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रविवार, जुलाई 27, 2025
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कोरबा: ग्राम पंचायत बेला की इस सड़क का दर्द, कच्चे रास्ते और टूटी पुलिया ने छीनी ग्रामीणों की राहत

कोरबा (पब्लिक फोरम)। छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में एक ऐसी सड़क है, जो ग्रामीणों के लिए हर दिन एक नई चुनौती बनकर सामने आती है। ग्राम पंचायत बेला के आश्रित गांव परसाखोला से बेला तक जाने वाला यह कच्चा रास्ता अब अपनी बदहाली की कहानी खुद बयां कर रहा है। टूटी पुलिया, फिसलन भरी मिट्टी और बारिश में पानी का जमाव—यह सड़क ग्रामीणों के लिए परेशानी का सबब बन चुकी है। लोग उम्मीद भरी नजरों से सड़क बनने का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन उनकी उम्मीदें अब तक अधूरी हैं। आइए, इस खबर में जानते हैं कि आखिर इस सड़क की बदहाली ने ग्रामीणों की जिंदगी को कैसे प्रभावित किया है।

बारिश में रास्ते बंद, हर कदम पर खतरा
परसाखोला से टापरा होते हुए बेला तक जाने वाली यह सड़क कभी ग्रामीणों के लिए आसान रास्ता थी, लेकिन अब यह उनकी मुश्किलों का पहाड़ बन गई है। यह कच्ची सड़क अभी तक पक्की नहीं बन पाई है। इस मार्ग पर बनी दो पुलिया भी अब पूरी तरह ढह चुकी हैं। बारिश का मौसम आते ही हालात और बिगड़ जाते हैं। मिट्टी फिसलन भरी हो जाती है और टूटी पुलिया की जगह पानी भर जाता है। नतीजा? ग्रामीणों का आवागमन लगभग ठप हो जाता है। पैदल चलना हो या साइकिल से जाना, हर कदम पर जान जोखिम में पड़ती है।

बुजुर्ग की जुबानी: हर दिन दुर्घटना का डर
गांव के बुजुर्ग राम सिंह कंवर की आंखों में इस सड़क का दर्द साफ झलकता है। उन्होंने बताया, “हमें बेला जाने के लिए इसी रास्ते से गुजरना पड़ता है। सड़क की हालत इतनी खराब है कि आए दिन दुर्घटनाएं होती रहती हैं। बारिश में तो हालत और बदतर हो जाती है। हम लोग सालों से इस सड़क के बनने का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही।” राम सिंह की यह बात न सिर्फ उनकी पीड़ा को बयां करती है, बल्कि पूरे गांव की भावनाओं को भी सामने लाती है।

जनप्रतिनिधियों से उम्मीद, मगर निराशा ही हाथ लगी
ग्रामीणों का कहना है कि हर बार चुनाव में जनप्रतिनिधि बड़े-बड़े वादे करते हैं। सड़क बनाने की बातें होती हैं, लेकिन हकीकत में कुछ नहीं बदलता। लोग समझदार और जिम्मेदार नेताओं की तलाश में हैं, जो इस सड़क को उनकी जिंदगी का हिस्सा बना सकें। यह सड़क न सिर्फ परसाखोला और बेला को जोड़ती है, बल्कि ग्रामीणों के सपनों को भी शहर की सुविधाओं से जोड़ने का जरिया बन सकती है। मगर, अभी तो यह सिर्फ एक टूटी उम्मीद का प्रतीक बनी हुई है।

क्यों जरूरी है ग्रामीणों के लिए यह सड़क?
यह सड़क सिर्फ मिट्टी और गड्ढों का रास्ता नहीं है, बल्कि ग्रामीणों की जिंदगी का आधार है। बच्चों को स्कूल जाना, मरीजों को अस्पताल पहुंचना, और रोजमर्रा की जरूरतों के लिए बाजार तक पहुंचना—सब कुछ इसी रास्ते से होकर गुजरता है। लेकिन सड़क की बदहाली ने इन सबको मुश्किल बना दिया है। अगर यह सड़क पक्की हो जाए और पुलिया ठीक हो जाएं, तो न सिर्फ आवागमन आसान होगा, बल्कि गांव की तरक्की के रास्ते भी खुलेंगे।

एक उम्मीद भरा आह्वान
कोरबा जिले के इस गांव की यह कहानी सिर्फ सड़क की नहीं, बल्कि उन आदिनिवासियों की भी है, जो हर दिन संघर्ष करते हैं। उनकी आवाज अब प्रशासन और जनप्रतिनिधियों तक पहुंचनी ही चाहिए। यह सड़क बनाना सिर्फ एक निर्माण कार्य ही नहीं, बल्कि उन ग्रामीणों के जीवन में खुशहाली लाने का वादा भी है। क्या उनकी यह पुकार सुनी जाएगी? यह सवाल अब समय के जवाब का इंतजार कर रहा है।

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