता पार्टी के हैं और इसी जिले के हैं। यह बताना और भी दिलचस्प होगा कि इस जिले के उद्योग और श्रम मंत्री ने जैसे ही पदभार संभाला बालको के इन्हीं भारतीय जनता पार्टी समर्थित यूनियन के श्रमिकों के ऊपर लाठी चार्ज करवाया गया ऐसा स्वयं बीएमएस यूनियन का आरोप है।
हालांकि भाजपा समर्थित बीएमएस यूनियन के इन श्रमिकों की बर्खास्तगी के संबंध में प्रबंधन को पूछे जाने पर उन्होंने मीडिया को जवाब देना उचित नहीं समझा। इस संबंध में संबंधित श्रमिक संगठन ने भी चुप्पी साथ लिया है। पत्रकारों का फोन भी नहीं उठाते। वेदांता का डर और दहशत का आलम यह है कि जिन कर्मचारियों को बर्खास्त किया गया है उनसे भी पूछे जाने पर वह और उनके परिवारजन इस संबंध में मीडिया से बात करने के लिए तैयार नहीं हो रहे। उद्योग एवं श्रम मंत्री महोदय द्वारा भी इस संबंध में अनभिज्ञता जाहिर की गई है। भारतीय जनता पार्टी के कोरबा विधायक एवं प्रदेश के उद्योग और श्रम मंत्री के कार्यकाल में और उनके गृह जिला के भाजपा समर्थित यूनियन के श्रमिकों का इस तरह की बर्खास्तगी इस लोक सभा चुनाव में क्या रंग दिखाती है, अब यह तो देखने वाली बात होगी।

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