रायपुर (पब्लिक फोरम)। छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ आदिवासी नेता अरविंद नेताम द्वारा हाल ही में आदिवासी समुदायों में धर्मांतरण, ईसाई मिशनरियों और नक्सलवाद के बीच कथित संबंधों को लेकर दिए गए बयानों पर सामाजिक और राजनीतिक बहस तेज हो गई है। श्री नेताम ने धर्मांतरण करने वाले आदिवासियों को अनुसूचित जनजाति (एसटी) की सूची से हटाने (डीलिस्टिंग) की भी पुरजोर वकालत की है। इन दावों पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए ‘बस्तर अधिकार मुक्ति मोर्चा’ ने नेताम के आरोपों को ठोस सबूतों से रहित, सांप्रदायिक तनाव बढ़ाने वाला और संवैधानिक रूप से गलत बताया है।
बस्तर अधिकार मुक्ति मोर्चा के मुख्य संयोजक, नवनीत चांद द्वारा जारी एक विस्तृत बयान में कहा गया है कि श्री नेताम के दावे सामाजिक-राजनीतिक और कानूनी दोनों दृष्टिकोणों से गंभीर सवाल खड़े करते हैं। बयान में कहा गया है, “हालांकि अरविंद नेताम की आदिवासी कल्याण और संस्कृति के संरक्षण की चिंता सराहनीय है, लेकिन उनके हालिया आरोप बाहरी एजेंडों से प्रभावित और राजनीतिक रूप से प्रेरित लगते हैं।”
राजनीतिक मंशा और RSS से जुड़ाव पर सवाल
मोर्चा ने नेताम के दावों को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की विचारधारा से प्रेरित बताया है, जिससे आदिवासी नेता नेताम हाल ही में जुड़े हैं। जून 2025 में नागपुर में आरएसएस के एक कार्यक्रम में शामिल होने के बाद नेताम ने धर्मांतरण को आदिवासी समाज के लिए सबसे बड़ी चुनौती बताया था। मोर्चा का कहना है कि श्री नेताम का यह बदलाव तथ्यों पर आधारित न होकर बाहरी प्रभाव को दर्शाता है।
बयान में मिशनरी-नक्सल गठजोड़ के आरोप को विशेष रूप से भड़काऊ और बिना किसी विश्वसनीय प्रमाण वाला बताया गया है। मोर्चा के अनुसार, “नक्सलवाद की जड़ें सामाजिक-आर्थिक असमानताओं, भूमि अधिग्रहण और विकास की विफलता में हैं। इसे एक धार्मिक साजिश से जोड़ना जमीनी हकीकत से ध्यान भटकाना और आदिवासियों की निर्णय क्षमता का अपमान करना है।”
डीलिस्टिंग की मांग असंवैधानिक
कानूनी दृष्टिकोण से, धर्मांतरण करने वाले आदिवासियों को एसटी सूची से बाहर करने की मांग को भारतीय संविधान के मूल अधिकारों का उल्लंघन बताया गया है। बयान में स्पष्ट किया गया है कि संविधान का अनुच्छेद 25 सभी नागरिकों को किसी भी धर्म को मानने, उसका पालन करने और प्रचार करने की स्वतंत्रता देता है। केवल धर्म परिवर्तन के आधार पर किसी को एसटी दर्जे से वंचित करना समानता और गैर-भेदभाव के संवैधानिक सिद्धांतों के खिलाफ होगा।
यह भी रेखांकित किया गया कि आदिवासी दर्जा सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक पिछड़ेपन के आधार पर दिया जाता है, न कि धार्मिक पहचान के आधार पर। ईसाई या अन्य धर्म अपनाने वाले कई आदिवासी आज भी अपनी पारंपरिक संस्कृति और पहचान को बनाए रखते हैं। उन्हें सूची से हटाने से वे शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण जैसे संवैधानिक लाभों से वंचित हो जाएंगे।
जबरन धर्मांतरण के आरोपों का खंडन
बस्तर अधिकार मुक्ति मोर्चा ने बस्तर क्षेत्र में बड़े पैमाने पर जबरन धर्मांतरण के आरोपों को खारिज किया है। बयान के अनुसार, “कई आदिवासी शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक समर्थन के लिए मिशनरी संस्थानों की ओर जाते हैं, खासकर उन इलाकों में जहां सरकारी सुविधाएं नगण्य हैं। इन धर्मांतरणों को ‘जबरन’ या ‘प्रलोभन’ कहना आदिवासियों की अपनी समझ और स्वायत्तता पर सवाल उठाना है।”
मोर्चा ने श्री नेताम से आग्रह किया है कि वे निराधार आरोप लगाने के बजाय आदिवासियों के वास्तविक मुद्दों जैसे खनन से विस्थापन, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी, शिक्षा में असमानता और पेसा कानून के प्रभावी कार्यान्वयन पर ध्यान केंद्रित करें।
अंत में, नवनीत चांद ने कहा, “अरविंद नेताम का आदिवासी अधिकारों के लिए लंबा संघर्ष सराहनीय रहा है, लेकिन धर्मांतरण और डीलिस्टिंग पर उनके हालिया बयान आदिवासी समाज में विभाजन पैदा कर सकते हैं। विभाजन नहीं, संवाद ही आदिवासी पहचान और न्याय की रक्षा का सही मार्ग है।”
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