नई दिल्ली (पब्लिक फोरम)। दिल्ली की सियासत में एक बार फिर बड़ा उलटफेर! 70 सीटों वाली विधानसभा में भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने 48 सीटों पर जीत का परचम लहराया, जबकि आम आदमी पार्टी (AAP) महज 22 सीटों तक सिमट गई। कांग्रेस लगातार दूसरी बार शून्य पर रही। यह नतीजे न केवल AAP के लिए झटका हैं, बल्कि दिल्ली के मतदाताओं के बदलते रुझान का भी साफ संकेत देते हैं।
– BJP का मत प्रतिशत 9% बढ़कर 45% हुआ, जबकि AAP का वोट शेयर 10% गिरकर 32% रह गया।
– कांग्रेस को 2% वोट मिले, लेकिन एक भी सीट नहीं।
– शर्मनाक हार: CM अरविंद केजरीवाल समेत AAP के 8 वरिष्ठ नेता चुनाव हारे। नई दिल्ली और जंगपुरा जैसे पॉश इलाकों में AAP को करारी शिकस्त।
अरविंद केजरीवाल 2013 में “भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन” की लहर पर सत्ता में आए थे। लेकिन आज उन पर शराब घोटाले, महंगे आवास बनाने, और जाति-धर्म की राजनीति करने के आरोप लग रहे हैं। यही वजह है कि दिल्ली का मध्यवर्ग और उच्च आय वर्ग, जो AAP को “अलग” मानता था, अब BJP के साथ जुड़ गया।
दलित-मुस्लिम वोट ने बचाई AAP की इज्जत!
– SC/ST आरक्षित 12 सीटों में से 8 पर AAP जीती।
– 11 अल्पसंख्यक क्षेत्रों में भी 8 सीटें AAP के खाते में।
– लेकिन मध्यवर्गीय इलाकों में BJP ने AAP को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया।
मतगणना से पहले PM मोदी ने घोषणा की थी: “दिल्ली में BJP की सरकार बनी, तो केजरीवाल की योजनाएं जारी रहेंगी।” यह बयान AAP के “कल्याणकारी राज्य” के नारे को कमजोर करने वाला साबित हुआ। जनता ने सोचा: “अगर BJP भी वही काम करेगी, तो AAP की जरूरत क्यों?”
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा: “2030 में हम दिल्ली की सरकार बनाएंगे।” 2024 में AAP-कांग्रेस गठबंधन के बावजूद BJP के सामने एक भी सीट न जीत पाना, गठबंधन राजनीति पर सवाल खड़े करता है। शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित ने केजरीवाल के खिलाफ माहौल बनाने में अहम भूमिका निभाई।
सबक: राजनीति में ‘विचार’ जरूरी, नहीं तो…
– BSP, RJD, AIMIM जैसे दलों को दिल्ली की जनता ने साफ मना कर दिया।
– मायावती की BSP एक भी सीट न जीत सकी।
– सबक: जाति-धर्म के नारों से आज की पीढ़ी को भरमाया नहीं जा सकता।
आगे का रास्ता: AAP के लिए चुनौतियां
– नैतिक संकट: भ्रष्टाचार के आरोपों ने पार्टी की छवि धूमिल की।
– नेतृत्व संकट: केजरीवाल और सिसोदिया की हार से टॉप लीडरशिप खाली।
– विचारधारा का संकट: BJP के एजेंडे के करीब दिखने वाली AAP अब विपक्ष की भूमिका कैसे निभाएगी?
दिल्ली ने साबित कर दिया कि वह “काम” और “विचार” दोनों चाहती है। AAP ने स्कूल-क्लिनिक बनाए, लेकिन भ्रष्टाचार और नेताओं के “दोहरे चरित्र” ने उसे पीछे धकेल दिया। अब देखना है, क्या केजरीवाल इस हार से सबक लेंगे या फिर AAP दिल्ली की सियासत से गायब हो जाएगी?
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