नई दिल्ली (पब्लिक फोरम)। राजनीतिक बन्दियों की रिहाई के चल रहे संघर्ष के बीच बम्बई उच्च न्यायालय द्वारा प्रो जीएन साईबाबा, महेश करीमन तिर्की, हेम केशनदत्त मिश्रा, प्रशान्त सांगलीकर और विजय तिर्की को निर्दोष बता कर रिहा करने का निर्णय दिया है। लेकिन यह ज्यादा समय तक नहीं रह सका।
आज सर्वोच्च न्यायालय ने एक विशेष सुनवाई कर उक्त फैसले के कार्यान्वयन पर रोक लगा दी है. इन राजनीतिक बन्दियों की रिहाई भी रोक दी गई है. प्रो. साईबाबा को जेल में सात साल से अधिक हो चुके हैं. दुखद है कि पान्डु नरोते की अपील प्रक्रिया के दौरान जेल में ही मौत हो चुकी है।
प्रो. जीएन साईबाबा 90 प्रतिशत विकलांगता के कारण केवल ह्वीलचेयर पर चल सकते हैं. उन्हें कार्डियक जटिलतायें, गम्भीर पैन्क््रियाइटिस, गॉल ब्लैडर में स्टोन आदि अन्य कई बीमारियां भी हैं जिनके कारण तत्काल मेडिकल देखभाल की आवश्यकता है. जेल से बाहर उन्हें हाउस अरेस्ट में रखने की अपील भी कोर्ट ने नहीं मानी।
विगत दिनों दिल्ली में राजनीतिक बन्दियों की रिहाई को लेकर हुई ‘इण्डिया बिहाइन्ड बार्स’ प्रेस कॉन्फरेंस में प्रो. साईबाबा की पार्टनर एवं कार्यकर्ता बसन्ता ने बताया था कि साईबाबा पिछले कई सालों से बहुत सी स्वास्थ्य सम्बंधी समस्याओं से जूझ रहे हैं लेकिन ‘हमारी सरकार में अपने नागरिकों के प्रति जिम्मेदारी और सहानुभूति का नितांत अभाव है’।
भाकपा (माले) केन्द्रीय कमेटी ने अपने बयान में कहा है कि जिस तरह वर्तमान सरकार गलत नीतियों के खिलाफ बोलने वालों को यूएपीए जैसे अन्यायी कानूनों के तहत जेलों में बन्द कर रही है उससे स्पष्ट है कि पहले से ही कठोर क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम का इस्तेमाल नागरिकों के विरुद्ध हथियार के रूप में किया जा रहा है।
भाकपा (माले) सभी राजनीतिक बन्दियों की रिहाई और यूएपीए जैसे अमानवीय कानूनों को रद्द करवाने के संघर्ष के लिए प्रतिबद्ध है।
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