मंगलवार, जुलाई 29, 2025
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सिंगरौली में मिला भविष्य का खजाना: ‘रेयर अर्थ एलिमेंट्स’ की खोज से चीन पर निर्भरता होगी कम, आत्मनिर्भर भारत को मिलेगी नई उड़ान

नई दिल्ली (पब्लिक फोरम)। भारत के तकनीकी और रणनीतिक आत्मनिर्भरता की दिशा में एक बड़ी छलांग लगाते हुए, मध्य प्रदेश के सिंगरौली कोलफील्ड्स में दुर्लभ पृथ्वी तत्वों (Rare Earth Elements – REE) का एक बड़ा भंडार मिला है। यह घोषणा कोयला और खनन मंत्री जी. किशन रेड्डी ने संसद में की, जिससे देश में उम्मीद की एक नई लहर दौड़ गई है। यह खोज ऐसे महत्वपूर्ण समय में हुई है जब चीन द्वारा इन खनिजों के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने से दुनिया भर के उद्योग संकट में हैं।

क्या हैं ये दुर्लभ खनिज और क्यों हैं इतने महत्वपूर्ण?
रेयर अर्थ एलिमेंट्स 17 धात्विक तत्वों का एक समूह है, जिसमें स्कैंडियम, इट्रियम और लैंथेनाइड्स शामिल हैं। ये आधुनिक तकनीक की रीढ़ हैं. इनका उपयोग इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs), मोबाइल फोन, लैपटॉप, सोलर पैनल, और पवन टर्बाइन से लेकर रक्षा प्रणालियों और मिसाइलों तक में होता है। अपनी अनूठी चुंबकीय, ऑप्टिकल और इलेक्ट्रॉनिक विशेषताओं के कारण ये आज की हाई-टेक दुनिया के लिए अनिवार्य बन गए हैं।

सिंगरौली की खोज: उम्मीद की नई किरण
सरकार के अनुसार, सिंगरौली में कोयले के नमूनों में रेयर अर्थ एलिमेंट्स की मात्रा 250 पार्ट्स पर मिलियन (PPM) और गैर-कोयला नमूनों में लगभग 400 PPM पाई गई है।  वैज्ञानिकों के अनुसार, यह स्तर “संवर्धन” (enrichment) की श्रेणी में आता है, जो एक बेहद आशाजनक संकेत है. हालांकि, इन खनिजों का व्यावसायिक रूप से किफायती निष्कर्षण तकनीकी प्रगति पर निर्भर करेगा।

इस दिशा में, कोल इंडिया लिमिटेड (CIL) और सिंगरेनी कोलियरीज कंपनी लिमिटेड (SCCL) ने भुवनेश्वर के IMMT, हैदराबाद के NFTDC और IIT हैदराबाद जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों के साथ मिलकर इन तत्वों को निकालने की तकनीक विकसित करने के लिए समझौते किए हैं।

चीन पर निर्भरता और भारत की रणनीति
वर्तमान में, भारत अपनी रेयर अर्थ जरूरतों के लिए लगभग पूरी तरह से चीन पर निर्भर है।  चीन इन खनिजों के वैश्विक उत्पादन और प्रसंस्करण का लगभग 90% नियंत्रित करता है।चीन द्वारा हाल ही में निर्यात पर लगाए गए प्रतिबंधों ने भारतीय ऑटोमोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योगों के लिए एक गंभीर संकट खड़ा कर दिया है। एसबीआई की एक रिपोर्ट के अनुसार, चीन से आपूर्ति रुकने से भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) को सवा लाख करोड़ रुपये तक का नुकसान हो सकता है और निर्यात में 39,000 करोड़ रुपये की गिरावट आ सकती है।

इस चुनौती से निपटने के लिए, भारत सरकार ने ‘राष्ट्रीय महत्वपूर्ण खनिज मिशन’ (National Critical Mineral Mission) लॉन्च किया है, जिसका उद्देश्य इन महत्वपूर्ण खनिजों में देश को आत्मनिर्भर बनाना है। इस मिशन के तहत, सरकार घरेलू अन्वेषण को बढ़ावा दे रही है, पुनर्चक्रण तकनीक विकसित कर रही है और ऑस्ट्रेलिया, अर्जेंटीना और जाम्बिया जैसे खनिज-संपन्न देशों के साथ रणनीतिक साझेदारी कर रही है।

आत्मनिर्भरता से वैश्विक नेतृत्व तक
सिंगरौली में हुई यह खोज भारत के लिए एक रणनीतिक गेम-चेंजर साबित हो सकती है. यदि अनुसंधान और तकनीकी विकास सफल रहता है, तो यह खोज कई मायनों में भारत को बदल सकती है।

चीन पर निर्भरता में कमी: देश की रणनीतिक स्वायत्तता बढ़ेगी। विनिर्माण को बढ़ावा: ‘मेक इन इंडिया’ अभियान को बल मिलेगा, जिससे इलेक्ट्रॉनिक्स और इलेक्ट्रिक वाहनों की लागत कम हो सकती है।
हरित ऊर्जा का विकास: सौर और पवन ऊर्जा के लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद मिलेगी।
आर्थिक विकास और रोजगार: सिंगरौली और आसपास के क्षेत्रों में नए औद्योगिक अवसर पैदा होंगे और स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के रास्ते खुलेंगे।

कुल मिलाकर, सिंगरौली की कोयला खदानों से निकला यह ‘भविष्य का सोना’ सिर्फ एक खनिज भंडार नहीं है, बल्कि यह आत्मनिर्भर भारत के सपने को नई ऊंचाइयों पर ले जाने की कुंजी है. यह खोज भारत को वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी के रूप में स्थापित कर सकती है और आने वाले दशकों में देश के आर्थिक और तकनीकी भविष्य को रोशन कर सकती है।

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