कवर्धा (पब्लिक फोरम)। छत्तीसगढ़ के कबीरधाम जिले के कवर्धा शहर में रविवार को एक दिल दहलाने वाली घटना ने पूरे क्षेत्र में सनसनी फैला दी। कवर्धा कलेक्ट्रेट के पास स्थित इंडियन मिशनरी चर्च में प्रति रविवार की तरह मसीही समुदाय के लोग अपनी धार्मिक उपासना और प्रार्थना में लीन थे। लेकिन सुबह 11:30 बजे, अचानक कुछ हमलावर जो खुद को हिंदू संगठन से जुड़े बताते नारेबाजी और अश्लील गाली गलौज कर रहे थे, करीब 100 से अधिक लोगों ने चर्च पर धावा बोल दिया। इस हमले ने न केवल धार्मिक स्थल की पवित्रता को भंग किया, बल्कि मसीही समुदाय के लोगों में डर और असुरक्षा की भावना पैदा कर दी।
क्या हुआ उस दिन?
चर्च में प्रार्थना सभा चल रही थी, जिसमें महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग शामिल थे। तभी हिंदूवादी संगठनों के कार्यकर्ता आक्रामक रूप से चर्च परिसर में घुस आए। प्रत्यक्ष दर्शियों के अनुसार, उन्होंने तोड़फोड़ शुरू कर दी, धार्मिक सामग्री को नुकसान पहुंचाया, गाली-गलौज की और वहां मौजूद लोगों को घंटों तक बंधक बनाकर रखा। सबसे दुखद पहलू यह रहा कि महिलाओं के साथ छेड़छाड़ की घटनाएं भी सामने आईं, जिसने इस हिंसा को और भी अमानवीय बना दिया।
चर्च के फादर ने तुरंत सिविल लाइन थाने में शिकायत दर्ज की। पुलिस की प्रतिक्रिया बेहद निराशाजनक रही। शिकायत के बाद केवल दो सिपाही मौके पर पहुंचे, लेकिन उनकी मौजूदगी में भी हमलावरों का उत्पात जारी रहा। पुलिस ने चर्च में लगे सीसीटीवी कैमरे को जब्त कर लिया, जिसमें इस पूरी घटना का रिकॉर्ड मौजूद है। इस फुटेज के आधार पर अब जांच की उम्मीद की जा रही है, लेकिन सवाल यह है कि क्या दोषियों को सजा मिल पाएगी?
मसीही समुदाय में दहशत, मानवता शर्मसार
इस घटना ने कवर्धा के मसीही समुदाय में गहरी चोट पहुंचाई है। एक स्थानीय निवासी ने बताया, “हम शांति से अपनी प्रार्थना कर रहे थे। अचानक भीड़ ने हमला कर दिया। हमारी महिलाओं और बच्चों को डराया गया। यह बहुत डरावना था।” कई परिवार अब चर्च जाने से डर रहे हैं, और धार्मिक स्वतंत्रता पर सवाल उठ रहे हैं।
यह पहली बार नहीं है जब कवर्धा में ऐसी घटना हुई हो। हाल के महीनों में मूल निवासी, अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी), अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ हिंसा और उत्पीड़न की शिकायतें बढ़ी हैं। ये घटनाएं न केवल सामाजिक सौहार्द को नुकसान पहुंचा रही हैं, बल्कि राज्य की कानून व्यवस्था पर भी गंभीर सवाल खड़े कर रही हैं।
कानून व्यवस्था पर सवालिया निशान
इस घटना ने स्थानीय पुलिस प्रशासन और राज्य सरकार की कार्यप्रणाली पर गहरी चोट की है। सवाल उठ रहे हैं कि अगर एक धार्मिक स्थल पर खुलेआम हमला हो सकता है, तो आम नागरिकों की सुरक्षा का क्या? क्या कानून व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई है? स्थानीय लोगों का कहना है कि पुलिस की निष्क्रियता ने हमलावरों के हौसले बुलंद किए।
राष्ट्रीय संगठन मूलनिवासी संघ ने इस घटना की कड़ी निंदा की है और दोषियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की मांग की है। संगठन ने पीड़ित समुदाय के प्रति एकजुटता दिखाते हुए कहा, “हम हर जिले में इस मुद्दे को उठाएंगे और राज्यपाल को ज्ञापन सौंपेंगे।” संगठन ने यह भी चेतावनी दी कि अगर ऐसी घटनाओं पर रोक नहीं लगी, तो सामाजिक तनाव और बढ़ सकता है।
अब आगे क्या?
यह घटना केवल एक हमला नहीं, बल्कि समाज में बढ़ती असहिष्णुता और धार्मिक विभाजन की एक गंभीर चेतावनी है। कवर्धा के लोग अब शांति और न्याय की मांग कर रहे हैं। मसीही समुदाय के लोग चाहते हैं कि उनके धार्मिक अधिकारों का सम्मान हो और उन्हें सुरक्षित माहौल में अपनी आस्था का पालन करने का मौका मिले।
पुलिस ने मामले की जांच शुरू कर दी है, और सीसीटीवी फुटेज के आधार पर दोषियों की पहचान की जा रही है। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह जांच केवल औपचारिकता बनकर रह जाएगी, या वास्तव में दोषियों को सजा मिलेगी? स्थानीय प्रशासन और सरकार पर अब दबाव है कि वे न केवल इस घटना पर कार्रवाई करें, बल्कि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए ठोस कदम उठाएं।
कवर्धा की यह घटना हमें याद दिलाती है कि भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में शांति और एकजुटता कितनी जरूरी है। धर्म और जाति के नाम पर हिंसा न केवल कानून का उल्लंघन है, बल्कि यह हमारी साझा मानवता पर भी हमला है। समाज के हर वर्ग को एक साथ आकर ऐसी घटनाओं के खिलाफ आवाज उठानी होगी।
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