नई दिल्ली (पब्लिक फोरम)। देश की मशहूर लोक गायिका नेहा सिंह राठौर और प्रोफेसर माद्री काकोटी (डॉ. मेड्यूसा) पर राजद्रोह के तहत दर्ज FIR ने लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की आजादी पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। भारतीय की कम्युनिस्ट पार्टी (माले) ने इसे ‘कानून का दुरुपयोग’ और ‘संवैधानिक मूल्यों पर हमला’ करार देते हुए तत्काल FIR रद्द करने की मांग की है। यह मामला न केवल दो व्यक्तियों के खिलाफ कार्रवाई का है, बल्कि यह हर उस नागरिक की आवाज को दबाने की साजिश है, जो सरकार से सवाल पूछने का साहस रखता है।
पहलगाम त्रासदी और सवालों का दमन
22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर दिया। इस हमले ने राष्ट्रीय सुरक्षा में सरकार की कमियों को उजागर किया। सरकार ने भी अपनी चूक स्वीकार की, लेकिन जिम्मेदारी तय करने के बजाय, उसने आलोचकों को निशाना बनाना शुरू कर दिया। नेहा सिंह राठौर और डॉ. मेड्यूसा ने अपनी कला और लेखन के जरिए इन कमियों को जनता के सामने लाने की कोशिश की। लेकिन सत्ता ने जवाब देने के बजाय, उनके खिलाफ राजद्रोह जैसी गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज कर दिया।
नेहा, जिनके गीत जनता की आवाज बनकर सत्ता के गलियारों तक पहुंचते हैं, और डॉ. मेड्यूसा, जिनके लेखन ने सामाजिक न्याय के लिए एक मिसाल कायम की है, आज सवाल पूछने की कीमत चुका रही हैं। यह न केवल इन दो महिलाओं का अपमान है, बल्कि लोकतंत्र के हर उस स्तंभ का अपमान है, जो सच को सामने लाने की हिम्मत रखता है।

लोकतंत्र पर खतरा: सत्ता की चुप्पी, दमन की आवाज
भाकपा (माले) ने आरोप लगाया कि सरकार अपनी असफलताओं से ध्यान हटाने के लिए ‘युद्धोन्माद’ और ‘मुस्लिम विरोधी उन्माद’ को हवा दे रही है। इसकी आड़ में विरोध की हर आवाज को कुचलने की कोशिश की जा रही है। कार्यकर्ताओं पर मुकदमे, कश्मीरियों और मुसलमानों के खिलाफ नफरत, और बुलडोजर की कार्रवाई—यह सब सत्ता के दमनकारी चक्र का हिस्सा है।
यह पहली बार नहीं है जब सरकार ने आलोचकों को चुप कराने की कोशिश की हो। लेकिन इस बार, यह कार्रवाई न केवल व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर हमला है, बल्कि संविधान द्वारा दिए गए सवाल पूछने के अधिकार को भी कुचलने की साजिश है।
नेहा और मेड्यूसा: जनता की आवाज
नेहा सिंह राठौर ने अपने गीतों के जरिए हमेशा गरीबों, किसानों और हाशिए पर खड़े लोगों की बात को बुलंद किया है। उनके गीत केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि सामाजिक बदलाव का हथियार हैं। वहीं, डॉ. मेड्यूसा ने अपने लेखन और वक्तव्यों से सत्ता की गलत नीतियों को उजागर किया है। दोनों ने अपने-अपने तरीके से लोकतंत्र को मजबूत करने की कोशिश की, लेकिन आज उन्हें ही अपराधी ठहराया जा रहा है।
यह मामला सिर्फ नेहा और मेड्यूसा का नहीं, बल्कि हर उस व्यक्ति का है, जो सच बोलने की हिम्मत रखता है। यह हम सबके लिए एक चेतावनी है कि अगर हम चुप रहे, तो हमारी आवाज भी हमेशा के लिए खामोश कर दी जाएगी।
लोकतंत्र की रक्षा का आह्वान
भाकपा (माले) ने देश के सभी लोकतंत्र पसंद नागरिकों से अपील की है कि वे नेहा सिंह राठौर, डॉ. मेड्यूसा और हर उस व्यक्ति के समर्थन में खड़े हों, जो सरकार से सवाल पूछने की हिम्मत रखता है। यह केवल दो लोगों की लड़ाई नहीं, बल्कि हमारे संवैधानिक अधिकारों और लोकतंत्र की रक्षा की जंग है।
क्यों जरूरी है यह खबर?
यह मामला सिर्फ एक FIR का नहीं, बल्कि हमारे लोकतंत्र के भविष्य का है। अगर आज हम सवाल पूछने वालों के साथ नहीं खड़े होंगे, तो कल हमारी आवाज भी दबा दी जाएगी। नेहा और मेड्यूसा की कहानी हर उस भारतीय की कहानी है, जो सच और न्याय के लिए लड़ता है।
आइए, मिलकर अपनी आवाज बुलंद करें। लोकतंत्र को बचाने का समय अब है।
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