नई दिल्ली (पब्लिक फोरम)। भारतीय लोकतंत्र के पवित्र मंदिर, उच्चतम न्यायालय में सोमवार को एक ऐसी शर्मनाक घटना घटी जिसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। एक मामले की सुनवाई के दौरान, एक वकील ने भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी.आर. गवई पर जूता फेंकने का प्रयास किया। यह केवल एक व्यक्ति पर हमला नहीं, बल्कि न्यायपालिका की गरिमा और देश के संवैधानिक मूल्यों पर सीधा प्रहार है। इस घटना की चौतरफा निंदा हो रही है, और इसने नागरिक समाज में लोकतांत्रिक चेतना के क्षरण पर एक गंभीर बहस छेड़ दी है।
क्या हुआ अदालत में?
सोमवार सुबह, जब मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली पीठ मामलों की सुनवाई कर रही थी, तभी राकेश किशोर नामक एक वकील ने अचानक अपना जूता निकालकर मुख्य न्यायाधीश की ओर फेंकने की कोशिश की। हालांकि, इससे पहले कि वह अपने मंसूबे में कामयाब हो पाता, अदालत में मौजूद अन्य लोगों ने उसे पकड़ लिया और सुरक्षाकर्मियों ने तुरंत उसे हिरासत में ले लिया। अदालत से बाहर ले जाते समय, किशोर ने “सनातन का अपमान नहीं सहेगा हिंदुस्तान” जैसे नारे लगाए।
इस अप्रत्याशित और अशोभनीय घटना के बावजूद, मुख्य न्यायाधीश गवई ने अद्भुत संयम का परिचय दिया। वे विचलित नहीं हुए और उन्होंने कहा कि ऐसी चीजों से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। उन्होंने आरोपी वकील के खिलाफ किसी भी व्यक्तिगत कार्रवाई की इच्छा नहीं जताई।
शुरुआती जांच और आरोपी वकील के बयानों से पता चलता है कि वह खजुराहो मंदिर में भगवान विष्णु की एक खंडित मूर्ति से जुड़े मामले में मुख्य न्यायाधीश की एक टिप्पणी से नाराज था। वकील राकेश किशोर ने बाद में मीडिया से कहा कि उन्हें अपने किए पर कोई पछतावा नहीं है और यह उनकी “भावनात्मक प्रतिक्रिया” थी।
न्यायपालिका और समाज में आक्रोश की लहर
इस घटना की खबर फैलते ही पूरे देश में, विशेषकर कानूनी और राजनीतिक गलियारों में, आक्रोश की लहर दौड़ गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस कृत्य को “घृणित” करार देते हुए कहा कि इस हमले से हर भारतीय गुस्से में है। उन्होंने मुख्य न्यायाधीश गवई से बात कर अपनी एकजुटता व्यक्त की।
बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) ने त्वरित और सख्त कार्रवाई करते हुए आरोपी वकील राकेश किशोर का लाइसेंस तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) और सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन (SCOARA) ने भी इस घटना की कड़ी निंदा करते हुए इसे न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर सीधा हमला बताया है।
“लोकतांत्रिक चेतना में खतरनाक गिरावट” – ऑल इंडिया लॉयर्स एसोसिएशन फॉर जस्टिस
इस शर्मनाक घटना पर अपनी तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए, ऑल इंडिया लॉयर्स एसोसिएशन फॉर जस्टिस (आइलाज) ने एक बयान जारी कर इसे “लोकतांत्रिक चेतना और नागरिक ज़िम्मेदारी में आई खतरनाक गिरावट” का प्रतीक बताया। आइलाज ने कहा, “जब नागरिकों के अधिकारों और स्वतंत्रता की हिफ़ाज़त के लिए बनी संस्थाओं का इस तरह अवमानना किया जाता है, तो यह न सिर्फ़ उनका अनादर है, बल्कि हमारे लोकतंत्र के मूल स्तंभों में जनता के विश्वास के खतरनाक क्षरण को भी दिखाता है।”
संगठन ने इस बात पर गहरी चिंता व्यक्त की कि यह कृत्य असहमति जताने का कोई लोकतांत्रिक तरीका नहीं, बल्कि “हमारे गणराज्य के संवैधानिक मूल्यों पर सीधा हमला” है। आइलाज ने अंदेशा जताया कि कुछ ताकतें “राष्ट्रवाद” के नाम पर देश की संस्थाओं को कमजोर करने और समाज में अराजकता फैलाने की कोशिश कर रही हैं। एसोसिएशन ने देश के नागरिकों से अपील की है कि वे ऐसे विभाजनकारी और अपमानजनक कार्यों को अस्वीकार करें और न्यायपालिका के प्रति सम्मान बनाए रखें। बयान में कहा गया, “असली देशभक्ति संस्थाओं की हिफ़ाज़त में है, न कि उनके अपमान में।”
एक गहरा सवाल
यह घटना केवल एक व्यक्ति के गुस्से या असहमति का प्रदर्शन नहीं है, बल्कि यह समाज में बढ़ती असहिष्णुता और संवाद की कमी की ओर भी इशारा करती है। न्याय का मंदिर, जहां हर किसी को बिना किसी भय के अपनी बात रखने का अधिकार है, वहां इस तरह की हिंसात्मक और अपमानजनक कार्रवाई गंभीर चिंता का विषय है। यह हम सभी के लिए आत्मचिंतन का समय है कि एक समाज के तौर पर हम किस दिशा में जा रहे हैं, जहां असहमति के लिए हिंसा और अपमान का सहारा लिया जा रहा है। लोकतंत्र का स्वास्थ्य उसकी संस्थाओं के सम्मान पर निर्भर करता है, और न्यायपालिका उस सम्मान के सबसे महत्वपूर्ण स्तंभों में से एक है।
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