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गुरूवार, सितम्बर 11, 2025
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कोरबा का क्रंदन: तालाब में डूबीं तीन मासूम जिंदगियां, पुलिस परिवार पर टूटा दुख का पहाड़ और नेताओं की चुप्पी पर उठे सवाल

त्रासदी जिसने कोरबा को झकझोर दिया

कोरबा (पब्लिक फोरम)। बीते शुक्रवार को पुलिस लाइन कॉलोनी से लगे रिसदी तालाब में नहाने गए तीन मासूम बच्चों की डूबकर मौत हो गई। तीन घरों के चिराग बुझ गए और पूरा पुलिस परिवार मातम में डूब गया। इस हृदय विदारक घटना ने न केवल तीन परिवारों की दुनिया उजाड़ी, बल्कि पूरे शहर को शोक और आक्रोश से भर दिया।

पुलिस लाइन में रहने वाले तीन दोस्त आकाश लकड़ा (13), प्रिंस जगत (12) और युवराज सिंह ठाकुर (9) रोज की तरह खेलते-खेलते तालाब में नहाने गए थे। खेल-खेल में वे गहरे पानी में उतर गए और डूबने लगे। आसपास मौजूद लोगों ने जब तक कुछ समझा और बच्चों को बाहर निकाला, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। जिला अस्पताल ले जाते ही डॉक्टरों ने तीनों को मृत घोषित कर दिया।

बिखरते परिवारों का संसार
यह हादसा जिन घरों पर टूटा, उनका दर्द शब्दों में बयान करना असंभव है।

आकाश लकड़ा अपने माता-पिता की इकलौती संतान था। वर्षों की मन्नतों के बाद घर में जन्मा यह बच्चा अब हमेशा के लिए चला गया। मां का रोते-रोते बेहोश हो जाना पूरे माहौल को और भी भारी कर गया।
प्रिंस जगत, अपने माता-पिता का इकलौता बेटा, एक पुलिस परिवार से था। पिता अयोध्या जगत ने भी पुलिस विभाग में सेवा दी थी।
युवराज सिंह ठाकुर, दो भाई-बहनों में सबसे छोटा, अपने घर की खुशियों का केंद्र था। उसके पिता राजेश्वर ठाकुर सिविल लाइन थाने में पदस्थ हैं।
तीनों की असमय मौत ने पुलिस परिवार को शोकसागर में डुबो दिया।

प्रशासन की मौजूदगी, लेकिन नेताओं की अनुपस्थिति

घटना की जानकारी मिलते ही वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक सिद्धार्थ तिवारी और अन्य अधिकारी मौके पर पहुंचे। उन्होंने परिवारों को सांत्वना दी और पुलिसकर्मियों का हौसला बढ़ाने की कोशिश की।

लेकिन इस पूरे मातमी माहौल में जो सबसे ज्यादा चुभा, वह था – जनप्रतिनिधियों की खामोशी।
न सत्ता पक्ष से कोई बड़ा नेता आया, न ही विपक्ष से। केवल सांसद ने शोक संवेदना प्रकट की। इस चुप्पी ने यह सवाल खड़ा कर दिया कि क्या हमारे नेताओं की संवेदनाएं केवल चुनावी मौसम तक सीमित रह गई हैं?

इंसानियत से बड़ी राजनीति?
यह त्रासदी केवल तीन मासूमों का खोना नहीं है, बल्कि हमारी व्यवस्था और राजनीति का आईना भी है।
तालाब और जलाशयों की सुरक्षा अब भी उपेक्षित क्यों है?
छोटे-छोटे सुरक्षा उपाय (चेतावनी बोर्ड, बैरिकेड्स, निगरानी दल) क्यों नहीं किए जाते?
और सबसे बड़ी बात – क्या हमारे नेता केवल सत्ता और मंचों पर ही संवेदनशील होते हैं?

समाज और राजनीति का असली मूल्य इस बात से तय होता है कि वे संकट की घड़ी में आम नागरिकों के साथ कितने खड़े होते हैं। कोरबा की यह घटना हमें याद दिलाती है कि इंसानियत हमेशा सत्ता से बड़ी होनी चाहिए।

इस त्रासदी से सबक लेना होगा

यह हादसा केवल शोक का अवसर नहीं, बल्कि चेतावनी है।
प्रशासन को चाहिए कि सभी तालाबों और जलाशयों की सुरक्षा व्यवस्था मजबूत करे।
समाज को चाहिए कि बच्चों को अकेले असुरक्षित स्थानों पर जाने से रोके और सामूहिक निगरानी की पहल करे।
जनप्रतिनिधियों को चाहिए कि वे केवल चुनावी मंचों तक सीमित न रहें, बल्कि जनता के दुख-सुख में सच्चे साथी बनें।

“यदि हम इस त्रासदी से सबक लेकर आगे कदम नहीं बढ़ाते, तो भविष्य में ऐसे हादसे फिर होंगे और फिर तीन और घर अंधेरे में डूब जाएंगे। इसीलिए यह हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है कि हम बदलाव की दिशा में ठोस प्रयास करें। यही उन तीन मासूम आत्माओं – आकाश, प्रिंस और युवराज – के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।”

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