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रविवार, जुलाई 27, 2025
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उत्तर प्रदेश-बिहार की महिलाओं ने मिलकर धूमधाम से मनाया सावन उत्सव, तीन महिलाएं बनीं “सावन क्वीन”

कोरबा/बालकोनगर (पब्लिक फोरम)। उत्तर प्रदेश और बिहार की सांस्कृतिक विरासत और महिला शक्ति का अद्भुत संगम देखने को मिला एक खास अवसर पर, जब दोनों राज्यों की महिलाओं ने मिलकर “सावन उत्सव 2025” का भव्य आयोजन किया। हरियाली, पारंपरिक गीत-संगीत, साज-श्रृंगार और महिलाओं की भागीदारी ने इस उत्सव को अविस्मरणीय बना दिया।

सावन क्वीन प्रतियोगिता बनी आकर्षण का केंद्र
कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण रही “सावन क्वीन प्रतियोगिता”, जिसमें दर्जनों प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया। पारंपरिक परिधानों, मेहंदी, गीत और नृत्य के माध्यम से उन्होंने नारी-सौंदर्य और सांस्कृतिक गरिमा को प्रस्तुत किया। प्रतिभागियों द्वारा प्रस्तुत की गई झूला गीतों की मधुर प्रस्तुतियों ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।

निर्णायक मंडल के सामने अपनी प्रतिभा दिखाने वाली प्रतिभागियों ने पूरे मंच को अपनी ऊर्जा से भर दिया। प्रतियोगिता में उत्तर प्रदेश और बिहार के विभिन्न जिलों से आई महिलाओं ने भाग लिया, जिससे यह आयोजन एक अंतर-राज्यीय सांस्कृतिक मेल-मिलाप का प्रतीक बन गया।

तीन प्रतिभाशाली महिलाओं ने जीते “सावन क्वीन” के खिताब
कड़ी प्रतिस्पर्धा के बाद, प्रतियोगिता में तीन महिलाओं को “सावन क्वीन” के प्रतिष्ठित खिताब के लिए चुना गया:

– प्रथम स्थान (सावन क्वीन 2025) – तारा सिंह: इनके पारंपरिक लुक, मेहंदी डिज़ाइन और झूला गीत प्रस्तुति ने सभी का दिल जीत लिया। तारा ने अपने मनमोहक अंदाज़ और आत्मविश्वास से निर्णायकों को प्रभावित किया।
– द्वितीय स्थान (सावन क्वीन रनर-अप): इन्होंने अपने लोकनृत्य और पारंपरिक वेशभूषा में गजब का आत्मविश्वास दिखाया। उनकी प्रस्तुति में उत्तर प्रदेश की लोक संस्कृति की झलक स्पष्ट रूप से देखी जा सकती थी।
– तृतीय स्थान (सावन क्वीन सेकेंड रनर-अप) – रजनी ठाकुर: रजनी की प्रस्तुति में बिहार की पारंपरिक संस्कृति का अनूठा समावेश था, जिसने उन्हें प्रतियोगिता में विशेष स्थान दिलाया।

पारंपरिक उत्सव से जुड़ीं सामाजिक गतिविधियां
इस आयोजन में महिलाओं ने सावन के पारंपरिक गीत गाए, झूला झूले, और हरियाली तीज की पूजा-अर्चना भी की। सावन के हरे-भरे माहौल में महिलाओं ने अपने हाथों से मेहंदी सजाई और पारंपरिक व्यंजनों का आनंद लिया।

कार्यक्रम का उद्देश्य महिलाओं को एक मंच प्रदान करना था जहाँ वे अपनी प्रतिभा और संस्कृति को खुलकर अभिव्यक्त कर सकें। आयोजकों ने बताया कि यह उत्सव न केवल सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने का प्रयास है, बल्कि महिला सशक्तिकरण की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम है।

सामुदायिक एकता का प्रतीक बना उत्सव
स्थानीय समुदाय के कई प्रतिष्ठित सदस्यों ने इस कार्यक्रम में भाग लिया और महिलाओं के प्रयासों की सराहना की। एक स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता ने कहा, “ऐसे आयोजन हमारी संस्कृति को जीवंत रखने के साथ-साथ महिलाओं को अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर प्रदान करते हैं। यह देखकर खुशी होती है कि दो राज्यों की महिलाएँ एक साथ आकर अपनी साझा विरासत का जश्न मना रही हैं।”

आयोजकों ने अगले वर्ष इस उत्सव को और भी बड़े स्तर पर मनाने की योजना बनाई है, जिसमें अधिक राज्यों की महिलाओं को शामिल करने का प्रस्ताव है। इस तरह के सांस्कृतिक आयोजन न केवल परंपराओं को संरक्षित करते हैं बल्कि विभिन्न क्षेत्रों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान को भी बढ़ावा देते हैं।

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