जनसुरक्षा विधेयक से लोकतंत्र को खतरा: जनसुरक्षा विधेयक विरोधी संघर्ष समिति
मुंबई (पब्लिक फोरम)। महाराष्ट्र सरकार द्वारा प्रस्तावित जनसुरक्षा विधेयक (बिल क्रमांक 33, 2024) को लेकर देश के लोकतांत्रिक और जनपक्षीय संगठनों में गंभीर चिंता जताई जा रही है। इसी क्रम में “जनसुरक्षा विधेयक विरोधी संघर्ष समिति” ने सोमवार को राज्यपाल सी. पी. राधाकृष्णन से मुलाकात कर मांग की कि इस विधेयक को मंजूरी न दी जाए।
राजभवन में आयोजित इस प्रतिनिधिमंडलीय भेंट में समिति ने राज्यपाल को एक ज्ञापन सौंपते हुए विधेयक के दमनकारी और असंवैधानिक प्रावधानों की विस्तार से जानकारी दी। प्रतिनिधियों ने कहा कि यह विधेयक नागरिकों के मौलिक अधिकारों, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक आंदोलनों पर कुठाराघात करता है।
संघर्ष समिति में शामिल संगठनों में भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, शेतकरी कामगार पार्टी, समाजवादी पार्टी, सत्यशोधक कम्युनिस्ट पार्टी, भारत जोड़ो अभियान, श्रमिक मुक्ति दल सहित कई वामपंथी और जनपक्षीय संगठन शामिल हैं। सभी दलों और आंदोलनों ने एक स्वर में कहा कि वे संविधान की सीमाओं में रहकर कार्यरत हैं और जनसुरक्षा विधेयक का मसौदा लोकतांत्रिक ढांचे को कमजोर करता है।
ज्ञापन में जताई गई मुख्य आपत्तियां
– विधेयक में प्रशासन को अत्यधिक अधिकार दिए गए हैं, जिससे जन आंदोलनों और असहमति की आवाज को दबाने का रास्ता खुलता है।
– यह विधेयक बिना किसी न्यायिक प्रक्रिया के लोगों को संदिग्ध घोषित कर नजरबंद या निगरानी में रखने की शक्ति देता है।
– यह नागरिक स्वतंत्रताओं, विशेषकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और एकत्रित होने के अधिकार का उल्लंघन करता है।
प्रतिनिधिमंडल में प्रमुख रूप से शामिल थे:
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव कॉमरेड एडवोकेट सुभाष लांडे, सचिव मंडल सदस्य कॉमरेड प्रकाश रेड्डी, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के विधायक कॉमरेड विनोद निकोले, भारत जोड़ो अभियान से सामाजिक कार्यकर्ता उल्का महाजन, भाकपा (माले) लिबरेशन से कॉमरेड उदय भट, शेतकरी कामगार पार्टी के एडवोकेट राजेंद्र कोर्डे, कष्टकरी संगठन से ब्रायन लोबो, कॉमरेड अशोक सूर्यवंशी, कॉमरेड चेतन माढा और कॉमरेड कुशल राउत।
प्रतिनिधियों ने स्पष्ट किया कि यदि राज्यपाल इस विधेयक को मंजूरी देते हैं, तो यह न केवल महाराष्ट्र में लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन होगा बल्कि अन्य राज्यों में भी अलोकतांत्रिक कानूनों को प्रोत्साहन मिलेगा। समिति ने राज्यपाल से अपील की कि वे संविधान की मर्यादा और जनता के अधिकारों की रक्षा करते हुए इस विधेयक को मंजूरी न दें।
यह विधेयक यदि कानून बनता है तो यह महाराष्ट्र में सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने के नाम पर जन आंदोलनों और विरोध के स्वर को कुचलने का औजार बन सकता है। जनसंगठनों की यह चिंता इस बात का संकेत है कि राज्य की नीतियों पर जन निगरानी को लेकर देश में सजगता बनी हुई है।
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