नई दिल्ली (पब्लिक फोरम)। लेबर कोड्स के लागू होने के बाद भाकपा माले (लिबरेशन) के राष्ट्रीय महासचिव कॉमरेड दीपांकर भट्टाचार्य ने एक विस्तृत वक्तव्य जारी कर इन कानूनों को “कॉर्पोरेट दासता” बताया है और किसान आंदोलन जैसे व्यापक प्रतिरोध की अपील की है।
21 नवंबर 2025 को केंद्र सरकार ने चारों लेबर कोड—वेज कोड 2019, इंडस्ट्रियल रिलेशंस कोड 2020, सोशल सिक्योरिटी कोड 2020 और ऑक्यूपेशनल सेफ्टी कोड 2020—को लागू कर दिया था।
औपनिवेशिक विरासत नहीं, संवैधानिक धरोहर पर हमला
अपने वक्तव्य में भट्टाचार्य ने सरकार के इस दावे को खारिज किया कि लेबर कोड औपनिवेशिक कानूनों को समाप्त करने का कदम हैं। उन्होंने कहा, “1881 के फैक्ट्रीज एक्ट से लेकर 1926 के ट्रेड यूनियंस एक्ट और 1929 के ट्रेड डिस्प्यूट्स एक्ट तक—ये कानून कोई औपनिवेशिक ‘उपहार’ नहीं थे, बल्कि भारतीय जनता के महान औपनिवेशिक-विरोधी संघर्षों के परिणाम थे।”
भाकपा माले नेता ने बाबासाहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर का उल्लेख करते हुए कहा कि वे उपनिवेशकाल से लेकर स्वतंत्र भारत में श्रम अधिकारों के सबसे बड़े पक्षधर थे। उन्होंने डॉ.अम्बेडकर के 1920 के दशक के मिल हड़तालों में हस्तक्षेप और 1936 में इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी की स्थापना का जिक्र किया।

बिहार चुनाव और लेबर कोड: राजनीतिक आरोप
कॉमरेड भट्टाचार्य ने बिहार विधानसभा चुनाव के संदर्भ में कहा कि सरकार ने “स्वतंत्र भारत की अब तक की सबसे बड़ी चुनावी धोखाधड़ी” को अंजाम देने के बाद लेबर कोड लागू करने का साहस दिखाया है। उन्होंने आरोप लगाया कि चुनाव तंत्र पर पूर्ण नियंत्रण से उत्साहित होकर सरकार ने यह फैसला लिया है।
कॉर्पोरेट लालच के अधीन श्रम अधिकार
वक्तव्य में भाकपा माले नेता ने आरोप लगाया कि नए लेबर कोड “श्रम अधिकारों के पूरे एजेंडा को कॉर्पोरेट लालच के अधीन कर देते हैं।” उन्होंने कहा, “‘इंस्पेक्टर राज’ खत्म करने के नाम पर, ये कोड राज्य की उस जिम्मेदारी से ही पल्ला झाड़ लेते हैं जिसके तहत उसे कानूनों, न्याय और कार्यस्थल सुरक्षा के अनुपालन की निगरानी करनी होती है।”
उन्होंने आरोप लगाया कि इन कोडों का असली उद्देश्य मजदूरों को “कम वेतन पर अधिक काम, कम सुरक्षा और कम स्वतंत्रता में धकेलना” है।
किसान आंदोलन की तर्ज पर संघर्ष का आह्वान
भट्टाचार्य ने कहा कि चारों लेबर कोड उसी कॉर्पोरेट एजेंडा की उपज हैं जिसने तीन कृषि कानून पैदा किए थे, जिन्हें ऐतिहासिक किसान आंदोलन के दबाव में वापस लेना पड़ा था।
“किसानों ने अपनी अद्भुत एकता, धैर्य और संकल्प के दम पर मोदी सरकार को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया था। मजदूर वर्ग के आंदोलन को भी यही रास्ता अपनाना होगा—विस्तृत वर्ग एकता बनाना और लंबी लड़ाई लड़ना,” उन्होंने कहा।
सभी वर्गों के मजदूरों को एकजुट करने का आह्वान
भाकपा माले नेता ने कहा कि इन कानूनों के खिलाफ लड़ाई को कैजुअल, कॉन्ट्रैक्ट और आउटसोर्स मजदूरों से लेकर गिग वर्कर्स, आईटी कर्मचारियों और महिला श्रमिकों तक ले जाना होगा—जो इस नए ढांचे से सबसे अधिक प्रभावित होंगे।
उन्होंने कहा, “चारों लेबर कोड निजी नियोक्ताओं की तानाशाही और कॉर्पोरेट नियंत्रण की बेड़ियों में भारत के मेहनतकशों को जकड़ने का माध्यम हैं।”
वक्तव्य के अंत में उन्होंने कहा कि इन कोडों के खिलाफ संघर्ष “भारत में मजदूर जागरण और प्रगति के इतिहास में एक नया अध्याय लिखेगा।”
ट्रेड यूनियनों का विरोध जारी
उल्लेखनीय है कि 26 नवंबर को देश भर में 10 बड़े ट्रेड यूनियनों ने लेबर कोड्स के खिलाफ देशव्यापी विरोध प्रदर्शन किए थे। यूनियनों ने इन कानूनों को श्रमिकों के अधिकारों पर हमला बताया है।
सरकार का पक्ष है कि ये कोड 44 पुराने श्रम कानूनों को सरल बनाते हैं और रोजगार सृजन में मदद करेंगे, जबकि विपक्ष और ट्रेड यूनियनों का आरोप है कि ये मजदूरों के मौलिक अधिकारों को कमजोर करते हैं।





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