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बुधवार, फ़रवरी 5, 2025
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5 सालों तक जेल में सड़ने के बाद अपाहिज प्रोफ़ेसर जीएन साईंबाबा अभी हुए आरोपों से बरी

पाँच साल तक जेल में रहने के बाद प्रोफ़ेसर जीएन साईंबाबा को आज सभी आरोपों से बरी कर दिया गया।

जो व्यक्ति 80 प्रतिशत से ज़्यादा विकलांग है और अपने पैरों पर चल भी नहीं सकता, उसे इस समय का बड़ा हिस्सा अमानवीय ‘अण्डा सेल’ में बिताना पड़ा।

सेहत के आधार पर उनकी ज़मानत की सभी अपीलें बार-बार ख़ारिज की जाती रहीं।

उनके साथ प्रशांत राही, हेम मिश्रा, विजय तिकरी और महेश टिकरी भी कई वर्ष जेलों में बिताने और यातनाएँ सहने के बाद सभी आरोपों से बरी कर दिये गये।

लेकिन पाँच निर्दोष लोगों के साथ ऐसे अमानवीय और क्रूर व्यवहार और उनके जीवन और शरीर को शायद हमेशा के लिए बरबाद कर देने के लिए ज़िम्मेदार किसी भी व्यक्ति को कोई सज़ा नहीं मिलेगी।

उनके विरुद्ध झूठे आरोप गढ़ने वाले पुलिस अफ़सरों, न्याय और मानवीयता के तभी तकाज़ों को कुचलकर उनकी ज़मानत से इंकार करने और अख़बारों की सुर्ख़ियाँ बटोरने के लिए उनके बारे में ग़ैर ज़िम्मेदाराना बयानबाज़ियाँ करने वाले जजों के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं होगी।

और वे फिर किसी और राजनीतिक क़ैदी की न्यायिक हत्या की साज़िश में पूरी बेशर्मी के साथ लिप्त हो जायेंगे।

फिर किसी स्टैन स्वामी को मार दिया जायेगा, किसी गौतम नवलखा और वरवर राव को मौत के मुहाने पर धकेल दिया जायेगा।

इस मामले के छठे अभियुक्त पाण्डु पोरा नरोते की इसी साल अगस्त में मृत्यु हो चुकी है।

दूसरी ओर, न जाने कितनी मौतों और समाज में ज़हर फैलाने के लिए ज़िम्मेदार नफ़रती भाषणों के “दोषी पाये गये” भाजपा विधायक संगीत सोम पर 800 रुपये का जुरमाना लगाकर भगवा ख़ेमे में उसे और हीरो बना दिया गया है।

यह मैसेज भी दे दिया गया है कि जमकर नफ़रत फैलाओ, क़ानूनी पेचीदगियों के चक्कर में अगर “दोषी” मान भी लिया गया तो सज़ा के नाम पर कोई चुटकुला सुना दिया जायेगा।

फिर भी कुछ लोग हैं कि महान भारतीय लोकतंत्र की महान न्याय व्यवस्था पर भरोसा जताते रहेंगे।

इस ठोकतंत्र के चारों खम्भों में न जाने कितने मासूमों की लाशें चुनी हुई हैं। ये जितनी जल्दी ध्वस्त हो जायें उतना ही अच्छा है।

जिनके हित इसी बर्बर शोषक व्यवस्था को बचाये रखने में हैं, उन्हें इसमें बाँस-बल्ली लगाने, मरम्मत और पर्देदारी करने में लगे रहने दीजिए।

इंसाफ़ और बराबरी पर खड़ी नयी व्यवस्था के जन्म के लिए इसका ध्वंस ज़रूरी है। और इसके लिए ज़रूरी है इसके असली ख़ूनी चरित्र को ढँकने वाली रामनामी चादर को उतार फेंकना।

-सत्यम वर्मा

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