रायपुर (पब्लिक फोरम)। छत्तीसगढ़ में सनातन परंपरा के संरक्षकों, पुजारियों, पुरोहितों और भागवताचार्यों के लिए एक महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक पहल की गई है. राजधानी रायपुर में आयोजित चतुर्वर्णार्थ धर्म स्तंभ काउंसिल की एक बैठक में यह निर्णय लिया गया है कि प्रदेश के सभी पुजारियों को दिल्ली मॉडल की तर्ज पर प्रतिमाह 15,000 रुपये का मानदेय प्रदान करने के लिए सरकार से मांग की जाएगी। इस फैसले का उद्देश्य धर्म और संस्कृति के इन प्रहरियों को आर्थिक रूप से संबल प्रदान करना है।
नागा संत हरिशंकर दास की अध्यक्षता में संपन्न हुई इस बैठक में यह विचार प्रमुखता से उभरा कि पुजारी और भागवताचार्य केवल मंदिरों और अनुष्ठानों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि वे समाज की आस्था और संस्कृति के दीपस्तंभ हैं। संत हरिशंकर दास ने कहा, “पुजारी समाज की आस्था के संरक्षक हैं. उनका सम्मान और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करना राज्य का कर्तव्य है।”
इस प्रस्तावित योजना से प्रदेश के हजारों पुजारियों, पुरोहितों और भागवताचार्यों को लाभ मिलने की उम्मीद है. अखिल भारतीय पुजारी-पुरोहित संघ के संयोजक डॉ. सौरव निर्वाणी ने बताया कि यह योजना सभी परंपराओं और जातियों के गृहस्थ संतों के लिए होगी, ताकि हर समाज के संत समान रूप से लाभान्वित हो सकें. संघ के प्रदेशाध्यक्ष महंत सुरेंद्र दास के अनुसार, संगठन प्रदेश के सभी पुजारियों की एक विस्तृत सूची तैयार कर रहा है, जिसे जिला और ग्राम स्तर पर संकलित कर औपचारिक मांग पत्र के साथ सरकार को सौंपा जाएगा।
धार्मिक संगठनों ने इस निर्णय का खुले दिल से स्वागत किया है। उनका मानना है कि यह कदम न केवल सनातन संस्कृति को मजबूती देगा, बल्कि साधु-संत परंपरा की गरिमा को भी पुनर्स्थापित करेगा। इसे धर्म और आस्था के क्षेत्र में एक सराहनीय और दूरगामी प्रभाव वाला कदम माना जा रहा है।
हालांकि, चतुर्वर्णार्थ धर्म स्तंभ काउंसिल द्वारा यह प्रस्ताव रखा गया है और इसे सरकार को सौंपने की तैयारी है, लेकिन इस पर अभी तक राज्य सरकार की कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सरकार इस मांग पर क्या रुख अपनाती है और इसे लागू करने के लिए क्या कदम उठाती है। धार्मिक संगठनों का कहना है कि इस निर्णय के क्रियान्वयन से प्रदेश में धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं को एक नई ऊर्जा और स्थिरता मिलेगी।
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