back to top
होमआसपास-प्रदेशभू-विस्थापितों का फूटा गुस्सा: कुसमुंडा खदान सुबह 6 बजे से बंद, रोजगार...

भू-विस्थापितों का फूटा गुस्सा: कुसमुंडा खदान सुबह 6 बजे से बंद, रोजगार और जमीन की मांग तेज!

कोरबा (पब्लिक फोरम)। छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (एसईसीएल) की कुसमुंडा खदान में भू-विस्थापितों का आक्रोश फूट पड़ा। रोजगार, जमीन वापसी, बसावट और मूलभूत सुविधाओं की मांग को लेकर छत्तीसगढ़ किसान सभा और भू-विस्थापित रोजगार एकता संघ के नेतृत्व में सैकड़ों प्रभावित ग्रामीणों ने सुबह 6 बजे से कोयला परिवहन ठप कर दिया। इस हड़ताल ने मेगा कोल प्रोजेक्ट को 5 घंटे तक पूरी तरह बंद रखा, जिससे कोयला उत्पादन और परिवहन पर बड़ा असर पड़ा।

आंदोलन की वजह: दशकों पुराना भू अधिग्रहण का दर्द
कुसमुंडा, गेवरा, और दीपका खदानों के लिए 1978 से 2004 के बीच हजारों एकड़ जमीन अधिग्रहित की गई। इन जमीनों पर बसे किसानों ने अपनी आजीविका का आधार खो दिया। वादों के बावजूद, कई परिवारों को न रोजगार मिला, न ही उचित मुआवजा या पुनर्वास। भू-विस्थापितों का कहना है कि उनकी जमीनें तो छीन ली गईं, लेकिन बदले में उन्हें सिर्फ आश्वासन और लंबी कागजी प्रक्रियाएं मिलीं।

प्रशांत झा, छत्तीसगढ़ किसान सभा के नेता, ने कहा, “हमारी जमीनें विकास के नाम पर ले ली गईं, लेकिन हमारी जिंदगी बद से बदतर हो गई। रोजगार के लिए 40-50 साल से चक्कर काट रहे हैं। अब और बर्दाश्त नहीं।”

मांगें: रोजगार, जमीन और सम्मान
आंदोलनकारी कई ठोस मांगों पर अड़े हैं:
– रोजगार: 1978-2004 के बीच अधिग्रहित जमीन के प्रत्येक खातेदार को तत्काल रोजगार दिया जाए। बिलासपुर मुख्यालय में लंबित फाइलों का तुरंत निराकरण हो।
– जमीन वापसी: खमहरिया गांव की पहले अधिग्रहित जमीन मूल किसानों को लौटाई जाए।
– पुनर्वास: भैसमाखार जैसे विस्थापित गांवों में बसावट के साथ बिजली, पानी, सड़क जैसी मूलभूत सुविधाएं दी जाएं।
– मुआवजा और आउटसोर्सिंग: मुआवजे में कटौती बंद हो और आउटसोर्सिंग कार्यों में स्थानीय विस्थापितों को प्राथमिकता मिले

आंदोलन में शामिल बृजमोहन, एक विस्थापित किसान, ने भावुक होकर कहा, “हमारी जमीन थी, हमारा घर था। अब न खेत बचा, न रोजगार। हमारे बच्चे भूखे हैं, हमारी आवाज कौन सुनेगा?” उनकी बातें हर उस परिवार की पीड़ा को बयां करती हैं, जो विकास की बलि चढ़ गया।

हड़ताल का असर: खदान ठप, प्रशासन पर दबाव
सुबह 6 बजे से शुरू हुई हड़ताल में सैकड़ों भू-विस्थापितों ने कुसमुंडा खदान के सतर्कता चौक पर कोयला ढोने वाली गाड़ियों को रोक दिया। कोयला परिवहन पूरी तरह बंद रहा, जिससे खदान का उत्पादन रुक गया। आंदोलन में बृजमोहन, दीनानाथ, होरी, जय कौशिक जैसे कई ग्रामीणों ने हिस्सा लिया।

एसईसीएल प्रबंधन ने आंदोलन को “अनावश्यक” बताते हुए कहा कि नए नियमों के तहत पुराने वादों को लागू करना मुश्किल है। लेकिन विस्थापितों का आरोप है कि प्रबंधन केवल कोयला उत्पादन बढ़ाने में लगा है, उनकी समस्याओं की अनदेखी कर रहा है। कुछ ग्रामीणों ने फर्जी दस्तावेजों से अपात्र लोगों को नौकरी देने के मामले भी उठाए।

भूविस्थापन: टूटे सपने, बिखरे परिवार
यह आंदोलन सिर्फ रोजगार या मुआवजे की मांग नहीं, बल्कि खोए हुए सम्मान और आजीविका की पुकार है। जरहाजेल गांव के बलराम कश्यप और बरपाली के बेदराम जैसे कुछ विस्थापितों को लंबे संघर्ष के बाद रोजगार मिला, लेकिन सैकड़ों अब भी इंतजार में हैं। 1983 और 1988 में उनकी जमीनें ली गई थीं, और 40 साल बाद भी उनकी जिंदगी अधूरी है।

क्या है भविष्य?
छत्तीसगढ़ किसान सभा ने चेतावनी दी है कि अगर मांगें पूरी नहीं हुईं, तो वे कोयला परिवहन बार-बार बंद करेंगे। 1 जनवरी 2025 से अनिश्चितकालीन खदान बंद करने की भी धमकी दी गई है।

वहीं, एसईसीएल का कहना है कि वे पुराने प्रकरणों को निपटाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन नियमों में बदलाव और सीमित संसाधन चुनौती हैं। प्रशांत झा ने जवाब दिया, “अगर कोयला निकालने के लिए नए नियम बन सकते हैं, तो फिर भूस्थापितों के  लिए क्यों नहीं?”

कुसमुंडा खदान का यह आंदोलन सिर्फ कोरबा की कहानी नहीं, बल्कि पूरे देश में भू-विस्थापन की त्रासदी का प्रतीक है। यह उन लाखों लोगों की आवाज है, जिन्होंने विकास के लिए अपनी जड़ें खो दीं। सरकार और एसईसीएल के लिए यह समय है कि वे सिर्फ कोयला उत्पादन पर नहीं, बल्कि इंसानी जिंदगियों पर ध्यान दें।

क्या इन विस्थापितों को उनका हक मिलेगा? क्या उनकी आवाज सुनी जाएगी? यह सवाल कोरबा की धरती से उठकर देशभर में गूंज रहा है।

RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments