गुरूवार, जुलाई 3, 2025
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कार्ल मार्क्स: वो चिंगारी जिसने इतिहास की धारा बदल दी 

5 मई को जन्मे इस महान विचारक की सोच आज भी प्रासंगिक, जानिए क्यों?

5 मई 1818 को जर्मनी के ट्रायर शहर में जन्मे कार्ल मार्क्स ने दुनिया को वो दृष्टि दी, जिसने इतिहास की धारा ही बदल दी। वकील पिता के घर जन्मे मार्क्स ने कानून, इतिहास और दर्शनशास्त्र की पढ़ाई की, लेकिन उनका मन हमेशा समाज की विषमताओं को समझने में लगा। उन्होंने देखा कि दुनिया दो हिस्सों में बंटी है – एक वर्ग जो मेहनत करता है और दूसरा वर्ग जो उस मेहनत का फल हड़प लेता है। 

कम्युनिस्ट घोषणापत्र: वो दस्तावेज जिसने ताकतवरों को हिला दिया 

1848 में फ्रेडरिक एंगेल्स के साथ मिलकर मार्क्स ने “द कम्युनिस्ट मैनिफेस्टो” लिखा। इसमें उन्होंने दुनिया भर के मजदूरों से एकजुट होने का आह्वान किया। उनका प्रसिद्ध नारा – “दुनिया के मजदूरों, एक हो” – आज भी लाखों लोगों को प्रेरित करता है। मार्क्स ने भविष्यवाणी की थी कि पूंजीवाद अपने अंदर ही अपने विनाश के बीज छुपाए हुए है। 

गरीबी में गुजरा जीवन, लेकिन विचारों की लौ नहीं बुझी

मार्क्स का जीवन संघर्षों से भरा रहा। उनके तीन बच्चे भूख से मर गए। पत्नी जेनी ने कठिनाइयों का सामना किया, लेकिन मार्क्स ने लिखना नहीं छोड़ा। वे लंदन में रहते थे, जहाँ उन्हें अक्सर भोजन तक के लाले पड़ते थे। फिर भी, उन्होंने “दास कैपिटल” जैसी महान कृति लिखी, जिसमें पूंजीवाद की पोल खोल दी। 

दास कैपिटल: पूंजीवाद की असली सच्चाई

1867 में प्रकाशित “दास कैपिटल” में मार्क्स ने बताया कि पूंजीवाद कैसे मजदूरों के श्रम का शोषण करता है। उन्होंने समझाया कि पूंजीपति मजदूरों की मेहनत से मुनाफा कमाते हैं, लेकिन उन्हें उसका उचित हिस्सा नहीं देते। मार्क्स ने इसे “संरचित शोषण प्रणाली” बताया। 

मृत्यु के बाद भी जिंदा हैं मार्क्स के विचार

14 मार्च 1883 को मार्क्स का निधन हुआ। उनके अंतिम संस्कार में मुश्किल से 10 लोग थे, लेकिन आज उनके विचार दुनिया भर में फैले हुए हैं। रूस की क्रांति (1917), चीन में माओ का आंदोलन, भारत में भगत सिंह और डॉ. अंबेडकर के विचारों पर मार्क्स का प्रभाव साफ दिखता है। 

आज भी क्यों प्रासंगिक हैं मार्क्स? 

आज भी जब मजदूरों को उनके अधिकार नहीं मिलते, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं महंगी होती जा रही हैं, और समाज अमीर-गरीब में बंटा हुआ है – मार्क्स के विचार और भी प्रासंगिक हो जाते हैं। उन्होंने कहा था – “दुनिया को सिर्फ समझना ही काफी नहीं, उसे बदलने की जरूरत है।” 

अंतिम शब्द: एक चेतावनी के रूप में मार्क्स

मार्क्स सिर्फ एक विचारक नहीं थे – वे एक चेतावनी थे। उन्होंने दुनिया को याद दिलाया कि जब तक शोषण होगा, संघर्ष जारी रहेगा। आज भी जब कोई मजदूर अपने हक की लड़ाई लड़ता है, कोई छात्र न्याय की मांग करता है – तो वहाँ मार्क्स की आवाज गूंजती है। 

“मैं मार्क्स हूँ – एक विचार नहीं, एक इंकलाब!” 

(आलेख: रमन कुमार)

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