रायपुर/रायगढ़ (पब्लिक फोरम)। छत्तीसगढ़ की अपनी भाषा, अपनी पहचान को समर्पित एक भव्य और भावपूर्ण समारोह में, राज्य की साहित्यिक चेतना को एक नई ऊर्जा मिली। छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग ने 14 अगस्त को अपने 18वें स्थापना दिवस के अवसर पर प्रदेश के उन छह मनीषियों को सम्मानित किया, जिन्होंने अपना जीवन छत्तीसगढ़ी भाषा, साहित्य और संस्कृति की सेवा में समर्पित कर दिया है। न्यू सर्किट हाउस में आयोजित यह राज्यस्तरीय सम्मान समारोह सिर्फ एक औपचारिकता नहीं, बल्कि उस गौरव का प्रतीक था, जो हर छत्तीसगढ़िया अपनी ‘महतारी भाखा’ के लिए महसूस करता है।
समारोह में जिला रायगढ़ (खरसिया) के मनमोहन सिंह ठाकुर, जांजगीर-चांपा के रमाकांत सोनी, दुर्ग के डॉ. संतराम देशमुख, कांकेर के गणेश यदु, बिलासपुर के सनत तिवारी और जांजगीर-चांपा के हर प्रसाद “निडर” को उनके अमूल्य योगदान के लिए सम्मानित किया गया। जब इन साहित्यकारों को राजकीय गमछा, श्रीफल, सम्मान पत्र और प्रतीक चिह्न भेंट किए गए, तो पूरा सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। यह सम्मान उनकी दशकों की साधना का प्रतिफल था, जिसने छत्तीसगढ़ी साहित्य को समृद्ध किया है।
भाषा और अस्मिता का संकल्प
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रायपुर सांसद बृजमोहन अग्रवाल ने अपने उद्बोधन से सभी को प्रेरित किया।उन्होंने भावुकता और दृढ़ता के साथ कहा, “जो अपनी संस्कृति, परंपरा और भाषा को भूल जाते हैं, उसे दुनिया भी याद नहीं करती है।” उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि अपनी भाषा की अस्मिता को बचाने के लिए हम सभी को मिलकर लड़ना होगा। श्री अग्रवाल ने पद्मश्री सुरेंद्र दुबे के योगदान को याद करते हुए कहा कि उन्होंने छत्तीसगढ़ी को विश्व के मंच पर पहचान दिलाई।उन्होंने यह भी संकल्प दोहराया कि छत्तीसगढ़ी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कराने के लिए हर संभव प्रयास जारी रहेगा, क्योंकि यह हमारी सबसे बड़ी जरूरत है।

सम्मान के सच्चे हकदार, जिन्होंने भाषा को जिया
यह सम्मान उन व्यक्तियों को मिला, जिनका जीवन छत्तीसगढ़ी भाषा के इर्द-गिर्द घूमता है। रायगढ़ की कलात्मक भूमि से लेकर जांजगीर-चांपा के साहित्यिक उर्वर क्षेत्र तक, इन सभी 6 विभूतियों ने अपनी रचनाओं से छत्तीसगढ़ की मिट्टी की सुगंध को अक्षरों में पिरोया है। चाहे वह लोक कथाओं का संरक्षण हो, कविताओं के माध्यम से सामाजिक चेतना का प्रसार हो या फिर छत्तीसगढ़ी साहित्य पर शोध हो, हर सम्मानित व्यक्तित्व का योगदान अद्वितीय और प्रेरणादायक है। यह आयोजन नई पीढ़ी के लिए एक संदेश है कि अपनी जड़ों से जुड़कर ही आसमान को छुआ जा सकता है।
आयोग का भविष्य का रोडमैप
छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग केवल सम्मान समारोह तक ही सीमित नहीं है, बल्कि भाषा के उत्थान के लिए एक स्पष्ट दृष्टिकोण के साथ काम कर रहा है। आयोग की सचिव डॉ. अभिलाषा बेहार ने आयोग के तीन प्रमुख उद्देश्यों को रेखांकित किया।
– प्राथमिक शिक्षा में छत्तीसगढ़ी भाषा को प्राथमिकता देना।
– सरकारी कामकाज में छत्तीसगढ़ी के प्रयोग को बढ़ावा देना।
– छत्तीसगढ़ी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कराने के लिए निरंतर प्रयास करना।
समारोह के दौरान स्थानीय भाषा की किताबों की प्रदर्शनी भी लगाई गई, जो आयोग के प्रयासों की एक झलक प्रस्तुत करती है।यह वार्षिक आयोजन प्रदेश की साहित्यिक और सांस्कृतिक चेतना को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर माना जा रहा है। यह एक ऐसा मंच है, जो भाषा के प्रहरियों को सम्मान देता है और आने वाली पीढ़ियों को अपनी धरोहर पर गर्व करने की प्रेरणा देता है।
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