रायपुर (पब्लिक फोरम)। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने रायपुर में कथित धर्म संसद में मुस्लिमों के खिलाफ हिंसा, धार्मिक उन्माद व नफरत फैलाने तथा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के खिलाफ अपशब्दों का प्रयोग करते हुए उनके हत्यारे को महिमामंडित करने की कड़ी निंदा की है। पार्टी ने आरोप लगाया है कि आरएसएस-भाजपा के नेतृत्व में संघी गिरोह प्रदेश में सांप्रदायिक सौहार्द्र बिगाड़ने और धर्म के नाम पर साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण करने का खेल खेल रही है, जिसकी इजाजत इस प्रदेश की शांतिप्रिय और धर्मनिरपेक्ष जनता कतई नहीं देगी। पार्टी ने कहा है कि हिन्दू धर्म के नाम पर जो भड़काऊ भाषण दिए गए हैं, वे न केवल हिन्दू धर्म की सारवस्तु को विकृत करने वाले थे, बल्कि देश की एकता-अखंडता और संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ भी थे।
आज यहां जारी एक बयान में माकपा राज्य सचिव संजय पराते ने कहा है कि संघी गिरोह पूरे देश में अल्पसंख्यकों पर हमले करने और उनके खिलाफ नफरत फैलाने की राजनीति कर रहा है। रायपुर में कथित धर्म संसद का आयोजन भी इसी उद्देश्य से किया गया था। लेकिन इसके आयोजकों में कांग्रेस नेताओं का शामिल होना बताता है कि धर्मनिरपेक्षता और संवैधानिक मूल्यों के प्रति उसकी आस्था में कितनी गिरावट आई है। यह आश्चर्य की बात है कि अल्पसंख्यकों के खिलाफ विष-वमन कर गेरुआ वस्त्र में लिपटे अपराधी प्रशासन की नाक के नीचे से बचकर चले गए हैं और अब कांग्रेस विधवा-विलाप कर रही है।
माकपा नेता ने कहा कि एक राजनैतिक पार्टी के रूप में अब कांग्रेस को यह समझ लेना चाहिए कि ‘नरम हिन्दुत्व’ की राजनीति का सहारा लेकर, साधु-संतों की आवभगत करके और राम के नाम का जाप करके भाजपा की सांप्रदायिकता से नहीं लड़ा जा सकता। कांग्रेस और उसके प्रशासन की कमजोरी के कारण ही पिछले दिनों कवर्धा में ये ताकतें सदभाव का माहौल बिगाड़ने में सफल हो पाई थी और कथित धर्म संसद में जहर भरे अधर्मी बोलों के लिए भी अपनी जिम्मेदारी से कांग्रेस नहीं बच सकती।
माकपा ने संविधान और उसके मूल्यों के खिलाफ भड़काऊ भाषण देने वाले कथित सभी साधुओं को और सभी आयोजकों को तुरंत गिरफ्तार करने की मांग की है। पार्टी ने उच्च न्यायालय से भी इस मामले का स्वतः संज्ञान लेने की अपील की है, क्योंकि सवाल संविधान के मूल्यों की रक्षा का है
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