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शनिवार, अप्रैल 19, 2025
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अबूझमाड़ में माओवादियों को करारा जवाब: सुरक्षा बलों ने बरामद किया हथियारों और नकदी का जखीरा

रायपुर (पब्लिक फोरम)। छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले के अबूझमाड़ के घने जंगलों में सुरक्षा बलों ने माओवादियों के खिलाफ एक और बड़ी जीत हासिल की है। माओवादियों के साथ तीखी मुठभेड़ के बाद सुरक्षा बलों ने 6 लाख रुपये नकद, 11 लैपटॉप, 50 किलोग्राम विस्फोटक सामग्री और अन्य संदिग्ध सामान बरामद किया है। यह सफलता नक्सल विरोधी अभियान में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो बस्तर के आदिवासी इलाकों में शांति और विकास की उम्मीद जगाती है।

मुठभेड़ और बरामदगी: सुरक्षा बलों की सतर्कता
जिला रिजर्व गार्ड (डीआरजी) और भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) की 41वीं बटालियन की संयुक्त टीम ने चार दिन पहले शुरू हुए “माड़ बचाओ” अभियान के तहत पदमकोट पुलिस कैंप से ऑपरेशन शुरू किया था। शुक्रवार सुबह कोहकामेटा क्षेत्र के कसोड़-कुमुराड़ी जंगल में माओवादियों ने अचानक हमला कर दिया। लेकिन सुरक्षा बलों की मुस्तैदी और त्वरित जवाबी कार्रवाई के सामने माओवादी जंगल की आड़ लेकर भागने पर मजबूर हो गए।

मुठभेड़ के बाद तलाशी अभियान में सुरक्षा बलों ने माओवादियों का एक बड़ा आपूर्ति नेटवर्क उजागर किया। बरामद सामग्री में 20 लीटर पेट्रोल, दो प्रेशर कुकर बम, जिंदा कारतूस, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण और चिकित्सा सामग्री शामिल है। अधिकारियों का मानना है कि यह सामान भविष्य में बड़े हमलों के लिए जमा किया गया था। लैपटॉप और नकदी की बरामदगी से माओवादियों के संचार और वित्तीय नेटवर्क पर भी सवाल उठ रहे हैं।

बस्तर की जंग और स्थानीय लोग
बस्तर संभाग के आदिवासी समुदाय दशकों से माओवादी हिंसा और गरीबी के बीच जूझ रहे हैं। अबूझमाड़ जैसे सुदूर जंगल इलाके माओवादियों का गढ़ रहे हैं, जहां बुनियादी सुविधाएं जैसे सड़क, बिजली और स्कूल तक पहुंचना मुश्किल है। सुरक्षा बलों की यह कार्रवाई न केवल माओवादी गतिविधियों को कमजोर करती है, बल्कि स्थानीय लोगों में विश्वास जगाती है कि शांति और विकास संभव है।

एक स्थानीय निवासी, जो अपनी पहचान उजागर नहीं करना चाहता, ने बताया, “हमें डर के साए में जीना पड़ता है। नक्सलियों के डर से गांव वाले बोलने से भी डरते हैं। लेकिन जब सुरक्षा बल ऐसी कार्रवाई करते हैं, तो हमें लगता है कि सरकार हमारे साथ है लेकिन आदिवासी समाज को दूर-दूर तक कहीं दिखता नहीं है।” यह भावना बस्तर के कई गांवों में गूंजती है, जहां लोग हिंसा से मुक्ति और बेहतर भविष्य की उम्मीद रखते हैं।

माओवादियों पर बढ़ता दबाव
बस्तर रेंज के पुलिस महानिरीक्षक पी. सुंदरराज ने इस सफलता को माओवादियों के लिए करारा झटका बताया। उन्होंने कहा, “2025 की शुरुआत से ही हमने माओवादी संगठनों के नेतृत्व को कमजोर किया है। प्रतिबंधित सीपीआई (माओवादी) के पास अब आत्मसमर्पण के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा है। हिंसा का रास्ता केवल विनाश की ओर ले जाता है।”

पिछले कुछ महीनों में छत्तीसगढ़ में माओवादी गतिविधियों पर लगाम लगाने के लिए सुरक्षा बलों ने कई बड़े ऑपरेशन चलाए हैं। जनवरी 2025 में नारायणपुर में ही 29 माओवादियों ने आत्मसमर्पण किया था, जो सरकार की पुनर्वास नीति और विकास कार्यों का असर दर्शाता है।

चुनौतियां और भविष्य की राह
हालांकि यह जीत महत्वपूर्ण है, लेकिन नक्सलवाद की समस्या जटिल है। आर्थिक असमानता, भूमि अधिकारों की कमी और सामाजिक अन्याय जैसे मुद्दे माओवादी विचारधारा को बढ़ावा देते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि हिंसा को खत्म करने के लिए सुरक्षा कार्रवाइयों के साथ-साथ शिक्षा, रोजगार और बुनियादी सुविधाओं पर सरकार को ध्यान देना जरूरी है।

केंद्र और राज्य सरकार ने 2026 तक नक्सलवाद को पूरी तरह खत्म करने का लक्ष्य रखा है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में कहा था, “हम नक्सलवाद को जड़ से उखाड़ फेंकेंगे।” इस दिशा में छत्तीसगढ़ सरकार ने आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों के लिए वित्तीय सहायता, नौकरी और पुनर्वास योजनाएं शुरू की हैं।

शांति की ओर एक कदम
अबूझमाड़ की इस मुठभेड़ और बरामदगी ने माओवादियों को कमजोर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। लेकिन असली जीत तब होगी, जब बस्तर के जंगलों में बंदूकें खामोश होंगी और गांवों में स्कूलों की घंटियां गूंजेंगी। सुरक्षा बलों की यह कार्रवाई न केवल एक ऑपरेशन की सफलता है, बल्कि उन हजारों आदिवासियों के लिए उम्मीद की किरण है, जो शांति और सम्मान के साथ जीना चाहते हैं।
(समाचार लेख सुरक्षा बलों के आधिकारिक बयानों और स्थानीय सूत्रों पर आधारित।)

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