विश्व मूलनिवासी दिवस: एकजुटता, अधिकार और सांस्कृतिक गरिमा की साझा यात्रा
रायपुर (पब्लिक फोरम)। विश्व मूलनिवासी दिवस के अवसर पर प्रोग्रेसिव क्रिश्चियन अलायंस (पीसीए) ने भारत के सभी मूलनिवासी समुदायों के अधिकारों, सांस्कृतिक विरासत और सम्मान के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराई। संस्था ने इस दिन को केवल एक औपचारिक अवसर न मानते हुए इसे ऐतिहासिक संघर्षों, सांस्कृतिक लचीलेपन और प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा में आदिवासी समुदायों की निर्णायक भूमिका को सम्मानित करने का आह्वान किया।
ईसाई मिशनरियों और आदिवासी समुदायों का साझा इतिहास
19वीं शताब्दी से लेकर आज तक, ईसाई मिशनरियों ने मध्य भारत, पूर्वोत्तर और दक्षिण के नीलगिरी क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक सुधार की दिशा में उल्लेखनीय योगदान दिया।
शिक्षा में अग्रणी भूमिका: मिशनरी स्कूलों ने स्थानीय भाषाओं में पढ़ाई की शुरुआत की, जिससे आदिवासी युवाओं को आधुनिक शिक्षा से जोड़ा गया।
स्वास्थ्य सेवाएँ: मिशनरी क्लीनिक और अस्पताल दूरस्थ इलाकों में पहुँचे, जिससे मातृ-शिशु मृत्यु दर में कमी आई।
भूमि अधिकार जागरूकता: मिशनरियों ने आदिवासी समुदायों को भूमि और जंगल पर उनके अधिकारों के प्रति जागरूक किया और शोषण के खिलाफ खड़े होने में सहयोग दिया।
हालाँकि मिशनरी गतिविधियों पर समय-समय पर आलोचना भी हुई, परंतु सामाजिक सेवा, साक्षरता और सम्मानजनक जीवन की दिशा में उनका योगदान कई क्षेत्रों में आज भी याद किया जाता है।
बढ़ता विभाजन और उसकी चुनौतियाँ
पीसीए ने चिंता जताई कि हाल के वर्षों में ईसाई और गैर-ईसाई आदिवासी समुदायों के बीच गलतफहमियों, पहचान की राजनीति और बाहरी हस्तक्षेप के कारण खाई गहरी हुई है। यह विभाजन न केवल संवैधानिक धार्मिक स्वतंत्रता (अनुच्छेद 25) बल्कि पाँचवीं और छठी अनुसूची की स्वायत्तता को भी कमजोर करता है।
शांति निर्माण और एकजुटता की पहल
पीसीए का मानना है कि आदिवासी एकता धर्म नहीं, बल्कि विस्थापन, भूमि हानि, आर्थिक हाशिए पर होने और पारिस्थितिक विनाश के खिलाफ साझा संघर्षों पर आधारित होनी चाहिए। संस्था ने निम्न प्रस्ताव रखे:-
– आदिवासी बुजुर्गों, युवाओं और नागरिक समाज की अगुवाई में अंतर-धार्मिक संवाद।
– पारंपरिक और ईसाई सांस्कृतिक अभिव्यक्तियों का सम्मान करते हुए संयुक्त सांस्कृतिक उत्सव।
– आदिवासी प्रथागत कानून और संवैधानिक मूल्यों पर आधारित स्थानीय विवाद समाधान तंत्र।
– वन अधिकार अधिनियम (2006), पेसा (1996) और एससी/एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत कानूनी जागरूकता कार्यक्रम।
पीसीए का स्पष्ट रुख
यीशु मसीह की शिक्षाओं से प्रेरित होकर पीसीए ने कहा कि ईसाई आदिवासी भी उतने ही मूलनिवासी हैं जितने गैर-ईसाई, और किसी भी आधार पर उनकी पहचान कमतर नहीं आंकी जा सकती।
संस्था ने प्रतिबद्धता जताई कि वह:-
समावेशी आदिवासी अधिकारों की वकालत करेगी।
नफ़रत और विभाजन फैलाने वाले कथनों का विरोध करेगी।
पारिस्थितिक न्याय और सांस्कृतिक गरिमा के लिए आदिवासी-नेतृत्व वाले आंदोलनों के साथ साझेदारी करेगी।
पीसीए ने इस विश्व मूलनिवासी दिवस पर सभी आदिवासी समुदायों से अपील की कि वे अपने साझा पूर्वजों, साझा मूल्यों और साझा भविष्य की रक्षा के लिए एकजुट हों।
संस्था का संदेश स्पष्ट है –
“हमारी ताकत हमारी एकता में है, और हमारा भविष्य तभी सुरक्षित है जब हम विभाजन नहीं, बल्कि सहयोग और सम्मान का रास्ता चुनें।”
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