अगर सोवियत संघ अपने देश में अनेक धर्मों के लोगों को एक राष्ट्र के अंतर्गत रखने में कामयाबी हासिल कर सकता है तो भारत में भी यह संभव हो सकता है।
सन 1939 में सुभाषचंद्र बोस को बंगाल प्रादेशिक कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष पद से हटाया गया था। साथ ही उन्हे अगले तीन वर्षों तक कांग्रेस पार्टी के भीतर चुनाव लड़कर किसी भी पद को ग्रहण करने से भी बंचित कर दिया गया था।
साम्राज्यवाद विरोधी अपने संघर्ष को जारी रखने के उद्देश्य से उन्होने फारॅवार्ड ब्लाॅक जैसे वामपंथी पार्टी का गठन किया था।वे सच्चे देश प्रेमी थे और साम्प्रदायिक सद्भाव के संदेश वाहक थे।
आजाद हिन्द फौज (INDIAN NATIONAL ARMY) जिसका मिसाल रहा है। आजाद हिन्द फौज में किसी विशेष धर्म को मानने वाले लोगों के बदले सभी धर्मों के लोगों को वे शामिल किए हुए थे।
आजाद हिन्द फौज में तीन मुस्लिम अधिकारी शाॅहनवाज खां,आबिद हसन और एम.जेड. किवाई।इन तीनों अधिकारियों ने नेताजी को याद करते हुए कहा है कि राष्ट्रीय आंदोलन में सुभाषचंद्र ने धर्म का कभी भी उपयोग नही किया हैं। वे धर्मों को निजी व्यक्तिगत मामला मानते थे और आजाद हिन्द फौज में धर्म के आधार पर किसी के साथ कोई भेद-भाव नही होता था।
व्यक्तिगत रूप से नेताजी धार्मिक थे लेकिन राष्ट्रीय आंदोलन से धर्म को वे पृथक कर रखे थे।किसी भी सार्वजनिक मंच में किसी विशेष धार्मिक प्रार्थना का आयोजन को वे अनुमोदन वे कभी भी नही करते थे। धर्म -भाषाई-प्रांत के आधार पर किसी प्रकार का विभेद सुभाषचंद्र नही करते थे।उनके लिए हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई सभी समान थे। सुभाषचन्द्र की यही नजरिया आजाद हिन्द फौज को प्रेरणा प्रदान करता था।
आजाद हिन्द फौज में सभी को अपने अपने धर्म को पालन करने का अनुमति था लेकिन धर्म के नाम पर नफरत का जहर फैलाने का किसी को कोई इजाजत नही था।
आजाद हिन्द फौज में सभी लोगों को एक साथ रहते और भोजन करते थे।सुभाषचंद्र का कहना था कि दुनियां के लोगों और हमारे शत्रु को यह जानकारी होना चाहिए कि हम भारतीय (हिन्दु और मुस्लिम) धर्म-जाति-भाषा की विभेदों को भूलाकर एकजुट होकर राष्ट्रीय आंदोलन के हिस्सेदार बने हैं।
वे रूस को याद करते हुए कहते थे कि अगर सोवियत संघ अपने देश में अनेकों धर्मों के लोगों को एक राष्ट्र के अंतर्गत रखने में कामयाबी हासिल कर सकता है तो भारत में भी यह संभव हो सकता है। उनका मानना था एक देश प्रेमी हिन्दू और एक देशप्रमी मुस्लिम में कोई अंतर नही हैं। उन्होने उदाहरण देते थे एक हिन्दू किसान और एक मुस्लिम किसान के बीच जो गहरा दोस्ती का संबंध है वह एक जमींदार हिन्दू और एक हिन्दू किसान के संबंध से अधिक हैं।
जर्मनी से जापान के सफर के दौरान आबिद हसान उनके हमसफर थे ।आजाद हिन्द फौज के गुप्त शाखाओं में अनेकों मुस्लिम युवाओं को प्रशिक्षित किया गया था कि वे देश में नागरिकों के बीच ब्रिटिश हकुमत के खिलाफ प्रचार अभियान संचालित कर सके।
अपने जीवन के अंतिम विमान यात्रा भी वे हबीबूर रहमान के साथ ही कर रहे थे।सफर के पहले आजाद हिन्द फौज की जिम्मेदारी (उनकी अनुपस्थिति में) एक मुस्लिम एम.जेड.किवानी को सौंपते हैं।आजाद हिन्द फौज के संकट काल में भी मुस्लिम समुदाय के लोगों को मंदिर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं मिलने के कारण चेट्टियार समुदाय से आर्थिक सहयोग लेने से इंकार कर देना उनके साम्प्रदायिक सद्भाव के मिसाल हैं। -सुखरंजन नंदी
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