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शनिवार, अप्रैल 12, 2025
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भू-विस्थापन और रोजगार की पीड़ा: कोयला मंत्री के दौरे पर जनआवाज़ को पुलिस ने रोका, प्रदर्शनकारी सीनियर क्लब में नजरबंद!

भू-विस्थापितों की पुकार: पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को कोयला मंत्री से मिलने से पहले रोका, अधिकारियों की नीतियों के खिलाफ था विरोध

कोरबा (पब्लिक फोरम)। छत्तीसगढ़ के गेवरा क्षेत्र में कोयला मंत्री के दौरे के दौरान एक भावुक और संवेदनशील दृश्य सामने आया, जब अपने अधिकारों और न्याय की मांग कर रहे भू-विस्थापितों और किसानों को पुलिस ने प्रदर्शन से पहले ही रोक लिया। यह प्रदर्शन छत्तीसगढ़ किसान सभा और भूविस्थापित रोजगार एकता संघ के नेतृत्व में होना था, जिसमें एसईसीएल (SECL) के सीएमडी और बोर्ड सदस्यों की नीतियों के खिलाफ जोरदार विरोध की तैयारी की गई थी।

प्रदर्शनकारियों का कहना है कि जिन अधिकारियों ने रोजगार-विरोधी और मानव-विरोधी नीतियां बनाई हैं, वे ज़मीन गंवाने वाले लोगों की तकलीफों को नजरअंदाज कर रहे हैं। लोगों का आक्रोश कोयला मंत्री तक पहुँचाने और उन्हें काले झंडे दिखाकर अपनी पीड़ा जताने का था। लेकिन, इससे पहले ही पुलिस प्रशासन ने उन्हें सीनियर रिक्रेशन क्लब में रोक दिया।

पुलिस का भरोसा और प्रदर्शनकारियों की उम्मीदें

पुलिस प्रशासन ने प्रदर्शनकारियों को समझाते हुए कहा कि उन्हें अपनी मांगें रखने और ज्ञापन सौंपने का पूरा मौका दिया जाएगा। लेकिन प्रदर्शनकारियों का कहना है कि केवल आश्वासन नहीं, व्यावहारिक समाधान चाहिए।

इस पूरे आंदोलन की अगुवाई कर रहे किसान सभा के वरिष्ठ नेता प्रशांत झा, भूविस्थापित संघ के प्रतिनिधि रेशम यादव, दामोदर श्याम, जय कौशिक, सुमेन्द्र सिंह, और रघु यादव समेत बड़ी संख्या में लोग पुलिस की रोक के बावजूद अपनी आवाज़ बुलंद करने पर अडिग हैं।

भू-विस्थापन की त्रासदी और रोजगार की अनदेखी

इन प्रदर्शनकारियों में अधिकतर वे लोग हैं, जिनकी ज़मीनें विकास के नाम पर ली गईं, लेकिन उन्हें न उचित मुआवज़ा मिला, न ही स्थायी रोजगार। सरकारी नीतियों की असंवेदनशीलता, और अधिकारियों की निष्क्रियता ने इन लोगों को आज सड़क पर ला खड़ा किया है।

इंसाफ की उम्मीद, शांतिपूर्ण विरोध

प्रदर्शनकारियों का रुख अब भी शांतिपूर्ण है, लेकिन उनमें गहरा दर्द और नाराज़गी है। उनका कहना है कि अगर अब भी सरकार ने उनकी बात नहीं सुनी, तो वे आंदोलन को तेज़ करने पर मजबूर होंगे।

इस पूरी घटना में यह साफ दिखता है कि प्रशासनिक नीतियों और ज़मीनी हकीकत के बीच गहरी खाई है। कोयला मंत्री के सामने प्रदर्शन करने की इच्छा रखने वाले लोग कोई अपराधी नहीं, बल्कि अपने अधिकारों के लिए लड़ रहे आम नागरिक हैं। यह मामला केवल विरोध का नहीं, बल्कि एक बड़ी मानवीय पीड़ा और हक की मांग का है।

यह घटना छत्तीसगढ़ के विकास के साथ-साथ, वहां के लोगों की वास्तविक समस्याओं की ओर भी इशारा करती है। ज़मीन गंवाने वाले लोग केवल रोजगार नहीं, सम्मान और पहचान की तलाश में हैं। अब देखना यह होगा कि सरकार और मंत्री इन भावनाओं को समझते हैं या एक और आश्वासन देकर मामले को टाल देते हैं।

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