मंगलवार, दिसम्बर 2, 2025
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परमाणु ऊर्जा क्षेत्र के निजीकरण पर तीखा विरोध: कमजोर होती सुरक्षा व्यवस्था पर विशेषज्ञों और संगठनों की गंभीर चिंता

“परमाणु ऊर्जा क्षेत्र के निजीकरण के खिलाफ देशभर के संगठन और विशेषज्ञ एकजुट”

नई दिल्ली (पब्लिक फोरम)। देश के विभिन्न राज्यों और सामाजिक आंदोलनों से जुड़े परमाणु विकिरण पीड़ितों के समर्थन में कार्यरत संगठनों, विशेषज्ञों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भारत के सार्वजनिक परमाणु ऊर्जा क्षेत्र को निजी उद्योगों के लिए खोलने के निर्णय का कड़ा विरोध किया है। इन संगठनों का कहना है कि निजीकरण का यह कदम न केवल परमाणु सुरक्षा के लिए गहरी चुनौती है, बल्कि पर्यावरण और जन-स्वास्थ्य पर गंभीर खतरा भी पैदा करता है।

जारी बयान में कहा गया है कि परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में निजी कंपनियों को डिज़ाइन, निर्माण, संचालन और रेडियोधर्मी पदार्थों के उपयोग की अनुमति देना, सुरक्षा के मूल मानकों से समझौता करने जैसा है। सरकार का दायित्व देश की जनता और पर्यावरण की सुरक्षा सुनिश्चित करना है, जबकि निजी कंपनियों पर ऐसा कोई संवैधानिक दायित्व नहीं होता।

कमज़ोर होते नियामक ढांचे के बीच निजीकरण की कोशिश पर सवाल

पिछले एक दशक में परमाणु और पर्यावरण नियामक ढांचे को लगातार कमजोर किया गया है। स्थिति यह है कि पहले से सीमित और गैर-बाध्यकारी शक्तियों वाले नियामक संस्थानों की क्षमता और अधिक घटा दी गई है।
सितंबर 2025 में दुर्लभ खनिजों और रेडियोधर्मी पदार्थों के खनन से पहले अनिवार्य जन-सुनवाई प्रक्रिया को समाप्त कर दिया गया। विशेषज्ञों का कहना है कि यह प्रक्रिया स्थानीय समुदायों की चिंताओं और पर्यावरणीय जोखिमों को समझने के लिए अत्यंत आवश्यक थी।

बयान में कहा गया है कि स्थानीय लोगों की आवाज़ को दरकिनार कर उनके क्षेत्रों को रेडियोधर्मी गतिविधियों के लिए खोल देना अनुचित और खतरनाक है। रेडियोधर्मी तत्वों के अंश लाखों वर्षों तक सक्रिय रहते हैं और पर्यावरण तथा मानव शरीर को धीमे लेकिन गंभीर नुकसान पहुंचाते हैं। हाल ही में बिहार के गंगा वाले इलाक़े में स्तनपान कराने वाली माताओं के दूध में रेडियोधर्मिता मिलने की खबर ने चिंताओं को और बढ़ा दिया है, जिसका संभावित कारण भूजल में यूरेनियम संदूषण माना जा रहा है।

रेडियोधर्मी कचरे के सुरक्षित निस्तारण पर वैश्विक सहमति नहीं

विशेषज्ञों ने स्पष्ट कहा है कि विश्व स्तर पर अभी तक रेडियोधर्मी कचरे के स्थायी निस्तारण पर कोई वैज्ञानिक सर्वसम्मति नहीं है। न ही विकिरण के सुरक्षित स्तर पर कोई स्पष्ट और अटल मानदंड मौजूद है। ऐसे में भारत सरकार द्वारा नियंत्रण को ढीला करना “बेहद खतरनाक और गैर-जिम्मेदाराना” कदम बताया गया है।

2000–2010 के बीच निजी धारकों द्वारा रेडियोधर्मी स्रोतों के खो जाने के 16 मामले सामने आ चुके हैं, जिनमें से 11 को आज तक बरामद नहीं किया जा सका। कई मामले औद्योगिक रेडियोग्राफी उपकरणों से जुड़े थे, जिन्हें निजी कंपनियां उपयोग करती थीं। कई उपकरण चोरी हुए, कुछ रास्ते में लापता हुए और कुछ पानी में फेंक दिए गए—इन घटनाओं में आम लोगों के विकिरण संपर्क में आने की आशंका प्रमाणित हुई।

परमाणु ऊर्जा विधेयक 2025 का व्यापक विरोध

संगठनों ने एटॉमिक एनर्जी बिल, 2025 तथा न्यूक्लियर डैमेज एक्ट 2010 में संशोधन कर निजी निवेश आकर्षित करने की सरकारी योजना को पूरी तरह निरस्त करने की मांग की है। बयान में आरोप लगाया गया है कि सरकार जनता और प्रकृति की सुरक्षा के अपने संवैधानिक दायित्व को छोड़ रही है।

समर्थक संगठनों ने विपक्षी दलों से आह्वान किया है कि वे संसद और जन-आंदोलन दोनों स्तरों पर इस निजीकरण के प्रयास को रोकने के लिए पूरा प्रयास करें।

जन-केंद्रित परमाणु नीति और सुरक्षित भविष्य की मांग

घोषणा पत्र में यह मांग भी रखी गई है कि परमाणु नीति को “सार्वजनिक जवाबदेही वाली नीति” के रूप में पुनर्गठित किया जाए, जिसमें लोगों की भागीदारी, पारदर्शिता और पर्यावरण संरक्षण सर्वोच्च प्राथमिकता हों।
साथ ही, दीर्घकालिक जोखिमों के कारण सभी खतरनाक परमाणु गतिविधियों को चरणबद्ध तरीके से बंद करने की मांग भी की गई है।

इस विरोध में शामिल प्रमुख संगठन

CNDP, NAAM, PMANE, चुटका परमाणु विरोधी संघर्ष समिति (मध्य प्रदेश), चीमेनी (केरल), भोपाल ग्रुप फॉर इंफॉर्मेशन एंड एक्शन, Indian Social Action Forum, Growthwatch, भारत जन विज्ञान जत्था, NAPM, NACEJ, JOAR (जदुगोडा), Human Rights Forum सहित अनेक राष्ट्रीय संगठन इस बयान के हस्ताक्षरकर्ता हैं।

व्यक्तिगत हस्ताक्षरकर्ता

विद्या डिंकर, ललिता रामदास, अचिन वनाइक, सिंथिया स्टीफन, देवसायाहम, मधु भादुरी, रोहिणी हेंसमैन, सुनीता शील, गोविंद केलकर, रक्ष कुमार, अमृता छाछी, उर्वशी सरकार, सुधीर वाम्बटकेरे, एस.पी. उदयकुमार सहित अनेक बुद्धिजीवियों, शोधकर्ताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं और मानवाधिकार आवाज़ों ने इस बयान का समर्थन किया है।

परमाणु ऊर्जा क्षेत्र के निजीकरण को लेकर उठी यह व्यापक चिंता जन-स्वास्थ्य, सुरक्षा और पर्यावरणीय जोखिमों पर गंभीर बहस की मांग करती है। विशेषज्ञों का मत है कि परमाणु ऊर्जा जैसे अत्यंत संवेदनशील और जोखिमपूर्ण क्षेत्र में सार्वजनिक हित की सर्वोच्चता और कड़ी निगरानी ही देश और आने वाली पीढ़ियों की सुरक्षा का सबसे विश्वसनीय मार्ग है।

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