हिमांशु कुमार की डायरी से
मैं अक्टूबर की शुरुआत में गोमपाड गाँव में गया |
यह छत्तीसगढ़ के सुकमा ज़िले का गाँव है |
यहाँ 17 सितम्बर और 01 अक्तूबर 2009 को पुलिस और सुरक्षा बलों ने सोलह आदिवासियों की हत्या करी थी |
उस घटना की याद में आदिवासियों ने एक सभा रखी थी जिसमें उन्होंने मुझे बुलाया था |
मेरी बात सुनने के लिए दूर दूर के गावों से आदिवासी स्त्री पुरुष आये हुए थे |
मैंने उनके बीच उनकी ही भाषा गोंडी में अपनी बात रखी |
मैं खुद को आदिवासियों का विनम्र सेवक मानता हूँ |
इस नाते मैंने अपने स्वामी को अपने काम काज का हिसाब दिया |
मैंने अब तक न्याय के लिए किये गये प्रयत्नों के बारे में उन्हें जानकारी दी |
सर्वोच्च न्यायलय द्वारा दिए गये अन्याय पूर्ण फैसले की जानकारी दी |
और हम इस मामले में न्याय मिलने तक किस तरह संघर्ष करने का विचार कर रहे हैं वह भी साझा किया |
सभा के बाद आदिवासियों ने अपने साथ घटी आप-बीती सुनानी शुरू की |
मैं सुनते सुनते दुःख में डूब गया |
इतना दर्द इतने अत्याचार |
कितने ही माओं के बेटे मार डाले गए हैं कितनी विधवाओं के पति मार डाले गये हैं | बेटियों के साथ बलात्कार किये गये हैं |
यह सब लिखते लिखते मेरी डायरी भर गई लेकिन लोगों की कहानियां खत्म नहीं हो रही थीं |
उनकी आपबीती सुनते समय आपको पुलिस की निरंकुशता साफ़ दिखाई देती है |
वहां बैठ कर ऐसा लगता ही नहीं कि हम किसी ऐसे इलाके में हैं जहां किसी देश का कोई कानून संविधान सरकार का कोई वजूद है भी |
मुझे आदिवासी बता रहे थे कि कोंटा के थानेदार शिवानन्द ने बटेर गाँव के आदिवासियों से कहा है कि तुम्हारे गाँव से होकर सडक निकलेगी। इसलिए पूरे गाँव के सभी मर्द थाने आकर पुलिस के सामने नक्सली बन कर सरेंडर कर दो। नहीं तो मैं जिसे चाहूँगा उसे गोली से उड़ा दूंगा |
गाँव के आदिवासी मारे जाने से बचने के लिए जंगल में छिप कर सो रहे हैं |
आदिवासी इलाके के सभी गावों के अट्ठारह साल से ऊपर के पुरुषों और अविवाहित लड़कियों के नाम थानेदार अपने पास लिख कर रखता है |
थानेदार गाँव में आदिवासियों के पास सूचना भेजता है कि थाने में आकर सरेंडर कर दो नहीं तो जेल में डाल दिया जाएगा |
ज़्यादातर आदिवासी डर कर फ़र्जी नक्सली बन कर थानेदार के कहने मुताबिक सरेंडर कर देते हैं |
थानेदार सरेंडर के लिए आया पैसा अपनी जेब में रख लेता है | लेकिन वह इन आदिवासियों का नाम नक्सलियों की सूची से काटता नहीं है |
थानेदार का ट्रांसफर हो जाता है नया थानेदार आता है वह फिर से इन आदिवासियों को धमकी भेजता है कि थाने में आकर नक्सली बन कर सरेंडर करो नहीं तो जेल भेज दूंगा या गोली से उड़ा दूंगा |
कुछ आदिवासी फिर से सरेंडर वाले नाटक का हिस्सा बनते हैं |
कुछ आदिवासी बार बार के इस नाटक में शामिल नहीं होते | उन्हें जेल में डाल दिया जाता है या मार दिया जाता है |
सन 2016 में पुलिस की एक शाखा जिसे डीआरजी कहा जाता है उसमें काम करने वाले सिपाही मडकम मुदराज, माडवी राजू, माडवी एर्रा, कवासी जूदेव, वेट्टी रामा, कुडाम संतोष माडवी बंडी गोमपाड़ गाँव में आये|
यह सभी पूर्व नक्सलवादी हैं अब यह लोग पुलिस बन गये हैं |
इनके साथ एक सौ से ज्यादा सीआरपीएफ और छत्तीसगढ़ पुलिस के सिपाही भी थे |
