नई दिल्ली (पब्लिक फोरम)। अमेरिकी न्याय प्रणाली द्वारा अडानी समूह पर भारतीय अधिकारियों को रिश्वत देने और अमेरिकी कानूनों का उल्लंघन कर सोलर पावर परियोजनाओं के लिए महंगे ठेके हासिल करने का आरोप भारत के लिए एक गंभीर चेतावनी है। यह मामला न केवल अडानी समूह की कथित आपराधिक गतिविधियों को उजागर करता है, बल्कि भारत की नियामक प्रणाली और मोदी सरकार पर भी सवाल खड़े करता है, जो इस समूह को संरक्षित करने और बढ़ावा देने के आरोपों का सामना कर रही है।
अमेरिका में हुए खुलासे और भारत की प्रतिक्रिया
पिछले वर्ष, जब हिंडनबर्ग रिपोर्ट ने अडानी समूह पर भारी वित्तीय घोटाले का खुलासा किया, तब मोदी सरकार ने इस समूह को बचाने के लिए हर संभव प्रयास किया। यहां तक कि भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) पर भी सवाल उठे कि उसने घोटाले की जांच में क्यों ढील दी। अब, अमेरिकी अदालत में रिश्वतखोरी के आरोपों ने इस मामले को और गंभीर बना दिया है।
अडानी समूह पर आरोप है कि उसने 2,029 करोड़ रुपये (265 मिलियन अमेरिकी डॉलर) की रिश्वत देकर अनुचित लाभ अर्जित किया। यह न केवल भारत की अर्थव्यवस्था बल्कि आम उपभोक्ताओं के हितों पर भी सीधा प्रहार है।
यदि मोदी सरकार इस गंभीर मामले में तत्काल जांच का आदेश नहीं देती है, तो भारत के सुप्रीम कोर्ट को स्वत: संज्ञान लेना चाहिए। इस मामले के भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि और अर्थव्यवस्था पर दूरगामी प्रभाव पड़ सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट को एक न्यायिक निगरानी वाली सीबीआई जांच का आदेश देना चाहिए ताकि सच्चाई सामने आ सके।
भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) के मौजूदा अध्यक्ष को तत्काल हटाने की आवश्यकता है। यह ज़रूरी है कि भारत की निवेश नियामक प्रणाली को पारदर्शी और मजबूत बनाया जाए।
सीपीआई (एम एल) के महासचिव का बयान
भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने कहा, “यह मामला केवल अडानी समूह की वित्तीय धोखाधड़ी तक सीमित नहीं है। यह भारत में हुए एक बड़े भ्रष्टाचार का मामला है। मोदी सरकार को अपनी ज़िम्मेदारी निभानी चाहिए और इस मामले की निष्पक्ष जांच करानी चाहिए। यदि सरकार ऐसा करने में असफल रहती है, तो सुप्रीम कोर्ट को अपनी संवैधानिक भूमिका निभानी होगी।”
भारत के भविष्य पर प्रभाव
यह मामला केवल एक कॉर्पोरेट समूह के गलत कामों का नहीं, बल्कि भारत की संस्थाओं की विश्वसनीयता और पारदर्शिता पर सवाल उठाने का है। यदि इसे गंभीरता से नहीं लिया गया, तो भारत की अर्थव्यवस्था और अंतरराष्ट्रीय छवि को भारी नुकसान हो सकता है।
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