सोमवार, सितम्बर 29, 2025
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शहीदों को श्रद्धांजलि पर जुर्माना: सूर्यकुमार यादव का मामला, राष्ट्रवाद और सत्ता के दोहरे मापदंड

खेल, राष्ट्रवाद और शहीदों का सम्मान – एक टकराव

भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान सूर्यकुमार यादव ने हाल ही में एक मैच के दौरान शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की। यह कदम किसी भी भारतीय नागरिक के लिए गौरव का विषय होना चाहिए था, लेकिन अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (ICC) ने इसे नियमों का उल्लंघन मानते हुए उन पर जुर्माना ठोक दिया।

सवाल यह है कि – क्या शहीदों को सम्मान देना अपराध है? और अगर ऐसा है, तो क्या खेल के मैदान की तथाकथित “निष्पक्षता” शहीदों की कुर्बानी से भी ऊपर है?

खेल-नियम बनाम राष्ट्रवाद
ICC का तर्क यह है कि खेल के मैदान को राजनीतिक या धार्मिक प्रतीकों से मुक्त रखा जाए। यह तर्क कागज़ पर तटस्थ लगता है, लेकिन हकीकत में यह एक दोहरे मापदंड को जन्म देता है।
जब पश्चिमी देशों के खिलाड़ी किसी आंदोलन, नस्लभेद या युद्ध पीड़ितों के समर्थन में प्रतीक पहनते हैं, तो उसे “मानवीय संवेदना” कहा जाता है।
लेकिन जब कोई भारतीय खिलाड़ी शहीदों को याद करता है, तो उसे “आचार संहिता का उल्लंघन” घोषित कर दिया जाता है।
यही टकराव असली प्रश्न उठाता है—क्या वैश्विक खेल-संस्थाएँ तटस्थ हैं, या वे पश्चिमी राजनीति और शक्ति-संतुलन के दबाव में काम करती हैं?

सरकार की चुप्पी : राष्ट्रवाद की सियासत और असली परीक्षा
भारतीय जनता पार्टी की सरकार हर मंच पर राष्ट्रवाद और शहीदों के बलिदान का गुणगान करती है। चुनावी सभाओं में प्रधानमंत्री मोदी अक्सर पाकिस्तान और सुरक्षा बलों का नाम लेकर वोट बटोरते हैं। लेकिन जब अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपने खिलाड़ियों और शहीदों की इज्जत बचाने की बारी आती है, तो वही सरकार खामोश हो जाती है।
यह चुप्पी सिर्फ कायरता नहीं, बल्कि यह दिखाती है कि सत्ता के लिए राष्ट्रवाद केवल एक चुनावी नारा है, न कि व्यवहारिक संकल्प।
क्या यही है वह ‘विश्वगुरु भारत’, जो नारेबाज़ी में तो तेज़ है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपने नागरिकों और खिलाड़ियों की रक्षा करने में विफल?

मीडिया : चौथा स्तंभ या साइलेंट पार्टनर?
लोकतंत्र में मीडिया की भूमिका सत्ता और समाज के बीच पुल बनाने की होती है। लेकिन इस मामले में मीडिया की भूमिका संदिग्ध रही।
कुछ चैनलों ने खबर को लगभग दबा दिया।
कुछ ने इसे महज़ टीआरपी की सनसनी बना दिया।
जनता तक असली बहस – “क्या शहीदों का सम्मान करना अपराध है?” – पहुँच ही नहीं पाई। इस रवैये ने साबित कर दिया कि भारतीय मीडिया सत्ता और स्पॉन्सर के दबाव में खामोश बैठा “साइलेंट पार्टनर” बन चुका है।

खेल, सम्मान और असली राष्ट्रवाद
खिलाड़ी देश के लिए मेडल और उपलब्धियाँ लाते हैं। सरकारें उनके साथ तस्वीर खिंचवाकर वाहवाही लूटती हैं। लेकिन जैसे ही कोई विवाद या मुश्किल आती है, वही खिलाड़ी अकेला छोड़ दिया जाता है।
सूर्यकुमार यादव का मामला सिर्फ एक खिलाड़ी का नहीं, बल्कि यह पूरे समाज के लिए आईना है। अगर शहीदों को याद करना अपराध है, तो हम सब अपराधी हैं।
असली राष्ट्रवाद नारों और झंडों में नहीं, बल्कि अपने खिलाड़ियों और शहीदों के सम्मान की रक्षा में है।

जनता की भूमिका : चुप्पी तोड़ने का समय
यह मामला सरकार, मीडिया या केवल ICC की जिम्मेदारी नहीं है। यह हम सबके लिए चेतावनी है।

1. सरकार को चाहिए कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर मजबूती से खिलाड़ियों का बचाव करे।
2. मीडिया को चाहिए कि वह सच्चाई और निष्पक्षता पर टिके, न कि केवल सत्ता और विज्ञापनदाताओं के इशारे पर।
3. जनता को चाहिए कि वह चुप्पी को तोड़े और सवाल पूछे—क्या हम अपने शहीदों और खिलाड़ियों के सम्मान की रक्षा कर रहे हैं या सत्ता और संस्थाओं के दबाव में झुक रहे हैं?

सूर्यकुमार यादव का मामला केवल खेल का विवाद नहीं है। यह राष्ट्रवाद की असली परीक्षा है। यह हमें सोचने पर मजबूर करता है कि –
क्या शहीदों की कुर्बानी को मैदान पर याद करना अपराध है?
क्या हमारी सरकार और मीडिया केवल नारे और तस्वीरों तक सीमित राष्ट्रवाद में यकीन करते हैं?
और सबसे बड़ा सवाल: क्या हम नागरिक इस चुप्पी और दोहरे मापदंड को स्वीकार करेंगे, या आवाज़ उठाएँगे?
यही समय है जब हम तय करें कि राष्ट्रवाद केवल सत्ता की राजनीति का औजार है या वास्तव में यह हमारे खिलाड़ियों और शहीदों की इज्जत की रक्षा का संकल्प भी है।
(आलेख: प्रदीप शुक्ल, स्वतंत्र पत्रकार)

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