इन सिपाहियों ने गाँव की एक लडकी मडकम हिडमें को घर से खींच कर निकाला उसे जंगल में ले गये उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया और उसे गोली मार कर नक्सली वर्दी पहना कर फोटो खींच कर मीडिया में जारी कर दी |
जब गाँव की महिलाओं ने मडकम हिडमें को इन सिपाहियों से बचाने की कोशिश करी तो मडकम मुदराज ने एक औरत को ऐसा डंडा मारा कि उस औरत द्वारा गोद में पकड़ा हुआ दो महीने का बच्चा तुरंत मर गया |
” संलग्न चित्र में अपने बच्चों को लेकर जो आदिवासी महिला बैठी है इसके पति की पुलिस ने हत्या कर दी तब यह बच्चा पेट में था। “
मडकम हिडमें की माँ ने छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में याचिका दायर करी |
छत्तीसगढ़ पुलिस ने पूरी बेशर्मी का परिचय देते हुए अदालत में कहा कि अदालत में मुकदमा दायर करने वाली महिला तो मारी गई लडकी की माँ ही नहीं है यह फ़र्ज़ी माँ है इसलिए मुकदमा खारिज कर दीजिये |
जज साहब ने भी पुलिस के खाए नामक का हक़ अदा करते हुए मुकदमा ख़ारिज कर दिया |
अदालत का अभयदान मिलने के बाद वही हुए जिसका डर था |
2018 में बलात्कारी सिपाही मडकम मुदराज के नेतृत्व में अन्य बलात्कारी सिपाही गाँव में आये |
सिपाहियों ने अपने पूरे कपडे उतार दिए और नंगे हो गये और अंधाधुंध गोलियां चलाने लगे |
उनका यह रूप देख कर गाँव की लड़कियां महिलायें पुरुष जंगल की तरफ जान बचाने के लिए भाग गए |
सिपाहियों ने आदिवासियों के सूअर बकरे मुर्गे बीच गाँव में भून कर खाए और आदिवासियों द्वारा बना कर घरों में रखी गई महुआ की शराब पी डाली |
इसके बाद सिपाही नशे में धुत्त होकर गाँव वालों को अदालत जाने की सज़ा देने के लिए खोजने लगे |
गोमपाड़ गाँव के कुछ आदिवासी जान बचाने के लिए नज़दीक के गाँव नुलकातोंग में खेत में बनी एक कुटिया में छिपे हुए थे |
मडकम मुदराज और उसके गिरोह के अन्य सिपाहियों को यह बात पता चल गई |
इन सिपाहियों ने जाकर उस कुटिया को घेर लिया और अंधाधुंध फायरिंग करके पन्द्रह आदिवासियों की हत्या कर दी |
एक सत्रह साल की लडकी दूधी बुदरी के कूल्हे में गोली लगी थी उसे भी एक ट्रैक्टर में लाशों के ऊपर डाल कर ले गये वह आदिवासी लडकी अभी भी जेल में है |
आदिवासियों से बात करते समय मैं यह साफ़ साफ़ देख पा रहा था कि यह हालत किसी भी सभ्य देश में संभव नहीं हैं |
फिर यह भारत में कैसे हो पा रहा है ?
पहली वजह यह है कि नक्सली उन्मूलन के नाम पर जनता के टैक्स का बहुत सारा पैसा खर्चा किया जाता है |
यह पैसा पुलिस अधिकारी नेता मंत्री मिलकर खाते हैं |
इस पैसे को लगातार हड़पने के लिए माओवादियों का फर्ज़ी हव्वा खड़ा करने के लिए निर्दोष आदिवासियों को माओवादी कह कर उनके फर्ज़ी आत्म समर्पण का ड्रामा करना, निर्दोष आदिवासियों की हत्या करके इनाम और तरक्की पाने के लालच में यह पूरा कानून मानवाधिकार और संविधान की धज्जियाँ उड़ाने का भयानक खेल यहाँ चल रहा है |
आदिवासियों की तरफ कोई नहीं बचा है | पुलिस हमलावर है | सरकार पुलिस की हिमायती है | अदालतें सरकार की चाकर बनी हुई हैं |
अब चुनौती यह है कि हम इस इलाके में हम आदिवासियों के संविधान में दिए गये मानवाधिकारों, कानून के राज और बुनियादी इंसानी गरिमा को कैसे बचाएं ?
