दुर्ग (पब्लिक फोरम)। पाकिस्तान के साथ बढ़ते तनाव के बीच छत्तीसगढ़ के दुर्ग-भिलाई शहर में आज एक अनोखा दृश्य देखने को मिला। शाम होते ही पूरा शहर अंधेरे में डूब गया। घरों की बत्तियां बुझीं, दुकानों के शटर बंद हुए, और सड़कों पर चलती गाड़ियां एकाएक रुक गईं। यह कोई बिजली संकट नहीं था, बल्कि हवाई हमले से बचाव के लिए की गई एक विशेष मॉकड्रिल थी। देश के 244 शहरों में आयोजित इस अभ्यास में दुर्ग-भिलाई ने भी अपनी तैयारियों का शानदार प्रदर्शन किया। भिलाई स्टील प्लांट जैसे रणनीतिक महत्व के केंद्र को देखते हुए इस शहर को विशेष रूप से अलर्ट पर रखा गया था।
दो चरणों में हुआ अभ्यास, दिखा शहर का जज्बा
दुर्ग में यह मॉकड्रिल दो चरणों में आयोजित की गई। पहला चरण दोपहर 4 बजे शुरू हुआ, जो करीब डेढ़ घंटे तक चला। इस दौरान स्टेट डिजास्टर रिस्पॉन्स फोर्स (SDRF) ने आग लगने की स्थिति में त्वरित कार्रवाई और घायल जवानों को सुरक्षित निकालने की प्रक्रिया का प्रदर्शन किया। सिविल डिफेंस की टीमें भी सक्रिय रहीं, जिन्होंने आपातकाल में नागरिकों की सुरक्षा के लिए जरूरी कदमों को समझाया। सूर्या मॉल जैसे भीड़भाड़ वाले इलाके में भी ब्लैकआउट का अभ्यास किया गया, जिसने लोगों को युद्ध जैसी स्थिति में अनुशासन और सतर्कता का महत्व समझाया।
दूसरा चरण और भी रोमांचक था। शाम 7:30 बजे पूरे शहर में ब्लैकआउट लागू किया गया। घर, दुकानें, और सड़कें अंधेरे में डूब गईं। इस दौरान प्रशासन के अधिकारी और विशेषज्ञ नागरिकों को हवाई हमले से बचने की तकनीकों के बारे में जानकारी देते रहे। सड़कों पर सन्नाटा और अंधेरा देखकर हर कोई इस अभ्यास की गंभीरता को समझ रहा था। यह नजारा न केवल तकनीकी तैयारी का प्रदर्शन था, बल्कि शहरवासियों की एकजुटता और देश के प्रति उनकी प्रतिबद्धता का प्रतीक भी था।
क्यों जरूरी थी यह मॉकड्रिल?
पाकिस्तान के साथ सीमा पर तनाव और भिलाई स्टील प्लांट जैसे रणनीतिक केंद्र की मौजूदगी ने दुर्ग को इस अभ्यास के लिए महत्वपूर्ण बनाया। भिलाई स्टील प्लांट न केवल छत्तीसगढ़ की आर्थिक धुरी है, बल्कि देश की औद्योगिक ताकत का भी प्रतीक है। युद्ध की स्थिति में ऐसे केंद्र दुश्मनों के निशाने पर हो सकते हैं। इसलिए, प्रशासन ने इस मॉकड्रिल के जरिए न केवल सुरक्षा बलों को प्रशिक्षित किया, बल्कि आम नागरिकों को भी आपातकाल के लिए तैयार करने की कोशिश की।
दुर्ग निवासी बलदेव यादव ने भावुक होकर कहा, “जब पूरा शहर एक साथ अंधेरे में डूब गया, तो हमें अहसास हुआ कि देश की सुरक्षा के लिए हम सबको एकजुट होना होगा। यह अनुभव डराने वाला था, लेकिन हमें आत्मविश्वास भी मिला कि हम तैयार हैं।”
मानवीय संवेदना और तकनीकी तैयारी का संगम
यह मॉकड्रिल केवल तकनीकी अभ्यास नहीं थी, बल्कि इसमें मानवीय संवेदनाओं का भी गहरा समावेश था। SDRF और सिविल डिफेंस की टीमें घायलों को बचाने और आग पर काबू पाने जैसे कार्यों में जितनी तत्परता दिखा रही थीं, उतनी ही संवेदनशीलता के साथ वे नागरिकों को समझा भी रही थीं। एक तरफ जहां प्रशिक्षण का माहौल गंभीर था, वहीं दूसरी तरफ शहरवासियों का उत्साह और सहयोग देखकर हर कोई प्रभावित था।
देशभर में एक साथ अभ्यास
दुर्ग-भिलाई के अलावा देश के 243 अन्य शहरों में भी यह मॉकड्रिल आयोजित की गई। इसका उद्देश्य था पूरे देश को युद्ध जैसी आपात स्थिति के लिए तैयार करना। विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसी तैयारियां न केवल सुरक्षा बलों को मजबूत करती हैं, बल्कि नागरिकों में भी जागरूकता और आत्मविश्वास पैदा करती हैं।
चुनौतियां और भविष्य की राह
हालांकि यह मॉकड्रिल सफल रही, लेकिन कुछ चुनौतियां भी सामने आईं। कुछ इलाकों में लोगों को ब्लैकआउट के महत्व को समझने में समय लगा। प्रशासन का कहना है कि भविष्य में और अधिक जागरूकता अभियान चलाए जाएंगे ताकि हर नागरिक इस तरह के अभ्यास में सक्रिय रूप से भाग ले सके।
एक संदेश: हम तैयार हैं
दुर्ग-भिलाई की इस मॉकड्रिल ने न केवल सुरक्षा बलों की तैयारियों को परखा, बल्कि आम नागरिकों को भी देश की सुरक्षा में उनकी भूमिका का अहसास कराया। यह अभ्यास एक कड़ा संदेश देता है कि भारत किसी भी आपातकाल के लिए तैयार है। जैसा कि एक प्रशासनिक अधिकारी ने कहा, “यह केवल एक रिहर्सल नहीं थी, बल्कि हमारी एकता और ताकत का प्रदर्शन था।”
दुर्ग के इस अभ्यास ने न केवल तकनीकी तैयारी को रेखांकित किया, बल्कि एक भावनात्मक संदेश भी दिया कि जब देश की बात आती है, तो हर नागरिक एक सैनिक है। यह मॉकड्रिल भविष्य की चुनौतियों के लिए एक मजबूत नींव रखती है और देशवासियों को एकजुट रहने का आह्वान करती है।
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