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सोमवार, सितम्बर 29, 2025
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कोरबा में फसल बीमा पोर्टल बना किसानों की मुसीबत: तिथि बढ़ाने की मांग तेज

फसल बीमा योजना की तकनीकी खामियों से परेशान किसान, आदिनिवासी गण परिषद ने कलेक्टर को सौंपा ज्ञापन

कोरबा (पब्लिक फोरम)। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना खरीफ 2025-26 के लिए आवेदन की अंतिम तिथि भले ही 31 जुलाई निर्धारित हो, लेकिन कोरबा जिले में किसान अब भी तकनीकी बाधाओं से जूझ रहे हैं। ऑनलाइन पोर्टल की बार-बार हो रही खराबी के कारण हजारों किसान अपना बीमा नहीं करा पा रहे हैं।

इन हालातों को देखते हुए आदिनिवासी गण परिषद छत्तीसगढ़ के संयोजक बी.एल. नेताम ने कलेक्टर को ज्ञापन सौंपते हुए पोर्टल की मरम्मत और बीमा आवेदन की समय-सीमा बढ़ाने की मांग की है।

ऑनलाइन पोर्टल की तकनीकी खामियों से बढ़ी किसानों की चिंता
बीमा पोर्टल के संचालन में लगातार आ रही दिक्कतें किसानों के लिए गंभीर चुनौती बन चुकी हैं।
– कभी आधार वेरिफिकेशन फेल हो जाता है।
– कभी मोबाइल ओटीपी नहीं आता।
– तो कभी राजस्व विभाग की वेबसाइट से खसरा नंबर वेरीफाई नहीं हो पा रहा है।

ये समस्याएं उन किसानों के सामने आ रही हैं, जो स्वयं या जनसेवा केंद्रों के माध्यम से बीमा के लिए आवेदन कर रहे हैं।

स्थानीय किसान श्रीमती फुलेश्वरी साहू ग्राम:देवलापाठ कहती हैं, “तीन बार जनसेवा केंद्र गई, लेकिन पोर्टल पर बार-बार फेल बता रहा है। अगर तारीख नहीं बढ़ी तो हमारा बीमा अधूरा ही रह जाएगा।”

बीमा योजना का उद्देश्य, और जमीनी हकीकत
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का उद्देश्य किसानों को प्राकृतिक आपदाओं से होने वाली क्षति की भरपाई करना है। यह योजना कृषि को जोखिमों से सुरक्षित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास मानी जाती है। लेकिन जब योजना का तकनीकी आधार ही लड़खड़ाने लगे, तो इसका लाभ वास्तविक हकदारों तक नहीं पहुंच पाता।

बी.एल. नेताम ने प्रशासन से आग्रह किया कि “अगर पोर्टल की समस्या जारी रही, तो हजारों सीमांत किसान और आदिवासी इस सुरक्षा कवच से वंचित रह जाएंगे। यह न केवल तकनीकी विफलता है, बल्कि किसानों के अधिकारों का हनन भी है।”

तिथि बढ़ाने की मांग: प्रशासन के सामने चुनौती
ज्ञापन में यह मांग प्रमुखता से रखी गई है कि किसानों की परेशानी को देखते हुए बीमा आवेदन की अंतिम तिथि कम से कम 15 दिन आगे बढ़ाई जाए, ताकि पोर्टल सुधार के बाद सभी पात्र किसान योजना का लाभ उठा सकें।

वर्तमान में जिले के कृषि विभाग के सामने यह दोहरी चुनौती है-
1. पोर्टल की तकनीकी गड़बड़ियों को जल्द दूर कराना।
2. केंद्र व राज्य स्तर पर तिथि विस्तार का प्रस्ताव भेजना।

तकनीकी दक्षता के बिना योजनाएं अधूरी

फसल बीमा जैसी महत्वाकांक्षी योजना तभी सार्थक हो सकती है जब प्रौद्योगिकी और प्रशासनिक तत्परता दोनों साथ चलें। अगर किसान तकनीकी अड़चनों में उलझे रहेंगे, तो योजना का उद्देश्य ही विफल हो जाएगा।

आदिनिवासी गण परिषद की यह पहल न केवल किसानों की आवाज को सामने लाती है, बल्कि प्रशासन को संवेदनशीलता और उत्तरदायित्व की याद भी दिलाती है।

अब देखना होगा कि प्रशासन इस मांग पर कितनी तेजी से कदम उठाता है और क्या किसानों को राहत दिलाने के लिए समय सीमा बढ़ाई जाती है या नहीं।

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