सच को बंधक बनाने की साजिश, स्वतंत्र पत्रकारिता पर बढ़ते हमलों का प्रतिरोध करें!
नई दिल्ली (पब्लिक फोरम)। भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन की केंद्रीय समिति ने एक कड़ा बयान जारी कर स्वतंत्र पत्रकारिता पर केंद्र सरकार के बढ़ते दमन और सेंसरशिप की तीखी निंदा की है। यह बयान ऐसे समय में आया है, जब देश में लोकतांत्रिक मूल्यों और संवैधानिक अधिकारों पर अभूतपूर्व संकट मंडरा रहा है।
द वायर, मखतूब मीडिया, द कश्मीरियत, और फ्री प्रेस कश्मीर जैसे प्रतिष्ठित और विश्वसनीय मीडिया मंचों को बिना किसी ठोस कारण के अवरुद्ध करना, साथ ही अनुराधा भसीन जैसे पत्रकारों पर लक्षित सेंसरशिप लागू करना, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर गहरा आघात है। यह न केवल पत्रकारिता के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन है, बल्कि संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों का भी अपमान है।
ऐसे दौर में, जब मुख्यधारा का मीडिया फर्जी खबरों और युद्धोन्मादी प्रचार से सराबोर है, तथ्यपरक और निष्पक्ष पत्रकारिता करने वाले स्वरों को ही व्यवस्थित रूप से चुप कराया जा रहा है। यह विडंबना नहीं, बल्कि एक सुनियोजित रणनीति का हिस्सा प्रतीत होती है। चिंताजनक खबरें सामने आ रही हैं कि केंद्र सरकार ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) को निर्देश दिए हैं कि पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, मीडिया संस्थानों, शिक्षाविदों, और यहाँ तक कि आम नागरिकों के लगभग 8,000 खातों को बिना किसी स्पष्ट औचित्य या कानूनी पारदर्शिता के अवरुद्ध किया जाए। इतने बड़े पैमाने पर डिजिटल सेंसरशिप का यह प्रयास न केवल अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन है, बल्कि लोकतंत्र की बुनियाद को कमजोर करने की कोशिश भी है।
पार्टी ने अपने बयान में इस बात पर जोर दिया कि प्रेस और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को युद्धोन्माद की भेंट नहीं चढ़ाया जा सकता। युद्ध की उन्मादी लहर को शांत करने और शांति की वकालत करने वाले स्वरों को प्रायोजित रूप से निशाना बनाए जाने की भी कड़े शब्दों में निंदा की गई है।
भाकपा (माले) ने सभी न्यायप्रिय और प्रगतिशील भारतीयों से अपील की है कि वे इस दमनकारी नीति के खिलाफ एकजुट होकर खड़े हों। तार्किकता, समझदारी, और सत्य की आवाज को कुचलने की कोशिशों का डटकर मुकाबला करना आज समय की मांग है। स्वतंत्र पत्रकारिता और अभिव्यक्ति की आजादी को बचाने के लिए हमें सामूहिक रूप से आगे आना होगा, ताकि लोकतंत्र की आत्मा को जीवित रखा जा सके।
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