हमारे सामने तीन रास्ते हैं | पहला हम इस मुद्दे का अंतर्राष्ट्रीयकरण कर दें|
इस भयानक मानवाधिकार हालात का पर्दाफाश दुनिया के सामने किया जाय और संयुक्त राष्ट्र संघ से कहा जाय कि वह इस क्षेत्र को जेनोसाइड के दायरे में ले और अपने स्थाई पर्यवेक्षक यहाँ नियुक्त करे |
दूसरा रास्ता यह है कि आदिवासी संगठित होकर लाखों की संख्या में सुकमा जिला मुख्यालय पहुँच कर अपने रोष और शक्ति का प्रदर्शन करें और सरकार तथा प्रशासन को अंतिम चेतावनी दे दें कि बस बहुत हुआ अब और अत्याचार बर्दाश्त नहीं किया जाएगा |
इस बारे में मेरी आदिवासी नेताओं से बात चल रही है इस तरह का रोष प्रदर्शन शीघ्र किया जाएगा |
तीसरा रास्ता मानवाधिकार आयोग अनुसूचित जनजाति आयोग और अदालतों से हस्तक्षेप के लिए फिर से कहा जाय और उन्हें अपना संवैधानिक कर्तव्य पालन करने के लिए मजबूर किया जाय | इसके लिए हम राष्ट्रव्यापी अभियान भी चलाएंगे |
कुछ भी हो इतना भयानक अन्याय बर्दाश्त करना हमारी सहन शक्ति से बाहर की बात है |
हम इसे देख कर चुप नहीं बैठ सकते | हाँ हम सरकार को इस बीच समय और मौका दे रहे हैं कि वह तुरंत कोंटा के थानेदार और मडकम मुदराज को उस इलाके से बाहर निकाल कर इन लोगों की अगुवाई में चल रहे भयानक मानवाधिकार दमन को तात्कालिक तौर पर कम करे |
यदि हमेशा कि तरह सरकार जनता को तुच्छ कीड़ा मकोड़ा समझ कर हमारी इस मांग को नज़रंदाज़ करती है तो फिर जन संघर्ष के लिए छत्तीसगढ़ की राज्य सरकार और केंद्र की भाजपा सरकार को तैयार हो जाना चाहिए |
लोगों की आज़ादी की लड़ाई हम उसी तरह लड़ेंगे जैसे हमारे परिवार के सदस्यों ने देश को आज़ादी दिलाते समय लड़ी थी और अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए थे और भारत छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया था |
इस पूरे मसले पर मैं गाँधी की उसी बात से प्रेरित होकर काम कर रहा हूँ जिसे फिर से दोहराया जाना ज़रूरी है |
‘जब भी दुविधा में हो या जब अपना स्वार्थ तुम पर हावी हो जाए, तो इसका प्रयोग करो।
उस सबसे गरीब और दुर्बल व्यक्ति का चेहरा याद करो जिसे तुमने कभी देखा हो, और अपने आप से पूछो- जो कदम मैं उठाने जा रहा हूँ, वह क्याह उस गरीब के कोई काम आएगा?
क्या उसे इस कदम से कोई लाभ होगा?
क्या इससे उसे अपने जीवन और अपनी नियति पर कोई काबू फिर मिलेगा?
दूसरे शब्दों में, क्याी यह कदम लाखों भूखों और आध्यात्मिक दरिद्रों को स्वराज देगा?
तब तुम पाओगे कि तुम्हारी सारी शंकाएं और स्वार्थ पिघल कर खत्म हो गए हैं।
” इस महिला के बेटे की हत्या पुलिस ने कर दी। वह मुझे बताते बताते रोने लगी मैं भी साथ में रोया। “
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