नई दिल्ली (पब्लिक फोरम)। अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसिएशन (AIPWA) ने 25 वर्षीय प्रतिभाशाली राज्य-स्तरीय टेनिस खिलाड़ी और कोच राधिका यादव की निर्मम हत्या की कड़ी निंदा की है। आरोप है कि गुरुग्राम स्थित उनके घर में उनके पिता ने ही गोली मारकर उनकी हत्या कर दी। राधिका ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व किया था और अपनी मृत्यु के समय वह अन्य युवा खिलाड़ियों को कोचिंग दे रही थीं।
साधारण जीवन से उठकर खेल की दुनिया तक का सफर
राधिका यादव का जीवन एक प्रेरणा थी। उन्होंने खेल के मैदान पर न केवल अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया, बल्कि एक कोच के रूप में नई पीढ़ी को भी तराश रही थीं। उनका यह दुखद अंत, किसी “क्षणिक भूल” का परिणाम नहीं, बल्कि एक ऐसे समाज का आईना है जो एक स्वतंत्र, मुखर युवा महिला को बर्दाश्त नहीं कर पाता। उनके करीबी दोस्तों ने बताया है कि राधिका को उनके पहनावे के लिए शर्मिंदा किया जाता था, उन पर लगातार निगरानी रखी जाती थी और अपने ही घर में घुटन महसूस कराई जाती थी। यह त्रासदी, जन्म देने वाले परिवार के भीतर होने वाली हिंसा की निरंतरता और अदृश्यता के एक बड़े, व्यवस्थित संकट की ओर इशारा करती है।
पारिवारिक हिंसा: एक अनदेखा सच
भारत में घरेलू हिंसा पर पारंपरिक रूप से ध्यान वैवाहिक घर तक ही सीमित रहा है। लेकिन कई अध्ययनों और पीड़ितों के बयानों से यह स्पष्ट होता है कि जन्म देने वाले परिवार, जिनमें माता-पिता, भाई-बहन और विस्तारित रिश्तेदार शामिल हैं, अक्सर नियंत्रण, दुर्व्यवहार और दंड का पहला स्थल होते हैं। यह विशेष रूप से तब होता है जब महिलाएं अपनी स्वायत्तता का दावा करती हैं, अपने रिश्तों को चुनती हैं या लैंगिक मानदंडों को चुनौती देती हैं। दुख की बात यह है कि जन्म देने वाले परिवार से होने वाली हिंसा को मान्यता देने या संबोधित करने के लिए कोई समर्पित कानूनी ढांचा मौजूद नहीं है। यह कमी महिलाओं की सुरक्षा, स्वतंत्रता और जीवन की कीमत पर जारी है।

साम्प्रदायिकरण का निंदनीय प्रयास
हम राधिका की मृत्यु के साम्प्रदायिकरण से भी बेहद आहत हैं। दक्षिणपंथी सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं ने केवल इसलिए निराधार “लव जिहाद” के दावे प्रसारित किए क्योंकि वह एक मुस्लिम कलाकार के साथ एक पेशेवर वीडियो में दिखाई दी थीं। लिंग-आधारित हिंसा के मामले को साम्प्रदायिक रंग देने का यह घृणित प्रयास हिंदुत्व की पितृसत्तात्मक सोच को दर्शाता है, जहां महिलाओं के शरीर, उनकी पसंद और सार्वजनिक उपस्थिति को सम्मान और राष्ट्रवाद के नाम पर नियंत्रित किया जाता है।

न्याय की मांग और व्यवस्थागत बदलाव की आवश्यकता
राधिका की कहानी कोई अपवाद नहीं है। यह एक अनुस्मारक है कि पितृसत्ता परिवार के भीतर ही पनपती है, और महिलाओं के स्वतंत्र रूप से जीने के अधिकार को अभी भी एक खतरे के रूप में देखा जाता है। मीडिया को जिम्मेदार भूमिका निभानी चाहिए, सनसनीखेजता से बचना चाहिए और जो व्यवस्थागत हिंसा मौजूद है, उसे केंद्र में लाना चाहिए। राज्य को परिवार को एक पवित्र, अछूत संस्था के रूप में ढालना बंद करना चाहिए और ऐसे तंत्र बनाने चाहिए जो जन्म देने वाले परिवार से होने वाली हिंसा को स्वीकार करें और उसका निवारण करें।
AIPWA राधिका के लिए न्याय की मांग करती है और घर से शुरू होने वाली हिंसा का सामना करने के लिए नए सिरे से राजनीतिक इच्छाशक्ति का आह्वान करती है। यह समय है कि हम डर के बिना न्याय, स्वायत्तता और स्वतंत्रता के लिए सड़कों पर उतरें और अपने समाज को महिलाओं के लिए सुरक्षित बनाएं।
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