कोरबा (पब्लिक फोरम)। छत्तीसगढ़ किसान सभा और भूविस्थापित रोजगार एकता संघ ने 20 अगस्त को कुसमुंडा खदान बंद और कार्यालय घेराव आंदोलन की घोषणा की है। यह निर्णय 9 सूत्रीय मांगों को लेकर लिया गया है, जिसमें भूविस्थापितों को रोजगार, अधिग्रहित भूमि का मुआवजा, जमीन वापसी, पुनर्वास गांवों में काबिज भूमि का पट्टा देने जैसी प्रमुख मांगें शामिल हैं।
इससे पहले 13 अगस्त को कटघोरा एसडीएम कार्यालय का घेराव कर किसान सभा ने प्रशासन को चेतावनी दी थी, लेकिन मांगे पूरी न होने पर आंदोलन को और तेज करने का निर्णय लिया गया। भूविस्थापितों का कहना है कि प्रशासन और एसईसीएल (SECL) के केवल आश्वासन से अब वे थक चुके हैं और इस बार आर-पार की लड़ाई लड़ने का मन बना लिया है।
20 अगस्त के आंदोलन की तैयारी के लिए कुसमुंडा में 1386 दिनों से चल रहे धरना स्थल पर प्रभावितों की एक बड़ी बैठक हुई। बैठक में आंदोलन को सफल बनाने की रणनीति तैयार की गई और सभी भूविस्थापितों से एकजुट होकर आंदोलन में शामिल होने की अपील की गई।
भूविस्थापित रोजगार एकता संघ के अध्यक्ष रेशम यादव, किसान सभा के जिलाध्यक्ष जवाहर सिंह कंवर, दामोदर श्याम, जय कौशिक, दीपक साहू और सुमेंद्र सिंह ने कहा कि खदान महाबंद आंदोलन केवल भूविस्थापित किसानों का नहीं, बल्कि आम जनता का भी आंदोलन बन चुका है और इसे व्यापक जनसमर्थन मिल रहा है।
किसान सभा के प्रदेश संयुक्त सचिव प्रशांत झा ने बताया कि कोयला खनन के लिए 40 साल पहले किसानों की हजारों एकड़ जमीन अधिग्रहित की गई थी, लेकिन आज भी हजारों परिवार रोजगार और बसावट के लिए संघर्ष कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि किसान सभा हर कदम पर भूविस्थापित किसानों के साथ है और उनकी लड़ाई को और मजबूती से आगे बढ़ाया जाएगा।
सभा के नेताओं ने आरोप लगाया कि एसईसीएल और जिला प्रशासन मिलकर भूविस्थापितों के साथ लगातार धोखाधड़ी कर रहे हैं और लंबित प्रकरणों पर गंभीर नहीं हैं। यही कारण है कि अब संघर्ष को तेज करना अनिवार्य हो गया है।
प्रभावित गांवों में हो रही बैठकों में बड़ी संख्या में महिलाएं भी शामिल हो रही हैं। भूविस्थापित नेताओं ने स्पष्ट किया कि खदान बंद और कार्यालय घेराव आंदोलन में 15 से अधिक प्रभावित गांवों के किसान एकजुट होकर शामिल होंगे।
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