राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष के सामने उठा गंभीर मुद्दा
बिलासपुर (पब्लिक फोरम)। छत्तीसगढ़ में आदिवासी समुदाय के अधिकारों को लेकर एक चौंकाने वाला सच सामने आया है। राज्य में 5000 से अधिक लोग फर्जी अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र के दम पर सरकारी नौकरियां कर रहे हैं। यह गंभीर आरोप राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष अंतर सिंह आर्या के बिलासपुर प्रवास के दौरान सामने आया है।
राज्य लोक सेवा आयोग के सदस्य संत कुमार नेताम ने कलेक्ट्रेट में आयोजित आदिवासी समाज प्रमुखों की बैठक में यह चिंताजनक जानकारी साझा की। उनके अनुसार, यह केवल नौकरियों का मामला नहीं है, बल्कि एक व्यापक भ्रष्टाचार का जाल है जो आदिवासी समुदाय के संवैधानिक अधिकारों पर सीधा हमला है।
न्यायिक सुरक्षा कवच का दुरुपयोग
संत कुमार नेताम ने बताया कि फर्जी प्रमाण पत्र धारक एक चालाक रणनीति अपनाते हैं। वे हाईकोर्ट से स्टे आर्डर प्राप्त कर लेते हैं और इस तरह सरकारी कार्रवाई से बच निकलते हैं। उन्होंने महाधिवक्ता कार्यालय पर भी गंभीर आरोप लगाया कि वह इन संवेदनशील मामलों पर उचित ध्यान नहीं देता।
“इस लापरवाही का परिणाम यह है कि फर्जी प्रमाण पत्र धारक न केवल नौकरी करते हैं, बल्कि रिटायरमेंट के बाद पेंशन भी प्राप्त कर लेते हैं,” नेताम ने कहा। यह स्थिति उन वास्तविक आदिवासी युवाओं के साथ घोर अन्याय है जो अपने संवैधानिक अधिकारों से वंचित रह जाते हैं।
व्यापक स्तर पर फैला भ्रष्टाचार
इस समस्या की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि चपरासी से लेकर क्लास टू अधिकारियों तक के पदों पर फर्जी प्रमाण पत्र धारकों की उपस्थिति है। यह दर्शाता है कि यह कोई छिटपुट घटना नहीं, बल्कि एक व्यवस्थित धोखाधड़ी है जो राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था की जड़ों तक पहुंच गई है।
आदिवासी समुदाय की व्यापक चिंताएं
बैठक में केवल फर्जी प्रमाण पत्र का मुद्दा ही नहीं उठा। आदिवासी समाज के प्रमुखों ने कई अन्य गंभीर समस्याओं पर भी चर्चा की:-
🔹पदोन्नति में आरक्षण की समस्या: सरकारी नौकरियों में पदोन्नति के दौरान अनुसूचित जनजाति को मिलने वाला आरक्षण सही तरीके से लागू नहीं हो रहा।
🔹हसदेव क्षेत्र में पर्यावरणीय चिंता: बिना ग्राम सभा की अनुमति के पेड़ों की कटाई हो रही है, जो पेशा (PESA) कानून का सीधा उल्लंघन है।
🔹भूमि अधिकारों का हनन: आदिवासियों की भूमि गैर-आदिवासियों को गैरकानूनी तरीके से हस्तांतरित की जा रही है।
राष्ट्रपति तक पहुंचेगी रिपोर्ट
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष अंतर सिंह आर्या ने इन मुद्दों की गंभीरता को समझते हुए आश्वासन दिया कि वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इन सभी विषयों पर चर्चा करेंगे। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति को एक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की जाएगी।
“आदिवासी समुदाय की ओर से जो सुझाव मिले हैं, वे सभी महत्वपूर्ण हैं। ये कानूनी और संवैधानिक मुद्दों से जुड़े हैं। इन्हें राष्ट्रपति और राज्यपाल के ध्यान में लाकर सकारात्मक समाधान किया जाएगा,” आर्या ने कहा।
32 प्रतिशत आरक्षण का सवाल
बैठक में एक अन्य महत्वपूर्ण मुद्दा उठा – आदिवासियों को मिलने वाले 32 प्रतिशत आरक्षण का सही तरीके से पालन नहीं होना। यह न केवल संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन है, बल्कि सामाजिक न्याय की दिशा में एक बड़ा धक्का भी है।
महिला अधिकारों की सुरक्षा
बैठक में आदिवासी महिलाओं के साथ होने वाली एक चिंताजनक समस्या भी उजागर हुई। कुछ गैर-आदिवासी पुरुष आदिवासी महिलाओं से शादी करके उनके नाम पर संपत्ति हासिल कर रहे हैं और चुनाव भी लड़ रहे हैं। यह एक गंभीर सामाजिक और कानूनी समस्या है जिसके लिए तत्काल कार्रवाई की मांग की गई।
वन अधिकार पट्टे की समस्या
वन अधिकार अधिनियम के तहत मिलने वाले पट्टों की समस्या भी चर्चा में रही। आदिवासी समुदाय के सदस्यों को अपने पारंपरिक वन अधिकार मिलने में देरी हो रही है, जो उनकी आजीविका पर प्रत्यक्ष प्रभाव डाल रही है।
समाधान की दिशा
इन सभी समस्याओं का समाधान केवल कानूनी कार्रवाई से ही संभव नहीं है। इसके लिए एक व्यापक रणनीति की आवश्यकता है जिसमें:
– फर्जी प्रमाण पत्र धारकों की पहचान और तत्काल कार्रवाई
– न्यायिक प्रक्रिया में तेजी लाना
– प्रशासनिक व्यवस्था में पारदर्शिता
– आदिवासी अधिकारों की बेहतर सुरक्षा
यह मुद्दा केवल छत्तीसगढ़ का नहीं है, बल्कि पूरे देश में आदिवासी समुदाय के संवैधानिक अधिकारों की सुरक्षा का प्रश्न है। इसका समाधान न केवल न्याय की मांग है, बल्कि एक स्वस्थ लोकतंत्र की आवश्यकता भी है।
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग की यह पहल आशा की किरण जगाती है कि आने वाले समय में इन समस्याओं का न्यायसंगत समाधान होगा। लेकिन इसके लिए केवल सरकारी प्रयास पर्याप्त नहीं हैं, बल्कि समाज के हर तबके को मिलकर इस भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़ा होना होगा।
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