कौन हैं ये गिग वर्कर्स?
गिग वर्करों से तो आप परिचित होंगें? पीठ पर बड़े-बड़े झोला लटकाये हुये दिन भर सड़कों पर घूमते हुये Zomato, flipcart, amezon के युवाओं से तो आप भली-भांति परिचित हैं। बड़े शहरों में उबार, चला टैक्सी चालकों को भी आप देखते होंगे।
हां! इन वर्करों के लिए ही गिग वर्कर शब्द का उपयोग किया जाता हैं। स्वतंत्र अस्थायी श्रमिक, ऑन-काॅल श्रमिक, ऑन-लाईन श्रमिक। इन श्रमिकों के लिए कोई कार्यालय तक नहीं होता। दिन में कम से कम 15 घंटों तक सड़कों पर मोटरसाइकिल या उबेर-चला टैक्सी के चालक के रूप में इन्हे सड़को पर ही पूरे समय बिताना पड़ता हैं। आज हमारे देश में 1.5 करोड़ युवा गिग वर्कर के रूप में कार्यरत हैं।
हमारी देश की सरकार इन वर्करों को मजदूर के रूप में मान्यता नहीं देने के कारण इन पर श्रम कानून लागू नही हो सकता हैं। इन वर्करों पर श्रम कानूनों का लागू नही होने के कारण मालिक इनका खूले आम शोषण करते रहते हैं।
हर गिग वर्करों को दिन में न्यूनतम 15 घंटे काम करने पर विवश होना पड़ता है। अगर ये वर्कर्स ज्यादा उपार्जन करना चाहते है तो वह रास्ता खुला हुआ हैं इसके लिए। उनको 15 घंटों से अधिक समय तक काम करना होता है।
इन वर्करों को किसी भी तरह की कोई सामाजिक सुरक्षा हासिल नहीं हैं। यहां तक कि साप्ताहिक अवकाश भी इन्हे नही मिलती हैं। मेडिकल, पीएफ तो इन वर्करों के लिए मृगमरीचिका हैं। क्यों कि काम ठेका पद्धति से लिया जाता है इसलिए इनसे अधिक काम आसानी से लिया जा सकता है।
जिस मोटरसाइकिल पर सवार होकर वह आपके और हमारे घर पहुंचकर हमारा आनलाइन आर्डर का डिलीवरी करते है वह मोटरसाइकिल उनका स्वयं का होता हैं। यह रोजगार हासिल करने के लिए स्वयं का मोटरसाइकिल होना आवश्यक शर्त हैं। गिग वर्करों में से 65 प्रतिशत वर्कर किश्त में मोटरसाइकिल क्रय करने के कारण आय का एक बड़ा हिस्सा किस्त जमा करने में खर्च हो जाता हैं।
दैनिक 15 घंटे काम करने के बाद भी इन्हे किसी भी प्रकार की कोई न्यूनतम वेतन इन वर्करों को हासिल नहीं हैं। इन वर्करों के लिए कंपनी को किसी भी प्रकार की कोई कार्यालय निर्माण की आवश्यकता नही है ।
इन वर्करों के बीच किये गये एक सर्वेक्षण से जो तथ्य सामने आये है वह बहुत ही भयानक हैं। उबर और ओला चालकों को दिन में 20 घंटो तक काम करना पड़ता हैं। हैदराबाद, चेन्नई जैसे शहरों के 83 प्रतिशत ओला, उबर चालकों के अनुसार वे दिन में सिर्फ महज 6 घंटे ही नींद ले पाते हैं।
दुनियां के अनेकों देशों में इन गिग वर्करों को श्रमिक की मान्यताएं हासिल हैं। हमारे देश में इन वर्करों को श्रमिक की मान्यता हासिल करने के लिए संघर्ष को अभी और तेज करना पड़ेगा।
Recent Comments