महिलाओं की आवाज बुलंद करती ऐपवा, 32 सालों का संघर्ष और न्याय की लड़ाई!
11-12 फरवरी, 1994 को अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसिएशन (ऐपवा) का गठन हुआ था। यह संगठन देश भर की महिलाओं के लिए आजादी, बराबरी और न्याय की लड़ाई का प्रतीक बन गया। 31 सालों के इस सफर में ऐपवा ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं, लेकिन महिलाओं के अधिकारों के लिए संघर्ष का यह कारवां आज भी बदस्तूर जारी है। इस साल ऐपवा ने अपना 32वाँ स्थापना दिवस मनाया और महिलाओं के प्रतिरोध का झंडा बुलंद करने का संकल्प लिया।
स्थापना दिवस पर श्रद्धांजलि: याद किए गए दिवंगत साथी
इस मौके पर ऐपवा ने अपने पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष गीता दास और श्रीलता स्वामीनाथन, राष्ट्रीय सचिव जीता कौर और अजंता लोहित समेत सभी दिवंगत साथियों को श्रद्धांजलि अर्पित की। ये वो लोग थे, जिन्होंने महिलाओं के अधिकारों के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। उनकी याद में ऐपवा ने संकल्प लिया कि वह महिलाओं की आजादी और बराबरी के लिए अपना संघर्ष जारी रखेगा।
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संविधान और महिलाओं के अधिकारों पर खतरा
आज के दौर में महिलाओं के अधिकारों पर लगातार हमले हो रहे हैं। केंद्र सरकार के गृहमंत्री अमित शाह ने हाल ही में संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर के लिए संसद में अपमानजनक टिप्पणी की। यह टिप्पणी संविधान के प्रति सरकार के अवमाननापूर्ण रवैये को दर्शाती है। संविधान ने महिलाओं, दलितों और अल्पसंख्यकों को बराबरी का अधिकार दिया है, लेकिन आज सरकार इन अधिकारों को खत्म करने की कोशिश कर रही है।
उत्तराखंड में समान आचार संहिता (UCC) लागू करके महिलाओं की स्वायत्तता को सीमित किया गया है। अब इसी UCC को पूरे देश में लागू करने की योजना बनाई जा रही है। यह कदम महिलाओं के अधिकारों के लिए एक बड़ा खतरा है। इसके अलावा, मणिपुर की महिलाओं को आज तक न्याय नहीं मिला है। बिल्किस बानो और महिला पहलवानों के उत्पीड़कों को बचाने की कोशिशें भी महिलाओं के खिलाफ हिंसा को बढ़ावा दे रही हैं।
कोलकाता की घटना: महिलाओं की सुरक्षा पर सवाल!
कोलकाता के आर जी कर अस्पताल में एक महिला डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या की घटना ने एक बार फिर महिलाओं की सुरक्षा को लेकर चिंता पैदा कर दी है। यह घटना कार्यस्थल पर महिलाओं की सुरक्षा और रात में उनके बाहर निकलने के अधिकार पर सवाल खड़े करती है। इस घटना के खिलाफ पूरे देश में महिलाएं और नागरिक समाज सड़कों पर उतर आए। खासकर बंगाल की महिलाओं ने न्याय की मांग को लेकर मजबूती से अपनी आवाज बुलंद की।
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शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के लिए संघर्ष
यह साल महिलाओं के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और समान वेतन के लिए संघर्ष का भी रहा। स्कीम वर्कर्स को उचित मानदेय दिलाने, समूह की महिलाओं के लिए रोजगार और कर्जमुक्ति के लिए आंदोलन चलाए गए। महिलाओं ने हिंसा और दमन के खिलाफ अपनी आवाज उठाई और सम्मानपूर्ण जीवन के लिए संघर्ष जारी रखा।
फासीवाद के खिलाफ महिलाओं का प्रतिरोध
ऐपवा ने अपने 32वें स्थापना दिवस पर फासीवाद के खिलाफ महिलाओं के प्रतिरोध का झंडा बुलंद करने का संकल्प लिया है। यह संगठन महिलाओं की आजादी, बराबरी और न्याय के लिए अपना संघर्ष जारी रखेगा। ऐपवा का मानना है कि महिलाओं का संघर्ष सिर्फ उनके लिए नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए है।
ऐपवा का 32वाँ स्थापना दिवस महिलाओं के संघर्ष की एक नई कहानी लिखता है। यह संगठन न सिर्फ महिलाओं के अधिकारों के लिए लड़ रहा है, बल्कि समाज में बराबरी और न्याय की संस्कृति को भी बढ़ावा दे रहा है। आने वाले समय में ऐपवा का यह संघर्ष और मजबूत होगा, और महिलाओं की आवाज और बुलंद होगी।
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