🔻बिहार सरकार द्वारा अडानी समूह को बिजली संयंत्र के लिए मात्र 1 रुपये प्रति एकड़ की दर से 1050 एकड़ ज़मीन देने का आरोप।
🔻भाकपा-माले और अखिल भारतीय किसान महासभा ने पटना समेत पूरे राज्य में किया जोरदार प्रतिवाद।
🔻नेताओं ने कहा – “यह जनता का साथ, अडानी का विकास” वाली नीति है, गरीबों को आवास नहीं, कॉर्पोरेट को सौगात।
🔻रोज़गार के वादों को छलावा और गंगाजल के औद्योगिक दोहन से जल संकट पैदा होने की आशंका जताई।
पटना (पब्लिक फोरम)। बिहार की धरती एक बार फिर किसान और मज़दूरों के नारों से गूंज उठी। मौका था अडानी समूह को कौड़ियों के भाव ज़मीन सौंपने के सरकारी फैसले के खिलाफ एक बड़े विरोध प्रदर्शन का। भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माले) और अखिल भारतीय किसान महासभा के आह्वान पर 22 सितंबर को, राजधानी पटना सहित पूरे बिहार में ‘प्रतिवाद सभाएं’ आयोजित की गईं, जिसमें हज़ारों की संख्या में किसानों, मज़दूरों और आम नागरिकों ने हिस्सा लेकर सरकार के प्रति अपना गहरा आक्रोश व्यक्त किया।
मामला भागलपुर में अडानी पावर प्लांट के लिए 1050 एकड़ उपजाऊ ज़मीन को मात्र 1 रुपये प्रति एकड़ की दर से आवंटित करने के फैसले से जुड़ा है। प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि यह फैसला बिहार के संसाधनों की खुली लूट और कॉर्पोरेट घरानों के सामने सरकार के घुटने टेकने का जीता-जागता सबूत है।
“गरीबों को छत नहीं, अडानी को पूरा बाग!”
पटना में आयोजित प्रतिवाद सभा को संबोधित करते हुए वरिष्ठ नेता कामरेड के.डी. यादव ने सरकार पर तीखा हमला बोला। उन्होंने अपनी बातों में भावुकता और तर्क का संतुलन साधते हुए कहा, “प्रधानमंत्री मोदी ने बिहार को लूटने के लिए अडानी का दरवाज़ा खोल दिया है। एक तरफ बिहार में लाखों भूमिहीन गरीब परिवार हैं, जिन्हें सरकार सिर छिपाने के लिए 3 डिसमिल ज़मीन तक नहीं दे पाती, और दूसरी तरफ जब अडानी की बात आती है, तो पूरी की पूरी 1050 एकड़ बाग-बगीचों वाली ज़मीन 1 रुपए के हिसाब से सौंप दी जाती है!”
उन्होंने जनता से सीधा संवाद स्थापित करते हुए कहा कि गरीबों को छत देने में नाकाम सरकार कॉर्पोरेट को मालामाल कर रही है। उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि एनडीए का नारा अब ‘जनता का साथ, अडानी का विकास’ होना चाहिए। उनके इस बयान पर सभा में मौजूद लोगों ने जोरदार तालियों से सहमति जताई।
विकास का वादा या दोहरी ठगी की तैयारी?
सभा में मौजूद अन्य वक्ताओं ने भी इस फैसले को “मोदी-नीतीश की डबल ठगी” की संज्ञा दी। फुलवारी से विधायक गोपाल रविदास और किसान महासभा के राज्य सह सचिव राजेंद्र पटेल ने इस सौदे के पीछे छिपे खतरों को उजागर किया। उन्होंने कहा, “यह सिर्फ ज़मीन का सवाल नहीं है। यह हमारे भविष्य का सवाल है। एक ओर तो हमारी सबसे उपजाऊ ज़मीन छीनी जा रही है, वहीं दूसरी ओर गंगा के पानी का औद्योगिक इस्तेमाल करके सरकार बिहार के पूर्वांचल में एक नया और भयानक जल संकट पैदा करने की तैयारी कर रही है।”
रोज़गार के दावों पर सवाल उठाते हुए वक्ताओं ने कहा कि प्लांट निर्माण के दौरान 10-12 हज़ार अस्थायी नौकरियों और संचालन के समय 3000 स्थायी नौकरियों का वादा महज़ एक छलावा है। उन्होंने अपने अनुभव से बताया, “ऐसे मामलों में स्थानीय लोगों को शायद ही कोई मौका मिलता है। यह बिहार की जनता की आंखों में धूल झोंककर भागने की तैयारी है, लेकिन हम ऐसा होने नहीं देंगे।”
सिर्फ भागलपुर नहीं, पूरे बिहार में ज़मीन की लूट
यह विरोध केवल भागलपुर तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे बिहार में चल रही ज़मीन अधिग्रहण की नीतियों के खिलाफ एक व्यापक आवाज़ है। नेताओं ने आरोप लगाया कि राज्य के पुराने उद्योग-धंधे तो पहले ही ध्वस्त हो चुके हैं, और अब नए उद्योग लगाने के नाम पर सरकार गरीबों और किसानों की बची-खुची ज़मीन को बिना मुआवज़े या बेहद कम मुआवज़े पर छीनकर अपने कॉर्पोरेट मित्रों को उपहार में दे रही है।
पटना में प्रतिवाद सभा की अध्यक्षता ऐक्टू नेता रणविजय कुमार ने की और इसका संचालन कामरेड राजेंद्र पटेल ने किया। इस मौके पर राज्य के कई बड़े नेता और कार्यकर्ता मौजूद रहे। पटना के अलावा नालंदा, आरा, फतुहा, मसौढ़ी, जमुई, अरवल और नवादा जैसे कई अन्य ज़िलों में भी प्रतिवाद सभाएं आयोजित की गईं, जो यह दर्शाता है कि यह गुस्सा किसी एक क्षेत्र तक सीमित नहीं, बल्कि पूरे राज्य में फैल चुका है। यह विरोध सिर्फ एक ज़मीन के टुकड़े का नहीं, बल्कि बिहार के आत्मसम्मान और उसके संसाधनों पर हक़ की लड़ाई का प्रतीक बन गया है।
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