रायपुर/कोरबा (पब्लिक फोरम)। छत्तीसगढ़ के कोरबा सांसद श्रीमती ज्योत्सना चरणदास महंत ने प्राथमिकता के आधार पर, इसे एक विशेष प्रकरण बताते हुए, छत्तीसगढ़ के पनिका जाति समुदाय को आदिवासी जनजाति समुदाय (याने कि एस.टी.) में शीघ्रातिशीघ्र शामिल करने के संबंध में प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है।
सांसद श्रीमती महंत ने प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में कहा है कि वर्तमान में अनुसूचित जनजाति में जिन जातियों को शामिल करने का अहम फैसला लिया गया है। उसमें सबसे अधिक 12 जातियां अकेले छत्तीसगढ़ की हैं और इसके साथ ही 42 जातियां आदिवासी वर्ग (एस.टी. वर्ग) में शामिल हो गई हैं।
छत्तीसगढ़ में पनिका जाति समुदाय प्रस्तावित छत्तीसगढ़ अनुसूचित जनजाति की सूची में क्रम संख्या 21 में शामिल है। जिसमें पनिका (अ.ज.सं. – 36) में विभिन्न जाति वर्ग लगभग 36 से अधिक को भी अनुसूचित जनजाति समुदाय में शामिल किया जाना है। प्रशासकीय कारणवश पनिका जाति समुदाय अनुसूचित जनजाति समुदाय (एस.टी.) में शामिल नहीं हो पाया है, जिसे शीघ्रातिशीघ्र शामिल करें। संबंधित दस्तावेज संलग्न है।
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जानकार सूत्र बताते हैं कि अविभाजित मध्यप्रदेश के पूर्व मंत्री स्वर्गीय बिसाहू दास महंत ने तत्कालीन समय में आदिवासी वर्ग समुदाय (अनुसूचित जनजाति) की सूची से इस अपमानजनक टिप्पणी के साथ, पनिका जाति का नाम सूची से कटवा दिया था और कहा था कि ” आदिवासी जनजाति समुदाय (ST) की सूची में शामिल होने से हमारी पनिका जाति समुदाय का अपमान होता है और हमारे पनिका जाति समुदाय को यह अपमान बर्दाश्त नहीं है। अतः पनिका जाति को आदिवासी जनजाति समुदाय की सूची से तत्काल हटा दिया जाए। ”
जानकार सूत्र यह भी बताते हैं कि सांसद श्रीमती ज्योत्सना चरणदास महंत जोकि स्वर्गीय मंत्री बिसाहू दास महंत की पुत्रवधू भी हैं। जिन्होंने राजनीतिक लाभ लेने की गरज से अपने पनिका जाति समुदाय को अब फिर से आदिवासी जनजाति सूची में शामिल कराने के लिए अपने राजनैतिक शक्तियों का दुरुपयोग ही कर रही हैं। उनके इस कार्रवाई से प्रदेश के आदिवासी समाज में फिर से यह चर्चा है कि पनिका जाति को आदिवासियों की सूची में शामिल कर दिए जाने से क्या अब पनिका जाति समुदाय को अपमान महसूस नहीं होगा? या आरक्षण की लालच ने अब पनिका जाति समुदाय की आंखें बंद कर दिए हैं। क्या इस देश में आदिवासी होना अपमानजनक बात है? या पनिका जाति समुदाय में पैदा होना ज्यादा गर्व की बात है? इस सवाल के जवाब में प्रदेश के एक आदिवासी समाज प्रमुख ने कहा है कि इस देश के आदिवासी समुदाय को इस बात में ज्यादा दिलचस्पी नहीं है कि कौन सा जाति समुदाय सरकार से ज्यादा लाभ ले पाता है। बल्कि इस बात पर बहुत ज्यादा एतराज है कि उन जाति समुदायों को आदिवासी कोटे से आदिवासियों का आरक्षण भी चाहिए और आदिवासी समुदाय पर अपमानजनक टिप्पणी भी करना है, और उन्हें छोटी जाति समुदाय की संज्ञा भी देनी है।
जातिगत भेदभाव और अपमान से जूझता हुआ भारत का दलित और आदिवासी समाज वैसे भी आरक्षण के नाम पर, भारत की आजादी से आज तक बदनाम किया जाता रहा है। एक तरफ तो इस देश का प्रबुद्ध तबका, वर्ग विहीन, जाति विहीन और शोषण मुक्त समाज व्यवस्था बनाने के लिए संघर्ष कर रहा है। वहीं दूसरी तरफ अनुसूचित जाति एवं जनजाति का पिछड़ा समाज जिन्हें आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए था, यथोचित रूप से उन्हें दिया तो नहीं गया। बल्कि तथाकथित ऊंची जाति वालों के द्वारा देश के पिछड़ेपन का ठीकरा उन्हीं के सिर पर फोड़ा जाने लगा है। और यह क्रियाकलाप आजादी के 75 साल बाद भी जारी है।
देश के आर्थिक व्यवस्था का निजीकरण के इस दौर में लोगों की रोजी-रोटी, रोजगार और आरक्षण अपने आप ही खत्म हो जाते हैं। ऐसे दौर में कुछ सक्षम राजनीतिक हस्तियां, सांसद और विधायक लोग अपनी राजनीतिक रोटी सेकने के लिए, फिर से अपनी जातिवादी गुणा गणित को राजनीतिक रंग देने में लगे रहेंगे तो उस समाज का क्या होगा जिसे विधिवत रूप से न तो रोजी-रोटी नसीब हुई और ना ही आरक्षण का समुचित लाभ ही मिल पाया।
बरहाल, सांसद श्रीमती महंत के इस कार्रवाई से छत्तीसगढ़ के पनिका जाति समुदाय और आदिवासी जनजाति समुदाय के बीच आपस में पुनः आरोप-प्रत्यारोप, सामाजिक कड़वाहटें एवं उथल-पुथल का दुखद सिलसिला फिर से जारी हो चुका है। छत्तीसगढ़ के कोरबा सांसद श्रीमती महंत के इस जातिवादी कार्यवाई से प्रदेश का आदिवासी समाज इस बात पर किस तरह से प्रतिक्रिया व्यक्त करता है, यह देखना अभी बाकी है।
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