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रविवार, सितम्बर 28, 2025
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भाकपा (माले) का आरोप: बिहार में मतदाता सूची से सामूहिक रूप से नाम काटे जाने का खुलासा, चुनाव आयोग पर वोटबंदी का आरोप

पटना (पब्लिक फोरम)। भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी–लेनिनवादी) लिबरेशन [भाकपा (माले)] ने बिहार में चुनाव आयोग द्वारा चलाए जा रहे विशेष गहन पुनर्रीक्षण (SIR) अभियान के दौरान मतदाता सूची से गैरकानूनी तरीके से नाम काटे जाने का पहला प्रत्यक्ष सबूत पेश किया है। पार्टी का दावा है कि जिन क्षेत्रों में उनके कार्यकर्ताओं ने भौतिक सत्यापन किया, वहां बड़ी संख्या में वैध मतदाताओं के नाम बिना उचित कारण हटा दिए गए हैं।

पार्टी के अनुसार, यह कार्रवाई विशेष रूप से यादव बहुल और दलित समुदाय के गांवों में देखने को मिली है—वे समुदाय जो राष्ट्रीय जनता दल और अन्य विपक्षी दलों का पारंपरिक समर्थन आधार माने जाते हैं। भाकपा (माले) ने इसे “वोटबंदी” की साजिश बताते हुए कहा कि यह प्रक्रिया हाशिये के वर्गों को लोकतांत्रिक अधिकार से वंचित करने की सुनियोजित योजना है।

दरभंगा जिले के बहादुरपुर विधानसभा क्षेत्र के बांधबस्ती गांव का उदाहरण देते हुए, पार्टी ने बूथ स्तरीय सहायक (BLA) अमित कुमार पासवान की शिकायत का हवाला दिया। पासवान के मुताबिक, इस गांव के बूथ में 818 मतदाताओं में से 59 लोगों के नाम मसौदा सूची से काट दिए गए। भौतिक सत्यापन में पाया गया कि इनमें से 20 लोग जीवित हैं और गांव में ही निवास करते हैं।

पार्टी का कहना है कि आश्चर्यजनक रूप से, मोतीलाल यादव और ध्यानी यादव जैसे मतदाताओं के नाम 2003 की मतदाता सूची में मौजूद थे, फिर भी अब उन्हें मताधिकार से वंचित कर दिया गया है।

भाकपा (माले) महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने सोशल मीडिया पोस्ट में भी आरा जिले के एक विधानसभा क्षेत्र में ऐसे ही मामलों की जानकारी साझा की है। इसके साथ ही, पार्टी ने एक वीडियो जारी किया जिसमें पटना जिले के फुलवारी विधानसभा क्षेत्र के धाराचयक गांव के कई वैध मतदाता बताते हैं कि उनके नाम सूची से हटा दिए गए, जबकि वे गांव में मौजूद हैं। पार्टी का दावा है कि केवल इस गांव के बूथ संख्या 83 और 84 से ही 180 वोटरों के नाम हटाए गए हैं।

पार्टी ने सवाल उठाया कि यदि एक गांव में यह स्थिति है, तो राज्य के 90,000 से अधिक बूथों में नाम काटे जाने की व्यापकता कितनी होगी। पार्टी ने चुनाव आयोग पर आरोप लगाया कि वह नाम काटने के कारणों को सार्वजनिक नहीं कर रहा है और शिकायतों की वास्तविक संख्या छुपा रहा है।

चुनाव आयोग के मुताबिक, मसौदा सूची में 65 लाख नाम हटाए गए हैं, जिन्हें आपत्तियों और दावों के बाद सितंबर में संशोधित किया जाएगा। हालांकि, भाकपा (माले) का कहना है कि जिनके नाम हटाए गए हैं, उनसे नए पंजीकरण के लिए फॉर्म-6 भरवाया जा रहा है, जिससे वास्तविक शिकायत दर्ज करने की गुंजाइश ही खत्म हो जाती है।

पार्टी ने मांग की है कि चुनाव आयोग मसौदा मतदाता सूची को हर पंचायत में सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करे, विशेष रूप से उन मतदाताओं के नामों के साथ जिनके नाम हटाए गए हैं, और नाम हटाने के कारणों (मृत्यु, स्थायी पलायन, दोहराव, अनुपलब्धता आदि) का स्पष्ट ब्यौरा भी दे।

भाकपा (माले) ने चेतावनी दी है कि मताधिकार से वंचित किए जाने की यह कार्रवाई संविधान और लोकतंत्र के मूल ढांचे पर सीधा आघात है और इसे किसी भी हाल में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

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