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सोमवार, जुलाई 7, 2025
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श्रम कानूनों के उल्लंघन को अपराध की श्रेणी से मुक्त करने जा रही असम सरकार

ईज आफ डूइंग बिजनेस के नाम पर भाजपा नीत असम सरकार ने विगत 20 दिसंबर को असम विधानसभा के शीत सत्र में उद्योग एवं श्रम कानूनों के उल्लंघन को अपराध की श्रेणी से मुक्त करने के लिए सदन में 10 बिल पेश किए हैं। जिसका सीधा सा मतलब यह है कि अब श्रम कानूनों का उल्लंघन करने वाले जेल नहीं भेजे जाएंगे। किसी कानून का मतलब होता है कि अपराधियों या कानून का उल्लंघन करने वालों को सजा देने की शक्ति। सजा का मतलब होता है जेल और जुर्माना करने का अधिकार। लेकिन हाल में श्रम कानूनों में जो संशोधन किए जा रहे हैं वह कानून को निष्प्रभावी कर देने की कोशिश है।

सीधी सी बात है कि यह संशोधन कोई भी नियुक्त या अधिकारी को श्रम कानूनों के उल्लंघन करने पर और इस तरह मजदूरों को उनके कानूनी अधिकार से वंचित करने पर जेल भेजे जाने से पूरी तरह छूट देते हैं संशोधनों में जेल भेजने की बजाय जुर्माने की राशि को कई गुना बढ़ा दिया गया है। सरकार का यह तर्क है भ्रष्ट अधिकारी नियुक्तियों को कानून की आड़ में परेशान करते हैं इसमें यह भी कहा गया है कि जेल के डर से मुक्त होने पर नियुक्त चिंता करने से बचेंगे और आराम से व्यापार कर सकेंगे सरकार का यह भी सोचना है कि व्यापार में निवेश कम होने के चलते नियोक्ता कानून तोड़ते हैं इसलिए ऐसे उल्लंघन ओं को अपराध मान कर उन्हें जेल भेजना ठीक नहीं है।

दिलचस्प बात यह है कि सरकार के यह सारे तर्क मेहनतकश अवाम के अधिकारों की कीमत पर कानून का उल्लंघन करने वालों की सुविधा पर केंद्रित हैं। उस जनता के अधिकार जो अपने खून पसीने से इस देश की अर्थव्यवस्था को चलाती है उन लोगों द्वारा दरकिनार किए जा रहे हैं जिनके पास इसी जनता के लिए कानून बनाने की ताकत है।

सरकार की यह पूरी तर्क प्रणाली उसके इरादों को स्पष्ट कर देती है आइए जरा इन तर्कों को एक-एक करके समझते हैं। पहले तो सवाल यह है कि सरकार के इन प्यारे नियोक्ताओं को परेशान करने वाले भ्रष्ट अधिकारियों को बचाता कौन है? वही सरकारी मशीनरी तो इन भ्रष्ट अधिकारियों को बचाती है जो आज इन मजदूरों का अधिकार छीन रही है सरकार की छत्रछाया कि बिना तो अफसर कानून का दुरुपयोग कर ही नहीं सकते। सिर्फ ईमानदार अधिकारी कानून का समुचित इस्तेमाल करते हैं और नियोक्ताओं की कानून के उल्लंघन पर सख्त कदम उठाते हैं इसलिए यह तर्क की भ्रष्ट अधिकारी नियुक्तियों को परेशान करते हैं यह बिल्कुल निराधार है।

दूसरे, सरकार से जरा यह पूछा जाए कि मजदूरों को उनके मूलभूत अधिकार ना देने से क्या व्यापार में निवेश को बढ़ाया जा सकता है? यह तर्क नहीं है। बल्कि मुनाफा खोर कंपनियों के खून चूसने के काम को मान्यता देना है यहां यह बता देना भी जरूरी है कि भारत के किसी भी प्रदेश में यहां तक की सबसे ज्यादा औद्योगिक वित्त प्रदेशों में भी ऐसे संशोधन नहीं लाए गए हैं और यह माना जा सकता है कि असम इस तरह के प्रयासों के लिए प्रयोगशाला की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है।

असम सरकार द्वारा प्रस्तावित 8यह संशोधन दरअसल कंपनियों और नियुक्तियों को भरोसा दिलाने के लिए लाए जा रहे हैं कि वह अब जितना मर्जी हो मजदूरों के अधिकारों को कुछ ने उनको सजा देने वाला कोई कानून नहीं होगा अब कंपनियां और नियोक्ता मजदूरों की मजदूरी मारकर जितना मर्जी चाहे मुनाफा कमा सकते हैं क्योंकि अब वह जुर्माने के तौर पर सीधा सरकार को कानूनी रिश्वत दे सकते हैं उन्हें मजदूरों का शोषण करने की सजा से बचने की आजादी दे दी गई है।

असम में ऐक्टू एवं अन्य केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने इन संशोधनों का विरोध किया है और कहा है कि इनसे मजदूरों के अधिकारों के उल्लंघन के मामलों में वृद्धि होगी यूनियनों ने मांग की है कि इन प्रस्तावों को खारिज किया जाए और कोई भी संशोधन के प्रस्ताव मजदूरों और कर्मचारियों की ट्रेड यूनियनों से चर्चा करके सर्वसम्मति से ही लाई जाए सख्त कानून कारपोरेट लूट के रास्ते की रुकावट बन गए हैं और यह संशोधन विधेयक इन कानूनों को कमजोर करने का ही एक रास्ता है ताकि कारपोरेट लूट के लिए रास्ता तैयार किया जा सके असम सरकार असम रिवेन्यू एक्ट में संशोधन करके गैरकानूनी भूमि अधिग्रहण को भी गैर अपराधिक बनाना चाहती है। उनका लक्ष्य साफ है और वह यह कि कारपोरेट भूमि अधिग्रहण को न्याय पूर्ण घोषित किया जा सके इस संशोधन के खिलाफ एक ताकतवर प्रतिरोध खड़ा करना होगा। (आलेख : विवेक दास)

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