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बुधवार, फ़रवरी 5, 2025
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बस्तर में लोकतंत्र पर प्रहार: मूलवासी बचाओ मंच पर प्रतिबंध से उठे सवाल

आदिवासी अधिकारों की आवाज को दबाने का आरोप

बस्तर (पब्लिक फोरम)। बस्तर के आदिवासी अधिकारों के लिए काम करने वाले संगठन ‘मूलवासी बचाओ मंच’ पर छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया है। सरकार ने इसे विकास-विरोधी करार दिया है, जबकि मानवाधिकार संगठन पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) ने इस कदम की कड़ी आलोचना करते हुए इसे लोकतांत्रिक अधिकारों की हत्या बताया है।

क्या है मामला?
पीयूसीएल के मुताबिक, मूलवासी बचाओ मंच शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक तरीके से आदिवासी अधिकारों की आवाज उठाता रहा है। यह मंच पिछले कुछ वर्षों से निर्दोष आदिवासियों की हत्याओं, झूठे मामलों में गिरफ्तारी और ग्रामसभाओं की सहमति के बिना पुलिस कैंपों की स्थापना के खिलाफ आवाज उठा रहा है।
सरकार का कहना है कि यह मंच माओवादी प्रभावित इलाकों में विकास कार्यों के खिलाफ जनता को भड़काने का काम कर रहा है। लेकिन पीयूसीएल का दावा है कि यह आरोप पूरी तरह झूठा है। संगठन केवल पुलिस कैंपों का विरोध कर रहा है, न कि विकास कार्यों का।

क्या वाकई विकास-विरोधी है यह मंच?
मूलवासी बचाओ मंच ने कई बार स्कूलों, स्वास्थ्य सेवाओं और बुनियादी सुविधाओं के लिए आवाज उठाई है। संगठन ने न कभी हिंसा का सहारा लिया और न ही किसी कार्यक्रम में जनता को हथियार उठाने की अपील की।
पीयूसीएल ने सवाल उठाया, “क्या माओवाद प्रभावित क्षेत्रों में सरकार की जन विरोधी नीतियों का विरोध करना अपराध है?” अधिसूचना में भी मंच द्वारा किसी हिंसात्मक गतिविधि का उल्लेख नहीं किया गया है।

संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन?
पीयूसीएल ने इस प्रतिबंध को भारतीय संविधान के अनुच्छेद-19(1)(सी) का उल्लंघन बताया है, जो नागरिकों को संगठित होकर सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक संघ बनाने का मौलिक अधिकार देता है। संगठन का मानना है कि इस कदम के पीछे सरकार का उद्देश्य बस्तर के आदिवासियों की आवाज को दबाना और उनके जंगल-जमीन को कॉरपोरेट घरानों के हाथों सौंपना है।

आरोप: माओवाद उन्मूलन के नाम पर अत्याचार
पीयूसीएल ने राज्य सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि माओवाद उन्मूलन के नाम पर बस्तर में निर्दोष आदिवासियों की फर्जी मुठभेड़ों में हत्या और झूठे मुकदमों में गिरफ्तारी की जा रही है।
जानकारों का मानना है कि इस तरह के प्रतिबंध लोकतंत्र की बुनियादी परंपराओं के खिलाफ हैं। लोकतांत्रिक समाज में विरोध और संवाद का स्थान होना चाहिए।
बस्तर के हालात बताते हैं कि आदिवासियों के अधिकारों और सरकार की नीतियों के बीच टकराव गहरा होता जा रहा है। ऐसे में जरूरी है कि सरकार प्रतिबंध के बजाय संवाद का रास्ता अपनाए।

पीयूसीएल की मांग
पीयूसीएल ने संगठन पर से प्रतिबंध हटाने, गिरफ्तार निर्दोष आदिवासियों को रिहा करने और सरकार से माओवाद के नाम पर हो रहे अत्याचारों को रोकने की मांग की है।
क्या सरकार इस दिशा में कोई ठोस कदम उठाएगी, या यह मुद्दा भी राजनीतिक और सामाजिक बहसों में खो जाएगा? बस्तर के आदिवासियों की उम्मीदें अभी भी जवाब का इंतजार कर रही हैं।

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